जसप्रीत बुमराह का बचपन: पिता की मौत के बाद मां करती थीं 16 घंटे काम, रुला देगी ये कहानी, सोशल मीडिया पर लिखी पोस्ट वायरल

टी20 विश्वकप में भारतीय टीम की जीत के हीरो जसप्रीत बुमराह के बारें में सोशल मीडिया पर लिखी एक पोस्ट वायरल हो रही है। ये इमोशनल पोस्ट पत्रकार दीपाली त्रिवेदी ने लिखी है। वह बुमराह की मां की दोस्त हैं और बुमराह को बचपन से देखा है।

By शिवेन्द्र कुमार राय | Updated: July 1, 2024 18:00 IST2024-07-01T17:58:05+5:302024-07-01T18:00:04+5:30

Jasprit Bumrah childhood after father death mother used to work 16 hours a day this story will make you cry social media post goes viral | जसप्रीत बुमराह का बचपन: पिता की मौत के बाद मां करती थीं 16 घंटे काम, रुला देगी ये कहानी, सोशल मीडिया पर लिखी पोस्ट वायरल

टी20 विश्वकप में भारतीय टीम की जीत के हीरो रहे जसप्रीत बुमराह

Highlightsबुमराह के बारें में सोशल मीडिया पर लिखी एक पोस्ट वायरलइमोशनल पोस्ट पत्रकार दीपाली त्रिवेदी ने लिखी हैवह बुमराह की मां की दोस्त हैं और बुमराह को बचपन से देखा है

नई दिल्ली: टी20 विश्वकप में भारतीय टीम की जीत के हीरो जसप्रीत बुमराह के बारें में सोशल मीडिया पर लिखी एक पोस्ट वायरल हो रही है। ये इमोशनल पोस्ट पत्रकार दीपाली त्रिवेदी ने लिखी है। वह बुमराह की मां की दोस्त हैं और बुमराह को बचपन से देखा है। नीचे वह भावुक खत है जो दीपाली त्रिवेदी ने भारतीय टीम की जीत के बाद लिखी है।

मेरा क्रिकेट ज्ञान शून्य है। मैं विराट कोहली को सिर्फ अनुष्का शर्मा के पति के रूप में जानती हूं। ख़ैर, यह पोस्ट मेरे हीरो के बारे में है। बात दिसंबर 1993 की है। तब मेरी सैलरी 800 रुपये से भी कम थी। उसी दौरान मेरी सबसे अच्छी दोस्त और पड़ोसी ने मुझे छुट्टी लेने को कहा। वह गर्भवती थी। मैं तब 22-23 साल की थी। उस दिन अहमदाबाद के पालड़ी क्षेत्र के अस्पताल में मैंने पूरा दिन नये मेहमान के इंतज़ार में  बिताया। शाम में मेरी दोस्त दलजीत के पति जसबीर बाहर गए थे। तभी नर्स ने हमारा नाम पुकारा और बाद में एक बच्चा मेरे कांपते हाथों में डाल दिया। यह पहली बार था जब मैंने एक नवजात बच्चे को छुआ था। 

मुझे आज सिर्फ़ यह याद है कि बच्चा दुबला-पतला था। वह मुस्कुराने की कोशिश कर रहा था लेकिन वास्तव में नहीं कर पाया। नर्स ने कहा कि लड़का हुआ। वह पतला,कमजोर था। डॉक्टर उस बच्चे को मेरी गोद से ले गये। मैं और मेरी दोस्त बहुत खुश थी। मैं पहले से ही उसकी बेटी जुहिका की माँ की तरह थी। फिर सब कुछ बॉलीवुड फिल्म की पटकथा की तरह बदला। उस समय गुजरात के सीएम चिमनलाल पटेल का निधन हो गया। मैं पोलिटिकल रिपोर्टर बन गई थी।उसी समय मुझे इंक्रीमेंट मिली। उसी परिवार के साथ आइसक्रीम साझा कर हमने इसे सेलिब्रेट किया। 
हम पड़ोसी होने के नाते सब कुछ साझा करते थे। सुख दुख भी।मेरे पास न फोन था, न फ्रिज और न बिस्तर! हम एक दीवार साझा करते थे और उसका घर मेरे लिए स्वर्ग था।

दुर्भाग्य से, मेरे दोस्त के पति का निधन हो गया। जीवन बेपटरी सी हो गई। हम निराश थे। मानो भगवान हमारा इम्तिहान ले रहा था। उस पूरे महीने, मैंने दोनों बच्चों की देखभाल की। उन्हें पढ़ाया। तब वह लड़का पढ़ने में बिलकुल दिलचस्पी नहीं लेता था और अपनी सस्ती प्लास्टिक की गेंद से खेलने में मशगूल रहता था। मैंने कभी-कभी उसके साथ उसका बिस्कुट खा लेती थी। क्योंकि बच्चों की देखभाल करते करते मुझे भी भूख लगती थी। वह ऐसा कठिन वक़्त था जब हम साथ भूखे रहे, संघर्ष करते थे, रोते थे, लड़ते थे। जुहिका सुंदर बच्ची थी,अपनी मासूम मुस्कान और  आलिंगन से उम्मीद देती थी।जो वह अभी भी देती है।

लेकिन उस छोटे लड़के की मिनिमम ज़रूरत को पूरा करना असल संघर्ष था। हम मुश्किल से उसे अमूल डेयरी का एक पैकेट दिला सकते थे। जैसे-जैसे वह बड़ा हुआ, हम सभी उसकी ज़रूरत को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहे थे। उसकी माँ दिन में 16-18 घंटे काम करती थी। ताकि अपनी बेटी और बेटे को बेहतर कल दे सके। मुझे याद है एक बार मुझे फिर थोड़ी इंक्रीमेंट मिली। मैं वेस्टसाइड गई जो तब सबसे पॉश दुकान थी। मैं कुर्ती ख़रीदना चाहती थी। 

वहाँ वह लड़का भी मेरी दोस्त के साथ था। तब उसकी उमर लगभग 8 साल की रही होगी। वह अपनी माँ के दुपट्टे के पीछे छिपा हुआ। था। मुझे पता चला, उसे एक विंडचीटर चाहिए थी। मैंने कुर्ती ख़रीदने का प्लान ड्राप किया। उसके लिए विंड चीटर ख़रीदी। यह उसके लिए मेरा दिया हुआ इकलौता उपहार था।  मैंने दिवाली, क्रिसमस और अपना जन्मदिन बिना नए कुर्ते के बिताया। लेकिन उसके विंडचीटर ने मुझे राजदीप रणावत या मनीष मल्होत्रा या किसी और के कपड़े पहनने से भी अधिक सुकून दिया। वह अपनी बहन के विपरीत, वह एक शर्मीला और शांत बच्चा था। आज  वह एक लीजेंड है। उसने हमारे  लिए क्रिकेट वर्ल्ड कप जीतने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हर भारतीय को उस पर गर्व है। उसका नाम जसप्रीत बुमराह है। वही लड़का। मैंने उसकी माँ के आग्रह पर उसका एक मैच देखने की कोशिश की लेकिन मैं आधे रास्ते में ही उठकर चली गई क्योंकि मुझे क्रिकेट समझ में नहीं आता।

मैंने यह लंबी पोस्ट इसलिए लिखी है कि कहना चाहती हूँ कि जीवन हार मत मानो। क्योंकि हर रात की सुबह है। मैं ख़ुद को बहुत सौभाग्यशाली मानती हूँ कि मैंने जसप्रीत को सबसे पहले अपने हाथों में लिया था। वह पल आज भी मुझे कठिन हालात सामना करने की आशा देता है। उसकी माँ दलजीत निश्चित रूप से इतने अद्भुत और मजबूत बच्चों को यहाँ तक लाने के सम्मान और सलामी की हकदार  है। कुछ महीने पहले, जसप्रीत की सुंदर पत्नी संजना ने हमें दोपहर का भोजन परोसा। शिष्टता, विनम्रता और शान के साथ। अब  मेरे बच्चे जसप्रीत का अब अपना बेटा है। अंगद। अंगद जसप्रीत से कहीं ज्यादा हैंडसम है!

मैं शायद ही कभी व्यक्तिगत पोस्ट लिखती लेकिन इसलिए लिखा कि कभी भी कितना घुप्प अंधेरा हो,सुबह आती ही है। यही जीवन है।  जसप्रीत बुमराह उसी उम्मीद और हौसले की कहानी है। उन भगवान हम सभी की मदद करेंगे लेकिन पहले हमें खुद अपने हिस्से का संघर्ष जीना होगा। कृपया मेरे बच्चे जसप्रीत बुमराह को विश्व कप जीत के लिए बधाई देने में शामिल हों। सॉरी जसप्रीत, मैंने मैच नहीं देखा लेकिन मैं तुमसे प्यार करती हूँ।

Open in app