मुंबई, आठ नवंबर भारत अब वित्तीय समावेशन के मामले में चीन से आगे है। देश में मोबाइल और इंटरनेट बैंकिंग लेनदेन 2020 में प्रति 1,000 वयस्कों पर 13,615 पर पहुंच गया है, जो 2015 में 183 था। 2020 में बैंक शाखाओं की संख्या प्रति एक लाख वयस्कों पर 14.7 तक पहुंच गई, जो 2015 में 13.6 थी। यह संख्या जर्मनी, चीन और दक्षिण अफ्रीका से अधिक है। एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है।
नोटबंदी की पांच साल पूरे होने पर भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) समूह के मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट के मुताबिक, उच्च वित्तीय समावेशन/अधिक बैंक खातों वाले राज्यों में शराब और तंबाकू की खपत में सार्थक गिरावट के साथ-साथ अपराध में भी गिरावट देखी गई है।
नॉन-फ्रिल (शून्य बैलेंस खाते या सुलभता से खोले जाने वाले वाले खाते) खाता योजना के तहत, बैंकों में जमा खातों वाले व्यक्तियों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जो उभरती अर्थव्यवस्थाओं और यहां तक कि कुछ विकसित अर्थव्यवस्थाओं के तुल्य हो गई है।
डिजिटल भुगतान के उपयोग के मामले में भी उल्लेखनीय प्रगति हुई है।
वित्तीय समावेशन अभियान के पिछले सात वर्षों के दौरान, खोले गए नो-फ्रिल बैंक खातों की संख्या 20 अक्टूबर, 2021 तक 1.46 लाख करोड़ रुपये जमा के साथ 43.7 करोड़ तक पहुंच गई है। इनमें से लगभग दो-तिहाई ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में हैं। इनमें से 78 प्रतिशत से अधिक खाते सरकारी बैंकों के पास हैं, 18.2 प्रतिशत क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के पास हैं, और तीन प्रतिशत निजी क्षेत्र के बैंकों द्वारा खोले गए हैं।
इस अवधि के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों में बैंक शाखाओं की संख्या मार्च, 2010 के 33,378 से बढ़कर दिसंबर 2020 में 55,073 हो गई है। गांवों में बैंकिंग आउटलेट/बैंकिंग प्रतिनिधियों (बीसी) की संख्या मार्च, 2010 के 34,174 से बढ़कर दिसंबर, 2020 में 12.4 लाख हो गई है।
इस अवधि के दौरान प्रति एक लाख वयस्कों पर वाणिज्यिक बैंक शाखाओं की संख्या 13.5 से बढ़कर 14.7 हो गई। बैंकों में जमा खातों की संख्या प्रति हजार व्यस्क 1,536 से बढ़कर 2,031 हो गई, ऋण खातों की संख्या 154 से 267 हो गई, और मोबाइल और इंटरनेट बैंकिंग लेनदेन की संख्या 183 से बढ़कर 13,615 हो गई।
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने कुल 44 करोड़ नो-फ्रिल खातों में से 34 करोड़ और निजी क्षेत्र के बैंकों ने इनमें से सिर्फ 1.3 करोड़ खाते खोले हैं।
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