‘विदेशी सॉफ्टवेयर विनिर्माता को निवासी भारतीय अंतिम उपयोगकर्ता का भुगतान रायल्टी जैसा कर योग्य नहीं’
By भाषा | Published: March 2, 2021 09:08 PM2021-03-02T21:08:53+5:302021-03-02T21:08:53+5:30
नयी दिल्ली, दो मार्च उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि कंप्यूटर साफ्टवेयर के उपयोग के लिये प्रवासी विदेशी विनिर्माताओं को निवासी भारतीय उपभोक्ताओं या वितरकों द्वारा किया गया भुगतान ‘रॉयल्टी’ की तरह कर योग्य नहीं है।
न्यायाधीश आर एफ नरीमन, न्यायाधीश हेमंत गुप्ता और न्यायाधीश बी आर गवई की पीठ ने कहा कि कंप्यूटर सॉफ्टवेयर में कॉपीराइट के उपयोग के लिये दी जाने वाली राशि रॉयल्टी भुगतान नहीं है तथा भारत में कर योग्य कोई आय नहीं बनती।
पीठ ने कहा, ‘‘प्रवासी कंप्यूटर सॉफ्टवेयर विनिर्माताओं/आपूर्तिकर्ताओं को लाइसेंस समझौतों/वितरण समझौतों के तहत उनके साफ्टवेयर के उपयोग/पुनर्बिक्री के लिये निवासी भारतीय अंतिम उपयोगकर्ता/वितरकों द्वारा किया गया भुगतान कॉपीराइट के उपयोग के एवज में रॉयल्टी भुगतान नहीं है। अत: इस तरह का भुगतान भारत में कर योग्य आय नहीं बनता।’’
न्यायालय ने यह साफ किया कि इस तरह का भुगतान करने वाले व्यक्ति स्रोत पर कर कटौती (टीडीएस) करने की जिम्मेदारी नहीं बनती ।
शीर्ष अदालत ने इस तरह के मुद्दे पर विभन्न अपीलों पर सुनवाई करते हुए आयकर विभाग की याचिका को खारिज कर दिया और करदाताओं की अपीलों को अनुमति दी।
एक मामले में प्रवासी भारतीय कंप्यूटर सॉफ्टवेयर उपयोगकर्ता इंजीनियरिंग एनालिसिस सेंटर ऑफ एक्सीलेंस प्राइवेट लि. ने सीधे अमेरिका से आयात किया था।
आकलन अधिकारी ने पाया कि पक्षों के बीच लेन-देन में जो तथ्य सामने आये, वह कॉपीराइट था। इस तरह का भुगतान ‘रॉयल्टी’ भुगतान होता है। अत: भारतीय आयातक और अंतिम उपयोगकर्ता को इस तरह के भुगतान पर स्रोत पर कर कटौती करने की जरूरत थी और इस मामले में ईएसी (इंजीनियरिंग एनालिसिस सेंटर) पर 1,03,54,784 रुपये का कर बनता है।
कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कहा था कि भारतीय आयातक की जिम्मेदारी बनती थी कि वह टीडीएस काट कर भुगतान करता। इसे शीर्ष अदालत ने खारिज कर दिया।
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