वित्त वर्ष 2025-26ः 7 प्रतिशत की दर से बढ़ सकती भारतीय अर्थव्यवस्था, रिपोर्ट देख और घबराएंगे राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप?
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: October 29, 2025 15:20 IST2025-10-29T15:19:39+5:302025-10-29T15:20:20+5:30
Financial Year 2025-26: ‘भारत समुद्री सप्ताह’ (आईएमडब्ल्यू) में कहा कि साख (रेटिंग) निर्धारण करने वाली तीन वैश्विक एजेंसियों ने हाल ही में भारत की साख बढ़ाई है और यदि देश इसी राह पर आगे बढ़ता रहा तो वह जल्द ही ‘ए’ रेटिंग श्रेणी में आ सकता है।

सांकेतिक फोटो
मुंबईः मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) वी. अनंत नागेश्वरन ने बुधवार को कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था ने वैश्विक चुनौतियों का संतोषजनक ढंग से सामना किया है। उन्होंने भरोसा जताया कि वित्त वर्ष 2025-26 में आधार वर्ष 2011-12 पर आधारित सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर सात प्रतिशत तक पहुंच सकती है। नागेश्वरन ने यहां ‘भारत समुद्री सप्ताह’ (आईएमडब्ल्यू) में कहा कि साख (रेटिंग) निर्धारण करने वाली तीन वैश्विक एजेंसियों ने हाल ही में भारत की साख बढ़ाई है और यदि देश इसी राह पर आगे बढ़ता रहा तो वह जल्द ही ‘ए’ रेटिंग श्रेणी में आ सकता है।
शिक्षाविद से नीति सलाहकार बने नागेश्वरन ने कहा कि अर्थव्यवस्था के जुझारूपन ने सरकार एवं भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा उठाए गए कदमों के साथ मिलकर भारतीय अर्थव्यवस्था को ‘‘आरामदायक स्थिति" में रखा। उन्होंने कहा, ‘‘ इस साल वैश्विक अनिश्चितताओं एवं शुल्क संबंधी घटनाक्रमों से निपटने की भारतीय अर्थव्यवस्था के रुख से हमें काफी संतुष्ट होना चाहिए।’’
मुख्य आर्थिक सलाहकार ने कहा कि आयकर में राहत एवं माल एवं सेवा कर (जीएसटी) को युक्तिसंगत बनाने सहित नीतिगत उपायों ने ‘‘ वित्त वर्ष 2025-26 के लिए वास्तविक रूप से इस वर्ष की आर्थिक वृद्धि की संभावनाओं को बेहतर बनाकर करीब सात प्रतिशत तक पहुंचा दिया है।’’
नागेश्वरन ने फरवरी में अनुमान लगाया था कि चालू वित्त वर्ष में आधार वर्ष 2011-12 के आधार पर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर 6.3 प्रतिशत तक रह सकती है। हालांकि, अमेरिकी शुल्क के कारण उन्होंने इसे और घटाकर छह प्रतिशत कर दिया था।
उन्होंने कहा, ‘‘ हालांकि, अर्थव्यवस्था की मजबूती और मांग बढ़ाने के लिए समय पर उठाए गए नीतिगत कदमों ने हमें वास्तव में एक बहुत ही आरामदायक स्थिति में ला दिया है।’’ बैंक ऋण वृद्धि में सुस्ती की आलोचना का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि किसी निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए हमें अर्थव्यवस्था में कुल संसाधन जुटाने पर गौर करना चाहिए।
जिसमें गैर-बैंक ऋणदाताओं, वाणिज्यिक पत्र, जमा प्रमाणपत्र, इक्विटी बाजार आदि के माध्यम से जुटाई गई धनराशि भी शामिल है। आरबीआई के आंकड़ों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि पिछले छह साल में अर्थव्यवस्था में कुल संसाधन जुटाने में 28.5 प्रतिशत सालाना की वृद्धि हुई है। यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब निजी पूंजीगत व्यय में सुस्त वृद्धि को लेकर व्यापक चिंता व्याप्त है।
नागेश्वरन ने जोर देकर कहा कि आरबीआई ने नीतिगत ब्याज दरों में कटौती की है और अर्थव्यवस्था में ‘‘पर्याप्त धन उपलब्धता’’ सुनिश्चित करने के लिए नकदी उपाय किए हैं। इसी कार्यक्रम में ही अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण के चेयरमैन के. राजारामण ने कहा कि प्राधिकरण को उम्मीद है कि पोत-परिवहन, बंदरगाहों और समुद्री उद्योग की कोष की आवश्यकता 300 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक होंगी। यह राशि जुटाने के लिए ‘गिफ्ट सिटी’ एक अच्छा विकल्प हो सकता है।