बनारस की फिजा बदली?, 2014 में 54.89 लाख पर्यटक काशी पहुंचे और 2025 में 146975155, देखिए 10 साल में 45.44 करोड़ भारतीय-विदेशी गलियों और घाटों की सैर

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: December 27, 2025 11:27 IST2025-12-27T11:26:04+5:302025-12-27T11:27:21+5:30

गुलेरिया घाट से भोंसले घाट के बीच नाव चलाने वाले 27 वर्षीय राम लखन मल्लाह ने कहा कि मोदी (प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी) के बनारस से सांसद बनने के बाद शहर में बहुत बदलाव आया है।

Banaras figures 54-89 lakh tourists visited Kashi in 2014 and 146975155 in 2025 in 10 years 45-44 crore Indian foreign tourists visited streets ghats of Kashi | बनारस की फिजा बदली?, 2014 में 54.89 लाख पर्यटक काशी पहुंचे और 2025 में 146975155, देखिए 10 साल में 45.44 करोड़ भारतीय-विदेशी गलियों और घाटों की सैर

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Highlightsअब टूरिस्ट लोग ज्यादा आ रहे हैं। नाव चलाने के लिए हर घाट का ठेका छूटता है।केवल माझी ही घाट का ठेका हासिल कर पाते हैं।

वाराणसीः बनारस के शिवाला घाट पर अंधेरा उतर रहा है, पर्यटकों से भरीं मोटरबोट गंगा के सीने को चीरती हुईं एक घाट से दूसरे घाट पर जा रही हैं। शिवाला घाट के किनारे मंच सज चुका है और कोई छह सौ, सात सौ लोगों की भीड़ बेसब्री से एक सांस्कृतिक समारोह के शुरू होने का इंतजार कर रही है। कुछ ही देर में घाट की सीढियों पर जब अंधेरा छा गया, मोटरबोटों पर लगी बत्तियां लहरों पर तैरते रश्‍मि द्वीपों सी झिलमिलाने लगीं है। बनारस की फिजा में पिछले एक दशक में काफी बदलाव आया है, घाट साफ सुथरे नजर आते हैं, पर्यटकों की आवाजाही बढ़ी है और स्थानीय लोगों का कहना है कि रोजगार के अवसर भी बढ़े हैं। गुलेरिया घाट से भोंसले घाट के बीच नाव चलाने वाले 27 वर्षीय राम लखन मल्लाह ने कहा कि मोदी (प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी) के बनारस से सांसद बनने के बाद शहर में बहुत बदलाव आया है।

रोजाना लगभग 12 घंटे गंगा के पाट पर नाव चलाने वाले राम लखन ने बताया,‘‘अब टूरिस्ट लोग ज्यादा आ रहे हैं। और मल्लाहों को काम भी ज्यादा मिल रहा है। रोजगार भी बढ़ गया है।’’ राम लखन को हालांकि इस बात का अफसोस है कि वह 12 घंटे काम करके भी केवल 12 हजार रुपये महीना ही कमा पाता है। उसका कहना था कि गंगा में नाव चलाने के लिए हर घाट का ठेका छूटता है।

और केवल माझी ही घाट का ठेका हासिल कर पाते हैं। राम लखन का कहना था,‘‘मल्लाह सब गरीब हैं। वे सब किराये की नौकाएं चलाते हैं जो घाट का ठेका हासिल करने वाले माझी की होती हैं।’’ उसका सपना है कि एक दिन वह पैसा जोड़कर अपनी खुद की नाव खरीदे। ये अलग बात है कि गरीबी के चलते उसे अपना सपना साकार होता नजर नहीं आता।

राम लखन ने बताया कि बनारस में नवंबर से फरवरी तक पर्यटकों का सीजन रहता है और घाट अब पहले के मुकाबले बहुत साफ सुथरे हैं। उसने बताया कि नगर निगम के कर्मचारी तीन पालियों में घाट पर साफ-सफाई का काम करते हैं। वाराणसी में गंगा नदी के किनारे 88 घाट हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख और पौराणिक रूप से महत्वपूर्ण घाटों में अस्सी घाट, दशाश्वमेध घाट, मणिकर्णिका घाट, पंचगंगा घाट, और राजेंद्र प्रसाद घाट शामिल हैं। इनमें से कुछ घाट स्नान, पूजा और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए उपयोग किए जाते हैं तथा दो घाटों (मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र) का केवल श्मशान के रूप में विशेष महत्व है।

दशाश्वमेध घाट पर गंगा आरती हो रही है, लोगों की भारी भीड़ उसे देखने को जुटी है, गंगा की लहरों में रौशनी झिलमिला रही है, कहीं कहीं श्रद्धालुओं द्वारा विसर्जित किए गए दीप भी लहरों में तैर रहे हैं। कुछ ही दूरी पर मणिकर्णिका घाट पर कोई बीसियों चिताएं एक साथ जल रही हैं। मुंबई से आयीं 55 वर्षीय एक पर्यटक रिद्धि श्रीवास्तव ने इस बात को स्वीकार किया कि पिछले कुछ वर्षों से पहले की तुलना में साफ सफाई की अच्छी व्यवस्था है। उनका कहना था कि गंगा का पानी भी पहले से काफी साफ है। बनारस में एक सिरे से लेकर दूसरे सिरे तक 88 घाटों की लंबाई करीब छह किलोमीटर है।

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पिछले दिनों जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार साल 2014 में जहां केवल 54.89 लाख पर्यटक काशी आए थे, वहीं 2025 (सितंबर तक) में यह संख्या बढ़कर 14,69,75,155 हो गई। 2014 से लेकर सितंबर 2025 के बीच कुल 45.44 करोड़ से ज्यादा भारतीय और विदेशी पर्यटकों ने काशी की गलियों और घाटों की सैर की है।

सरकार का दावा है कि साल 2025 में वाराणसी पहुंचने वाले पर्यटकों की संख्या 14.69 करोड़ के पार पहुंच गई है, जो 2014 के मुकाबले 25 गुना से भी ज्यादा है। हालांकि 25 वर्षीय टैक्सी चालक हैप्पी शहर के स्वरूप में किए जा रहे बदलाव से खुश नहीं हैं। शहर के सबसे पुराने इलाके दाल मंडी में सड़क को चौड़ा करने के लिए ध्वस्तीकरण अभियान चल रहा है।

इसे लेकर हैप्पी नाराज हैं। उनका कहना था,‘‘ लोगों की रोजी रोटी खत्म हो रही है। दाल मंडी, नई सड़क और कई इलाकों में जिन लोगों की सालों पुरानी खानदानी दुकानें थीं, उन्हें तोड़ दिया गया है। लोगों में नाराजगी है।’’ हालांकि पचास वर्षीय टैक्सी चालक अनूप सिंह इस बात से खुश हैं कि शहर की सड़कें चौड़ी हो गयी हैं और काशी विश्वनाथ कॉरिडोर बनने से ज्यादा संख्या में पर्यटक बनारस में आ रहे हैं।

उन्होंने ‘भाषा’ से बातचीत में कहा,‘‘अब शहर में जाम भी कम लगता है, पुलिस व्यवस्था चौबीसों घंटे चाक चौबंद रहती है। कोई भी घटना होने पर पांच सात मिनट में पुलिस मौके पर पहुंच जाती है।’’ रिद्धि ने भी इस बात की पुष्टि करते हुए कहा कि घाटों पर महिलाएं, लड़कियां रात को तीन बजे भी घूम सकती हैं, कहीं कोई डर या खतरा महसूस नहीं होता।

शिवाला घाट पर पिछले नौ साल से नींबू की मसाला चाय बेचने वाले 32 वर्षीय उज्ज्वल विश्वास ने कहा,‘‘मोदी जी के आने से नदी भी साफ हुई है। पहले लोग घाटों के किनारे पोस्टमार्टम वाली लाशों को बहा जाते थे, लावारिस शव किनारे पर आ लगते थे। वरूणा नदी का पानी सडांध मारता था।’’ उन्होंने कहा,‘‘ लेकिन अब गंगा घाट पर एक फूल तक आपको पड़ा हुआ दिखाई नहीं देगा। गंगा भी साफ हो गई है।’’

उज्ज्वल विश्वास का कहना था कि बनारस का बहुत प्रचार हो रहा है और गंगा घाटों पर होने वाली आरती तथा अन्य सांस्कृतिक आयोजनों को देखने के लिए आने वाले पर्यटकों की संख्या बढ़ी है। मसाला चाय बेचकर अब उन्हें भी पहले से ज्यादा आमदनी होने लगी है।

छत्तीसगढ़ के खैरागढ़ से मास्टर आफ फाइन आर्ट्स की डिग्री हासिल करने वाले 30 वर्षीय चित्रकार आशीष मिश्रा अस्सी घाट पर नियमित रूप से अपने चित्रों की प्रदर्शनी लगाते हैं। वह पिछले 18 साल से बनारस के घाटों की ही पेंटिंग्स बना रहे हैं। आशीष कहते हैं, ‘‘ विकास देखकर अच्छा लगता है लेकिन व्यावहारिक रूप में देखें तो आमदनी में ज्यादा इजाफा नहीं हुआ है।’’

Web Title: Banaras figures 54-89 lakh tourists visited Kashi in 2014 and 146975155 in 2025 in 10 years 45-44 crore Indian foreign tourists visited streets ghats of Kashi

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