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इफको ने कृषि, नैनो प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में संयुक्त शोध के लिए आईआईटी-दिल्ली से हाथ मिलाया

By भाषा | Updated: August 3, 2021 20:50 IST

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नयी दिल्ली, तीन अगस्त उर्वरक सहकारिता इफको ने मंगलवार को कहा कि उसने नैनो प्रौद्योगिकी सहित कृषि और उर्वरकों के क्षेत्र में संयुक्त अनुसंधान के लिए आईआईटी, दिल्ली के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं।

इफको ने एक बयान में कहा कि उसके नैनो बायोटेक्नोलॉजी रिसर्च सेंटर (एनबीआरसी) ने अनुसंधान परामर्श, ज्ञान हस्तांतरण और सहयोगी परियोजनाओं के लिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) दिल्ली के साथ एक समझौता ज्ञापन (समझौता ज्ञापन) पर हस्ताक्षर किए हैं।

इफको ने कहा कि इसका उद्देश्य अत्यधिक उन्नत कृषि तकनीकी परियोजनाओं को विकसित करना और वर्ष 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने के लिए देश में सटीक खेती और टिकाऊ विकास को बढ़ावा देना है।

बयान में कहा गया है, ‘‘यह सहयोग आईआईटी दिल्ली और इफको की प्रयोगशालाओं को साझा करने और अनुसंधान परामर्श प्रदान करने के माध्यम से केंद्रित संयुक्त अनुसंधान पर जोर देता है।’’

यह समझौता ज्ञापन कृषि के क्षेत्र में अनुसंधान और तकनीकी विकास के दायरे को विस्तृत करेगा।

यह भविष्य के अनुप्रयोगों के लिए नैनो प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उन्नत अनुसंधान की सुविधा प्रदान करेगा।

इफको के वैज्ञानिक एवं इंजीनियर, चुनौतीपूर्ण कृषि और पर्यावरण संबंधी समस्याओं को हल करने के मकसद से एक अभिनव समाधान खोजने के लिए आईआईटी दिल्ली के अकादमिक अनुसंधान संकाय और विद्वानों के साथ काम करेंगे।

इफको के प्रबंध निदेशक यूएस अवस्थी ने कहा, ‘‘इफको में हम हमेशा नई तकनीकों को अपनाने के लिए तत्पर रहते हैं ताकि हम जमीनी स्तर पर किसान के लाभ को बढ़ा सकें।’’

आईआईटी दिल्ली के निदेशक वी रामगोपाल राव ने कहा, “अनुसंधान और नवाचारों को प्रोत्साहन देना, हमें आधुनिक कृषि प्रणाली को प्राप्त करने में मदद करेगा, जो देश के किसानों के लिए फायदेमंद होगा। आईआईटी दिल्ली को इफको के साथ सहयोग करने और परस्पर हित वाली भविष्य की प्रौद्योगिकियों पर मिलकर काम करने में खुशी हो रही है।

इससे पहले इफको ने कलोल में इफको के नैनो बायोटेक्नोलॉजी रिसर्च सेंटर में विकसित एक मालिकाना तकनीक के माध्यम से दुनिया का पहला नैनो यूरिया लिक्विड (तरल) पेश किया।

बयान में कहा गया है कि इफको नैनो यूरिया लिक्विड की 500 मिलीलीटर की बोतल पारंपरिक यूरिया के कम से कम एक बैग के बराबर होती है, जिससे किसानों की लागत कम हो जाती है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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