पुण्य प्रसून वाजपेयी का ब्लॉग: क्या बजट पर यू-टर्न लेना पैनिक बटन दबाना है?
By पुण्य प्रसून बाजपेयी | Updated: August 27, 2019 10:02 IST2019-08-27T10:02:14+5:302019-08-27T10:02:14+5:30
डायरेक्ट टैक्स पिछले बार की तुलना में 63,000 करोड़ कम हो गए. फिर विदेशी निवेशकों ने भारत से पैसा निकालना शुरू कर दिया. शेयर बाजार डगमग हुआ. लोगों के सामने भविष्य में सिकुड़ती अर्थव्यवस्था का खाका उभरा. मार्केट से कैश गायब हो गया.

सरकार ने एक ऐसे पैनिक बटन को दबा दिया है जिसके बाद हालात और बिगड़ने वाले हैं. तो यू-टर्न से पड़ने वाले असर को सरल तरीके से समझते हैं.
आम बजट पेश किए जाने के सौ दिन भी पूरे हुए नहीं कि सरकार को यू-टर्न लेना पड़ा. यू-टर्न के निर्णय ने सरकार में भी उम्मीद जगाई कि अब इकोनॉमी पटरी पर लौटेगी. बाकायदा प्रधानमंत्नी मोदी ने विदेश यात्ना पर रहते हुए ट्वीट किया. भरोसा जताया कि अब बिजनेस करना आसान होगा.
बाजार में मांग बढ़ेगी, क्रेडिट बढ़ेगा और अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा. तो क्या वाकई वित्त मंत्नी निर्मला सीतारमण के नए बड़े पांच कदम (सुपर रईसों पर बढ़ा टैक्स हटाना, एंजेल टैक्स खत्म करना, बैंकों को घाटे से उबारने के लिए 70 हजार करोड़ देना, ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री को राहत देते हुए इलेक्ट्रिक वाहन की गति धीमी करना और मकान-वाहन कर्ज में दशमलव तीन फीसदी की कमी करना) से हालात ठीक हो जाएंगे. या फिर सरकार ने एक ऐसे पैनिक बटन को दबा दिया है जिसके बाद हालात और बिगड़ने वाले हैं. तो यू-टर्न से पड़ने वाले असर को सरल तरीके से समझते हैं.
जैसे आप घर का बजट बनाते हैं और उसमें प्राथमिकता ईएमआई, बच्चे की पढ़ाई, रसोई और सफर को देते हैं, वैसे ही सरकार ने सौ रुपए का बनाया. लेकिन 2019-20 के बजट की मुश्किल यह है कि बजट सौ रुपए का बना और पास में सिर्फ 80 रु पए थे. तो उपाय भी दो ही थे. या तो बाकी के बीस रुपए का कहीं से जुगाड़ किया जाए या फिर अपने खर्चे कम कर दिए जाएं.
सरकार ने पहला रास्ता चुना. सुपर रईसों पर टैक्स बढ़ाया, एंजेल टैक्स भी लगाए. रिजर्व बैंक से रुपया निकालने की भी व्यवस्था की. लेकिन झटके में टैक्स के ऐलान के साथ ही टैक्स कलेक्शन में कमी आ गई. डायरेक्ट टैक्स पिछले बार की तुलना में 63,000 करोड़ कम हो गए. फिर विदेशी निवेशकों ने भारत से पैसा निकालना शुरू कर दिया. शेयर बाजार डगमग हुआ. लोगों के सामने भविष्य में सिकुड़ती अर्थव्यवस्था का खाका उभरा. मार्केट से कैश गायब हो गया.
प्रोडक्ट की डिमांड कम हो गई और इसके समानांतर प्रधानमंत्नी मोदी ने लोकप्रिय घोषणाओं में कोई कमी की नहीं. यानी समाजवादी मोदी के किसानों के खाते में 6 हजार रुपए पहुंचाने से लेकर हर को घर सरीखे वादे चलते रहे. लेकिन अब तो सवाल कहीं ज्यादा खतरनाक है. क्योंकि जो सुपर रईस या एंजेल टैक्स से आना था वह नहीं आएगा.
फिर बैंकों को 70 हजार करोड़ और बाजार में पांच लाख करोड़ नकदी डालने की जो बात वित्त मंत्नी ने कही है उसमें सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि जब सरकार के पास पैसा नहीं है और उसने टैक्स लगाया तो अब टैक्स माफ करने के बाद पैसा आएगा कहां से और जिस पांच लाख 70 हजार करोड़ को देने की बात कही गई है वह दिया कहां से जाएगा. जनता के पास कैश है नहीं तो फिर बाजार में प्रोडक्ट की डिमांड बढ़ेगी कैसे?