हर दिन 290 बच्चे हो रहे हैं अपराध का शिकार, कौन है इसका जिम्मेदार?
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Updated: December 14, 2017 16:43 IST2017-12-14T13:30:25+5:302017-12-14T16:43:04+5:30
अपराधिक रिकॉर्ड के मुताबिक भारत में बच्चों की तस्करी, यौन हिंसा, मजदूर श्रम और प्रारंभिक विवाह से लेकर कई खतरों का सामना करते रहे हैं।

हर दिन 290 बच्चे हो रहे हैं अपराध का शिकार, कौन है इसका जिम्मेदार?
कहते हैं बच्चों में भगवान बसे होते हैं, लेकिन आज उन्हीं भगवान रूपी बच्चों को आपराधिक मामलों में लिप्त किया जा रहा है। ऐसे में अपराधिक रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के मुताबिक भारत में बच्चों की तस्करी, यौन हिंसा, मजदूर श्रम और प्रारंभिक विवाह से लेकर कई खतरों का सामना करते रहे हैं। मौजूदा आंकड़े बताते हैं कि प्रत्येक दिन 290 बच्चे अपराध के शिकार हो रहे हैं।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, बच्चों के खिलाफ अपराध दो साल के अंतराल में चार गुना बढ़ोत्तरी हुई है। वहीं, आंकड़े और हालात बता रहे हैं कि वर्तमान में बच्चे देश के सबसे कमजोर समूहों में शामिल हैं। यौन उत्पीड़न, अपहरण या हत्या के शिकार होने वालों में 12 साल से कम उम्र के बच्चों का शोषण अधिक होता है। इनके साथ दुर्व्यवहार ज्यादा है, क्योंकि उनको सही गलत की समझ कम होती है
मौजूद आंकड़े क्या कहते हैं- बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराध 2014 में बच्चों के खिलाफ 89,423 अपराध के मामले सामने आए थे। इसके बाद यह संख्या 2015 में 94,172 तक और अगले वर्ष 1,05,785 रही। 2014 और 2016 के बीच, यौन अपराध अधिनियम (पीओएसको) में बच्चों के संरक्षण के तहत दर्ज अपराधों की संख्या 8,904 से बढ़कर 35,980 हो गई है।
जबकि इस संख्या में लगभग चार गुना की बढ़ोतरी हुई है। वहीं,हम बात दिल्ली की करें तो यहां हर रोज दो बच्चे यौन उत्पीड़न का शिकार हो रहे हैं। जबकि दिल्ली अपराध के आंकड़ों के मुताबिक यहां हर हफ्ते दो से अधिक बच्चे यौन उत्पीड़न की रिपोर्ट दर्ज करते हैं। 31 अक्टूबर के मौजूद आंकड़ों के अनुसार राजधानी पुलिस के विभिन्न पुलिस स्टेशनों में पीओसीएसओ अधिनियम के तहत 73 मामले दर्ज किए गए हैं। मानवतावादी सहायता संगठन द्वारा एक सर्वे भी हाल में करवाया गया है जिसके मुताबिक विश्व विजन इंडिया ने यह बताया है कि हर दो बच्चों में से एक यौन शोषण का शिकार हो रहे हैं। यह सर्वे देश के 26 राज्यों में किया गया था।
डीसीडब्ल्यू की अध्यक्ष के कदम - दिल्ली के महिला आयोग (डीसीडब्ल्यू) इसके खिलाफ आठ दिनों का 'सत्याग्रह' भी किया था। डीसीडब्ल्यू की अध्यक्ष स्वाती मलाली ने इस पर कहा था कि हम चाहते हैं कि केंद्र और राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करना होगा कि छह महीने के भीतर अपराधी को मौत की सजा दी जाए। हाल ही में, एक डेढ़ वर्षीय और सात साल की एक लड़की को राजधानी में बलात्कार किया गया।
वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों का कहना है कि अपराधि के लिए बच्चे सबसे ज्यादा आसान निशाना होते हैं, क्योंकि पीड़ित आमतौर पर अभियुक्तों की पहचान करने में विफल रहते हैं और वे आसानी से बच सकते हैं। अपराध विश्लेषण से पता चला है कि ज्यादातर मामलों में अपराधियों को अपराध करने से पहले बच्चों का विश्वास हासिल करने में कामयाब रहा था। राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग के सूत्रों ने बताया कि सर्वेक्षण में 53% बच्चों ने कहा है कि उन्होंने अपने जीवन में किसी ना किसी रुप में यौन उत्पीड़न का सामना किया है। दिल्ली पुलिस ने मानना है कि इसके लिए साइबरबुलिंग भी एक अहम कारण है।
ऐसे में अब सवाल ये भी उठता है कि जब हर रोज इतनी बड़ी तादात में बच्चे अपराध का शिकार हो रहे हैं तो इसका जिम्मेदार कौन है। समय समय पर ये सवाल उठता रहा है कि किस तरह से इन अपराधों पर जो बच्चों के साथ हुए हैं उन पर रोक लग सके। दिल्ली के इन बढ़ते अपराधों पर जल्द रोक नहीं लगाया गया तो इसका रूप डरावना कहा जा सकता है।