कानूनी बाध्यकारी नहीं होना चाहिये सीएसआर, भीतर से आनी चाहिये समाजसेवा: अजीम प्रेमजी

By भाषा | Updated: February 20, 2021 20:53 IST2021-02-20T20:53:57+5:302021-02-20T20:53:57+5:30

CSR should not be legally binding, social service should come from within: Azim Premji | कानूनी बाध्यकारी नहीं होना चाहिये सीएसआर, भीतर से आनी चाहिये समाजसेवा: अजीम प्रेमजी

कानूनी बाध्यकारी नहीं होना चाहिये सीएसआर, भीतर से आनी चाहिये समाजसेवा: अजीम प्रेमजी

नयी दिल्ली, 20 फरवरी सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) क्षेत्र के कारोबारी एवं परोपकारी अजीम प्रेमजी ने शनिवार को कहा कि कंपनियों को कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) के लिये कानूनी रूप से बाध्य नहीं किया जाना चाहिये। उन्होंने कहा कि समाज में ऐसे योगदान स्वत: आने चाहिये।

प्रेमजी ने पिछले साल 7,904 करोड़ रुपये दान में दिये थे।

उन्होंने यह भी कहा कि कोविड-19 संकट स्वास्थ्य जैसी सार्वजनिक प्रणालियों को बेहतर बनाने जैसे मूलभूत मुद्दों तथा अधिक बराबरी वाली व्यवस्था के लिये समाज की संरचना में बदलाव की ओर ध्यान आकृष्ट करने का अवसर था।

प्रेमजी ने कहा, ‘‘मुझे नहीं लगता कि सीएसआर करने के लिये हमें कंपनियों के ऊपर कानून थोपने चाहिये। परोपकार या दान या समाज में योगदान स्वत: आना चाहिये। इसे बाहर से अनिवार्य नहीं किया जा सकता। लेकिन यह मेरा निजी विचार है।

अब, यह कानून है और सभी कंपनियों को इसका पालन करना है।’’

उन्होंने कहा, यह महत्वपूर्ण है कि व्यक्तिगत परोपकार एक कंपनी के सीएसआर प्रयासों से अलग हो।

उन्होंने अखिल भारतीय प्रबंधन संगठन (एआईएमए) के एक कार्यक्रम में ये बातें कहीं। उन्हें इस कार्यक्रम में एआईएमए लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड प्रदन किया गया।

प्रेमजी ने कहा कि महामारी का असमान प्रभाव पड़ा है और हाशिये के वर्ग को अधिक परेशान होना पड़ा है। इससे असमानता काफी बढ़ी है।

उन्होंने हर किसी से यथासंभव शीघ्रता से परोपकार की राह अपनाने का भी आह्वान किया। उन्होंने कहा, ‘‘भले ही आप छोटे से शुरू करें, लेकिन अभी शुरू करें। संस्थान बनाने और मदद के कार्यक्रमों का समर्थन करने का प्रयास करें। हमारे पास सिविल सोसाइटी संस्थानों का एक मजबूत समूह होना चाहिये, जिसमें आप योगदान कर सकते हैं। व्यवसाय में आपके अनुभव ने आपको बड़े पैमाने पर निर्माण करने के योग्य बनाया है। यह राष्ट्र निर्माण का एक अभिन्न हिस्सा है।’’

प्रेमजी ने विप्रो को महज वनस्पति तेल बनाने वाली कंपनी से अरबों डॉलर वाली विविध व्यवसाय कंपनी में बदल दिया। वह भारत के सबसे धनी व्यक्तियों में से एक हैं और उन्होंने अपने धन का एक बड़ा हिस्सा परोपकारी कार्यों के लिये दान कर दिया है।

प्रेमजी ने कहा कि उनकी मां और महात्मा गांधी के विचारों ने इस विषय पर उनके दृष्टिकोण को आकार देने में एक प्रमुख भूमिका निभायी है।

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