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one nation, one election: एक साथ चुनाव कराने से जीडीपी में 1.5 प्रतिशत अंक की वृद्धि?, विशेषज्ञों ने जेपीसी से कहा- 4.5 लाख करोड़ रुपये की वृद्धि का अनुमान

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: July 31, 2025 03:53 IST

one nation, one election: विशेषज्ञों ने 2023-24 के आंकड़ों के संदर्भ में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 4.5 लाख करोड़ रुपये की वृद्धि का अनुमान व्यक्त किया।

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ठळक मुद्देचुनाव के बाद खर्च बढ़ने से राजकोषीय घाटा भी 1.3 प्रतिशत अंक बढ़ने की उम्मीद है।1967 तक देश में एक साथ चुनाव होते थे।लोकसभा और विधानसभा चुनाव अलग-अलग होने लगे थे।

one nation, one election: वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एन. के. सिंह और एक अन्य विशेषज्ञ ने ‘एक साथ चुनाव’ कराने का आर्थिक पक्ष बुधवार को संसदीय समिति के समक्ष रखते हुए कहा कि इससे वास्तविक ‘जीडीपी’ वृद्धि में 1.5 प्रतिशत अंक की बढ़ोतरी हो सकती है, पूंजीगत व्यय बढ़ सकता है और निवेश गतिविधियां बढ़ सकती हैं। सूत्रों ने यह जानकारी दी। 'एक राष्ट्र एक चुनाव' (ओएनओई) के लिए संविधान संशोधन विधेयक पर विचार कर रही संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के समक्ष अपनी संयुक्त प्रस्तुति में, विशेषज्ञों ने 2023-24 के आंकड़ों के संदर्भ में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 4.5 लाख करोड़ रुपये की वृद्धि का अनुमान व्यक्त किया। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि चुनाव के बाद खर्च बढ़ने से राजकोषीय घाटा भी 1.3 प्रतिशत अंक बढ़ने की उम्मीद है।

पूर्व राजस्व सचिव सिंह तथा अर्थशास्त्र की प्रोफेसर एवं अशोका यूनिवर्सिटी में आइजैक सेंटर फॉर पब्लिक पॉलिसी की प्रमुख व निदेशक प्राची मिश्रा ने देश में चुनावों के क्रम का अध्ययन किया, क्योंकि 1967 तक देश में एक साथ चुनाव होते थे, लेकिन उसके बाद से लोकसभा और विधानसभा चुनाव अलग-अलग होने लगे थे।

सूत्रों ने बताया कि जीडीपी में अपेक्षित वृद्धि कुल स्वास्थ्य बजट के लगभग आधे या शिक्षा बजट के एक तिहाई के बराबर है। सूत्रों के अनुसार, विशेषज्ञों ने कहा कि बार-बार होने वाले चुनावों से अनिश्चितता की स्थिति बनने के कारण आर्थिक गतिविधियां प्रभावित होती हैं, जिससे विनिर्माण, निर्माण, पर्यटन और स्वास्थ्य सेवा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, प्रवासी श्रमिक बार-बार अपने मूल स्थान पर लौटते हैं और उत्पादकता पर असर पड़ता है। उन्होंने उल्लेख किया कि प्रवासी, भारत की आबादी का लगभग एक तिहाई हिस्सा हैं तथा बार-बार चुनाव कराने से उन पर भी वित्तीय बोझ पड़ता है।

उन्होंने कहा कि शिक्षकों को चुनावी ड्यूटी पर तैनात करने और स्कूलों को मतदान केंद्रों में परिवर्तित करने के कारण, स्कूल नामांकन में भी 0.5 प्रतिशत की कमी आती है। उन्होंने तर्क दिया कि पुलिसकर्मियों को बार-बार चुनावी कार्यों में लगाए जाने के चलते चुनावों के दौरान आपराधिक घटनाएं बढ़ जाती हैं।

वर्ष 1986 के बाद से भारत में एक भी साल ऐसा नहीं रहा, जब चुनाव नहीं हुए हों और इस कारण देश लगातार चुनावी माहौल में रहा। सूत्रों ने प्रस्तुति का हवाला देते हुए बताया कि इससे लोकलुभावन वादे बढ़ जाते हैं। सिंह ने कहा कि बार-बार होने वाले चुनाव अस्थायी कल्याणकारी योजनाओं को बढ़ावा देते हैं। 

टॅग्स :एक देश एक चुनावसंसद मॉनसून सत्र
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