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बिजली मंत्री ने जलविद्युत अनुबंधों के लिये विवाद समाधान व्यवस्था को मंजूरी दी

By भाषा | Updated: September 29, 2021 16:46 IST

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नयी दिल्ली, 29 सितंबर बिजली मंत्री आर के सिंह ने जल विद्युत परियोजनाओं का क्रियान्वयन कर रहे केंद्रीय सार्वजनिक उद्यमों (सीपीएसई) के निर्माण अनुबंधों के लिये विवाद निपटान व्यवस्था बनाये जाने को मंजूरी दे दी है। बिजली मंत्रालय ने बुधवार को एक बयान में यह जानकारी दी।

विवाद निपटान व्यवस्था में परियोजना विशेष के लिये क्षेत्र की जानकारी रखने वाले स्वतंत्र इंजीनियरों की एक टीम नियुक्त करने का प्रावधान किया गया है। स्वतंत्र इंजीनियरों का यह दल सभी प्रमुख हितधारकों के साथ सीधे बात करेगा और वह परियोजना की नियमित निगरानी कर सकता है। साथ ही ठेकेदार तथा नियोक्ता के बीच विवाद न हो इसके लिए प्रभावी भूमिका निभा सकता है।

मंत्रालय ने बयान में कहा, ‘‘केंद्रीय बिजली और नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री आर के सिंह ने स्वतंत्र इंजीनियरों के जरिये विवाद समाधान व्यवस्था बनाये जाने को मंजूरी दी है।’’

इसमें कहा गया है कि तीसरे पक्ष के रूप में ‘स्वतंत्र इंजीनियरों’ की अगुवाई में एक टीम की नियुक्ति करना अनिवार्य है। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रमुख बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में इस तरह के स्वतंत्र इंजीनियरों की टीम का व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाता है। स्वतंत्र इंजीनियरों की टीम के पास परियोजना के बारे में विशेषज्ञता होने के साथ वाणिज्यिक और कानूनी सिद्धांतों के विषय में जानकारी होती है।

बयान के अनुसार यह व्यवस्था प्रारंभिक असहमति के मुद्दों को बातचीत से हल निकालकर उसे विवाद के रूप में लेने से रोकेगी। साथ ही उचित और निष्पक्ष तरीके से असहमति के बिंदु को शीघ्र समाप्त करने का प्रयास करेगी। इससे समय और पैसे की बर्बादी रोकने में मदद मिलेगी और परियोजनाओं का काम समय पर पूरा करना सुनिश्चित किया जा सकेगा।

जलविद्युत क्षेत्र से जुड़े सीपीएसई लागतार इस बात को लेकर सवाल उठाते रहे हैं कि जलविद्युत क्षेत्र में विवाद समाधान का वर्तमान तंत्र नियोक्ता और ठेकेदार के बीच विवाद सुलझाने के लिए पर्याप्त नहीं है।

इसको देखते हुए क्षेत्र से जुड़े मुद्दों और और इनके समाधान को लेकर आने वाली कठिनाइयों का अध्ययन करने के लिए निदेशक मंडल स्तर के अधिकारियों की एक समिति का गठन किया गया था।

समिति ने पाया कि अनुबंधों के क्रियान्वयन से संबंधित असहमति या दावों के समाधान में देरी के परिणामस्वरूप वास्तव में समय और परियोजना लागत के अलावा महत्वपूर्ण वित्तीय तथा आर्थिक नुकसान होता है।

समिति की रिपोर्ट के अनुसार स्थापना के चरण में अनुबंधों से संबंधित असहमति का उचित और न्यायसंगत समाधान, निर्धारित समयसीमा के अनुसार अनुबंध के पूरा होने के लिये जरूरी है। इससे बजट का प्रभावी उपयोग, समय और पैसे की बर्बादी रोकने में मदद मिल सकती है।

विवाद समाधान व्यवस्था के तहत मंत्रालय पारदर्शी और निष्पक्ष चयन प्रक्रिया को अपनाकर ईमानदार और बेहत रिकॉर्ड वाले क्षेत्र के विशेषज्ञों की एक समिति तैयार करेगा।

इसके अलावा, समिति में कोई भी बदलाव केवल मंत्रालय ही करेगा। मंत्रालय नियमित अंतराल पर पैनल को नवीनीकरण भी करता रहेगा।

केंद्रीय लोक उपक्रम और ठेकेदार संयुक्त रूप से कार्यों के प्रत्येक खंड के लिए विशेषज्ञों की उपरोक्त समिति से केवल एक सदस्य का चयन करेंगे। विशेषज्ञ को प्रत्येक अनुबंध के लिए स्वतंत्र इंजीनियर (आईई) के रूप में नामित किया जाएगा।

आईई किसी मामने में विवाद होने या पक्षों द्वारा कोई मुद्दा उठाने पर मामले की जांच करेगा। प्रारंभिक सुनवाई के आधार पर आईई असहमति की संख्या और प्रकृति के आधार पर समाधान समयरेखा निर्धारित करेगा जो अधिकतम तीस (30) दिन की अवधि या असाधारण परिस्थितियों में विस्तारित समयसीमा के भीतर होगा। इसके लिये कारणों को लिखित दर्ज करने की जरूरत होगी।

आईई की नियुक्ति की प्रारंभिक अवधि पांच वर्ष या अनुबंध अवधि, जो भी कम हो, के लिए होगी। सीपीएसई और ठेकेदार के बीच पारस्परिक सहमति होने पर इसे वर्ष-दर-वर्ष आधार पर नवीनीकृत किया जा सकता है। हालांकि, आईई की नियुक्ति में उसकी सहमति और मंत्रालय की अंतिम मंजूरी जरूरी है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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