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सात वर्ष की बच्ची के साथ दुष्कर्म और हत्या, सुप्रीम कोर्ट ने मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदला, जानें मामला

By भाषा | Updated: February 9, 2022 21:45 IST

न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता के संबंधित प्रावधानों तथा बाल यौन अपराध संरक्षण अधिनियम के तहत व्यक्ति की दोषसिद्धि को बरकरार रखते हुए कहा कि दोषी समय पूर्व रिहाई अथवा 30 वर्ष के वास्तविक कारावास को पूरा करने से पहले छूटने का हकदार नहीं है।

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ठळक मुद्देअक्टूबर 2017 के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर यह आदेश दिया।उच्च न्यायालय ने निचली अदालत द्वारा दोषी को सुनाई गयी मौत की सजा को बरकरार रखा था।निचली अदालत ने दिसंबर 2016 को विभिन्न जुर्म के लिए व्यक्ति को दोषी ठहराया था।

नई दिल्लीः उच्चतम न्यायालय ने सात वर्ष की बच्ची के साथ दुष्कर्म और उसकी हत्या के जुर्म में एक व्यक्ति की मौत की सजा को बुधवार को आजीवन कारावास में बदल दिया। न्यायालय ने कहा कि ऐसा नहीं कहा जा सकता कि दोषी में सुधार और उसके पुनर्वास की कोई संभावना नहीं है।

न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता के संबंधित प्रावधानों तथा बाल यौन अपराध संरक्षण अधिनियम के तहत व्यक्ति की दोषसिद्धि को बरकरार रखते हुए कहा कि दोषी समय पूर्व रिहाई अथवा 30 वर्ष के वास्तविक कारावास को पूरा करने से पहले छूटने का हकदार नहीं है। न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति सी टी रवि की तीन सदस्यीय पीठ ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के अक्टूबर 2017 के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर यह आदेश दिया। उच्च न्यायालय ने निचली अदालत द्वारा दोषी को सुनाई गयी मौत की सजा को बरकरार रखा था।

निचली अदालत ने दिसंबर 2016 को विभिन्न जुर्म के लिए व्यक्ति को दोषी ठहराया था और भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) के तहत उसे मौत की सजा सुनाई थी। पीठ ने कहा,‘‘ वर्ष 2015 में अपराध के वक्त व्यक्ति की आयु 33-34 वर्ष थी। परिस्थितियों और सभी तथ्यों को देखते हुए ,हमारे अनुसार यह उचित और न्यायपूर्ण होगा कि अभियुक्त को भारतीय दंड संहिता की धारा 302के तहत अपराध में आजीवन कारावास की सजा दी जाए और वास्तविक कारावास की अवधि कम से कम 30 वर्ष हो।’’

पीठ ने 98 पेज के अपने फैसले में कहा कि याचिकाकर्ता ने साल वर्ष की बच्ची को फल लाने के बहाने साथ आने का प्रलोभन दिया और उससे दुष्कर्म किया। पीठ ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता ने उसकी हत्या कर और शव एक पुल के पास फेंक दिया।

शीर्ष अदालत ने कहा कि इस मामले में अपराध की जघन्य प्रकृति निश्चित रूप से गंभीर परिस्थितियों का खुलासा करती है साथ ही यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि याचिकाकर्ता का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है, वह बहुत ही गरीब सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि से है, उसका परिवार है और उसका जेल जाने का भी कोई रिकॉर्ड नहीं है।

पीठ ने कहा,‘‘ जब ये सारे तथ्य साथ में जोड़े जाते हैं और यह भी दिखाई देता है कि ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं है जो याचिकाकर्ता की सुधरने और उसके पुनर्वास की संभावना से इनकार करता हो। पीठ ने कहा ‘‘हमारे विचार से इस मामले को ‘‘दुर्लभतम’ की श्रेणी में रखना उचित नहीं होगा।’’ 

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