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निजी अस्पतालों में ज्यादातर बच्चों का जन्म सिजेरियन से हो रहा है, सरकारी अस्पतालों के बेड लगभग खाली, जानिए आंकड़े

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: March 17, 2024 16:41 IST

'जन्म एवं मृत्यु पंजीकरण की वार्षिक रिपोर्ट 2022' के मुताबिक, दिल्ली के शहरी इलाकों में स्थित सरकारी अस्पतालों में कुल 1,65,826 बच्चों का जन्म हुआ, जिनमें से 44,040 बच्चे सिजेरियन से जन्मे। वहीं निजी अस्पतालों में कुल 87,629 बच्चों का जन्म हुआ, जिनमें से 53,446 बच्चे सिजेरियन से जन्मे जबकि सामान्य प्रसव के जरिये 32,756 बच्चों का जन्म हुआ।

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ठळक मुद्देदिल्ली के सरकारी और निजी अस्पतालों में वर्ष 2022 में करीब 2.82 लाख बच्चों ने जन्म लिया करीब 38 फीसदी यानी 1.07 लाख बच्चों का जन्म सिजेरियन प्रणाली से हुआ निजी अस्पतालों में कुल 87,629 बच्चों का जन्म हुआ, जिनमें से 53,446 बच्चे सिजेरियन से जन्मे

नयी दिल्ली:  राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के सरकारी और निजी अस्पतालों में वर्ष 2022 में करीब 2.82 लाख बच्चों ने जन्म लिया, जिसमें से करीब 38 फीसदी यानी 1.07 लाख बच्चों का जन्म सिजेरियन प्रणाली से हुआ जबकि सामान्य प्रसव की पद्धति पर आधारित दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के 17 प्रसूति गृहों में पिछले साढ़े चार वर्षों में सिर्फ 31,121 प्रसव हुए। दिल्ली सरकार के आर्थिक एवं सांख्यिकी विभाग द्वारा राजधानी में 'जन्म एवं मृत्यु पंजीकरण की वार्षिक रिपोर्ट 2022' के मुताबिक, 2022 में दिल्ली में कुल 2,82,389 बच्चों का जन्म हुआ, जिनमें से 1,81,892 बच्चों का जन्म सामान्य प्रसव से और 1,07,079 बच्चों का जन्म सिजेरियन यानी ऑपरेशन के जरिये हुआ। 

'जन्म एवं मृत्यु पंजीकरण की वार्षिक रिपोर्ट 2022' के मुताबिक, दिल्ली के शहरी इलाकों में स्थित सरकारी अस्पतालों में कुल 1,65,826 बच्चों का जन्म हुआ, जिनमें से 44,040 बच्चे सिजेरियन से जन्मे। वहीं निजी अस्पतालों में कुल 87,629 बच्चों का जन्म हुआ, जिनमें से 53,446 बच्चे सिजेरियन से जन्मे जबकि सामान्य प्रसव के जरिये 32,756 बच्चों का जन्म हुआ। आंकड़ों के मुताबिक, दिल्ली के ग्रामीण इलाकों में स्थित सरकारी अस्पतालों में कुल 21,079 बच्चों का जन्म हुआ, जिनमें से 4,893 बच्चे सिजेरियन से जन्मे। वहीं ग्रामीण इलाकों में स्थित निजी अस्पतालों में कुल 7,855 बच्चों का जन्म हुआ, जिनमें 4,700 बच्चे सिजेरियन जबकि सामान्य प्रसव के जरिये 3,089 बच्चे जन्मे। 

वहीं, सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत दायर आवेदन के जवाब में एमसीडी के स्वास्थ्य विभाग द्वारा मुहैया कराई गयी जानकारी के मुताबिक, एमसीडी के 17 प्रसूति गृहों में 2019-20 की पहली तिमाही (अप्रैल से जून) से 2023-24 की दूसरी तिमाही (जुलाई से सितंबर) तक कुल 31,121 महिलाओं ने बच्चों को जन्म दिया और इस दौरान तीन नवजात शिशुओं की प्रसव के समय मौत हुई। स्वास्थ्य विभाग ने आरटीआई के जवाब में बताया कि बीते दो वर्षों में नगर निगम के अंतर्गत आने वाले प्रसूति गृहों में प्रसव के दौरान किसी महिला की मौत नहीं हुई। दिल्ली नगर निगम के स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी ने नाम नहीं प्रकाशित करने की शर्त पर 'पीटीआई-भाषा' को बताया, ''दिल्ली के प्रसूति गृह में कम डिलिवरी की सबसे बड़ी वजह यह है कि इन केंद्रों पर सिर्फ सामान्य प्रसव किये जाते हैं और यहां ऑपरेशन के जरिए प्रसव का कोई सिद्धांत ही नहीं है, इसलिए ज्यादा गंभीर मामलों या फिर ऑपरेशन की स्थिति में महिलाओं को दूसरे बड़े अस्पतालों में स्थानांतरित कर दिया जाता है।'' उन्होंने बताया कि इन प्रसूति गृहों के बाहर एक कैट एंबुलेंस खड़ी रहती है, जो जटिल परिस्थतियों में महिलाओं को दूसरे बड़े अस्पतालों में पहुंचाती है। इसके अलावा इनमें बच्चों को टीके, नर्सरी जैसी तमाम सुविधाएं मौजूद होती हैं। 

अधिकारी ने कहा कि दूसरी चीज है मानसिकता। दरअसल एक वर्ग के लोगों को लगता है कि बच्चों का जन्म बड़े अस्पतालों में होना चाहिए न कि इन छोटे अस्पतालों में जबकि इन प्रसूति गृहों में सारी सुविधाएं मौजूद होती हैं, जो एक अस्पताल में होनी चाहिए। उन्होंने बताया, ''यही वजह है कि इतनी बड़ी संख्या में प्रसूति गृह होने के बावजूद ये खाली पड़े रहते हैं और दूसरे सरकारी अस्पतालों पर दबाव बढ़ जाता है और लोगों को मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।'' स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी ने कहा कि अगर दिल्ली के बड़े सरकारी अस्पताल, प्रशासन और सीडीएमओ (मुख्य जिला चिकित्सा अधिकारी) आपस में यह तय करें या फिर कोई तंत्र बनाए कि सामान्य प्रसव के मामलों को इन केंद्रों में स्थानातंरित कर दिया जाए तो दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में गर्भवती महिलाओं को लंबी-लंबी कतारों और पूरे दिन की भाग-दौड़ से निजात मिल सकती है। अधिकारी ने बताया कि दिल्ली सरकार और अधिकारियों के बीच समन्वय की कमी की वजह से ही सरकारी अस्पतालों पर बोझ पड़ रहा है और ये प्रसूति केंद्र खाली रह जाते हैं। 

दिल्ली के श्री बालाजी एक्शन मेडिकल इंस्टीट्यूट में स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. मीनाक्षी बंसल ने 'पीटीआई-भाषा' को बताया कि मौजूदा वक्त में सामान्य प्रसव की तुलना में सिजेरियन की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। सिजेरियन के कारणों के संबंध में डॉ. मीनाक्षी ने बताया कि पेट में बच्चे की पोजिशन सही ना हो या फिर बच्चा बार-बार अपनी स्थिति बदल रहा हो, बच्चे के गले में नाल उलझ गई हो, बच्चे का विकास ठीक से ना हो पा रहा हो, बच्चे की दिल की धड़कन असामान्य हो गई हो या ऑक्सीजन की कमी हो रही हो, बच्चे का सिर ‘बर्थ कैनाल’ से बड़ा हो, गर्भवती महिला को बीपी या हृदय रोग की समस्या हो, गर्भवती महिला का पहले से सिजेरियन या कोई बड़ा ऑपरेशन हुआ हो, ऐसी अनेक परिस्थितियों में ऑपरेशन से डिलिवरी की जाती है। उन्होंने कहा कि बहुत सी महिलाएं सामान्य प्रसव के दौरान होने वाले दर्द से बचने के लिए ‘सी-सेक्शन’ या सिजेरियन डिलिवरी का विकल्प खुद ही चुन रही हैं, वहीं दूसरी तरफ कुछ महिलाएं मुहूर्त के हिसाब से बच्चे का जन्म कराना चाहती हैं इसलिए भी वह सिजेरियन डिलिवरी को चुन रही हैं। 

(इनपुट- भाषा)

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