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कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन के लिए चर्चा में रहा 2021

By भाषा | Updated: December 28, 2021 16:20 IST

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(लक्ष्मी देवी)

नयी दिल्ली, 28 दिसंबर भारत ने इस साल जहां रिकॉर्ड खाद्यान्न उत्पादन स्तर हासिल किया, वहीं सरकार को तीन विवादास्पद कृषि-सुधार कानूनों को वापस लेना पड़ा। इसके अलावा साल के दौरान खाद्य तेल की महंगाई से देश के उपभोक्ता परेशान रहे। अब महामारी से जुड़ी तमाम दिक्कतों के बीच वर्ष 2022 में भी बेहतर उपज की उम्मीद की जा रही है।

देश में खाद्यान्न का उत्पादन निरंतर बढ़ रहा है, जिससे सरकार को कई महीनों तक कोविड प्रभावित गरीब परिवारों के लिए मुफ्त अतिरिक्त राशन प्रदान करने में मदद मिली। वहीं दूसरी ओर इस साल तीन विवादास्पद कृषि कानून चर्चा में रहे। इन कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर किसानों के लंबे विरोध के बाद इन्हें निरस्त किया गया।

महामारी के बीच के बीच भारतीय कृषि क्षेत्र उन क्षेत्रों में से एक था, जिसने शानदार प्रदर्शन किया। कृषि क्षेत्र द्वारा मार्च, 2022 को समाप्त होने वाले चालू वित्त वर्ष में 3.5 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज करने की उम्मीद है।

जून में समाप्त हुए फसल वर्ष 2020-21 में खाद्यान्न उत्पादन अब तक के उच्चतम स्तर 30 करोड़ 86.5 लाख टन को छू गया। चालू फसल वर्ष में उत्पादन 31 करोड़ टन तक पहुंच सकता है।

सरकार ने किसानों के लाभ के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर भारी मात्रा में गेहूं, चावल, दाल, कपास और तिलहन की खरीद की।

वर्ष 2020-21 के दौरान धान और गेहूं की खरीद क्रमश: रिकॉर्ड 894.18 लाख टन और 433.44 लाख टन पर पहुंच गई। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, दालों की खरीद 21.91 लाख टन, मोटे अनाज की 11.87 लाख टन और तिलहन की खरीद 11 लाख टन की हुई।

वहीं रिकॉर्ड उत्पादन के बीच नवंबर, 2020 में शुरू हुआ किसान आंदोलन आखिरकार इस महीने समाप्त हो गया। संसद ने 29 नवंबर को शीतकालीन सत्र के पहले दिन तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को निरस्त करने के लिए एक विधेयक पारित किया। उच्चतम न्यायालय ने जनवरी में ही इन कानूनों को लागू करने पर रोक लगा दी थी।

केंद्र को अपनी मांगों को मानने के लिए मजबूर करने के बाद किसान संघ अपने संघर्ष की जीत का दावा कर रहे हैं। इसके विपरीत, अर्थशास्त्री और सरकारी अधिकारी इसे कृषि विपणन प्रणाली में सुधार लाने के प्रयास में एक झटके के रूप में देखते हैं।

नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद ने कहा, ‘‘हम उम्मीद कर रहे थे कि तीन कृषि सुधारों के लागू होने से देश के किसानों का पांचवां हिस्सा लाभान्वित होगा। हमने उस अवसर को पूरी तरह से खो दिया। हालांकि, मुझे लगता है कि यह झटका अस्थायी है।’’

नीति आयोग के सदस्य ने कहा कि अगर कृषि कानूनों को लागू किया गया होता, तो ‘‘इससे काफी हद तक किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य को हासिल करने में मदद मिलती।’’

सितंबर, 2020 में संसद द्वारा पारित तीन कानूनों का उद्देश्य अधिसूचित मंडियों से परे किसानों को अपने फसल उत्पाद बेचने की आजादी देना था। अनुबंध खेती के लिए एक ढांचा बनाना और केवल असाधारण परिस्थितियों में आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति को विनियमित करना इसका अन्य मुख्य उद्देश्य थे।

चंद ने कहा, इस साल कृषि क्षेत्र का समग्र प्रदर्शन मजबूत रहा है। उन्होंने कहा, ‘‘कृषि-वृद्धि दर बरकरार है। इस साल, हम मार्च 2022 के अंत तक कृषि में 3.5 प्रतिशत की वृद्धि दर की उम्मीद करते हैं, जो पिछले साल के स्तर के समान है।’’

कृषि आयुक्त एस के मल्होत्रा ​​ने कहा कि फसल वर्ष 2021-22 (जुलाई-जून) में देश का खाद्यान्न उत्पादन 31 करोड़ टन तक पहुंच सकता है। अच्छी मानसूनी बारिश, नई तकनीकों को अपनाने और पीएम-किसान जैसी सरकारी योजनाओं के सफल क्रियान्वयन से उत्पादन में वृद्धि हुई है।

मल्होत्रा ​​ने कहा कि फसल उत्पादकता में सुधार हो रहा है क्योंकि किसान बीमारियों और प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियों के प्रतिरोध के अलावा बेहतर बीज किस्मों को अपना रहे हैं।

अधिकारी ने यह भी बताया कि बेमौसम बारिश ने देश के कुछ हिस्सों में खराब होने वाली और बागवानी उपज को प्रभावित किया है। नतीजतन, टमाटर जैसे कुछ जिंसों की कीमतें चढ़ गई हैं। तिलहन फसलों के बंपर उत्पादन के बावजूद, खाद्य तेल की कीमतें वैश्विक संकेतों के कारण अभूतपूर्व ऊंचाई पर पहुंच गई हैं।

भारत आयात के माध्यम से खाद्य तेलों की घरेलू मांग का लगभग 60-65 प्रतिशत पूरा करता है, जो अक्टूबर में समाप्त हुए वर्ष 2020-21 के सत्र में रिकॉर्ड 1.17 लाख करोड़ रुपये तक जा पहुंचा। सरसों तेल की कीमतें बढ़कर करीब 200 रुपये प्रति लीटर हो गईं और अन्य खाद्य तेलों की कीमतें भी बढ़ गईं।

वर्ष के दौरान, सरकार ने घरेलू कीमतों को कम करने के लिए पामतेल के साथ-साथ अन्य तेलों के आयात शुल्क को कई बार कम किया लेकिन दरें अब भी उच्चस्तर पर हैं। कीमतों को नियंत्रण में रखने के लिए सरकार ने कई जिंसों के वायदा कारोबार पर भी रोक लगा दी और व्यापारियों और थोक विक्रेताओं पर स्टॉक रखने की सीमा भी लगा दी।

रबी तिलहन के रकबे में भारी वृद्धि ने नए साल में खाद्य तेल की कीमतों में संभावित गिरावट की उम्मीद जगाई है।

अन्य घटनाओं में, प्रमुख सहकारी संस्था, इफको ने तरल रूप में नैनो-यूरिया पेश किया जिससे भारत के आयात के साथ-साथ सब्सिडी खर्च कम होने की उम्मीद है।

इफको के प्रबंध निदेशक यू एस अवस्थी ने कहा, ‘‘हमने व्यावसायिक रूप से नैनो यूरिया का उत्पादन शुरू किया है और हमने अब तक 1.5 करोड़ बोतल नैनो यूरिया का उत्पादन किया है, जिससे सरकार की 6,000 करोड़ रुपये की सब्सिडी की बचत हुई है।’’

वर्ष 2021 में एग्रीटेक स्टार्टअप्स में भी भारी निवेश देखा गया। ये इकाइयां कृषि परामर्श, लागत प्रावधान और विपणन सहायता के क्षेत्र में काम कर रही हैं। कृषि क्षेत्र में ड्रोन जैसी नई तकनीकों का इस्तेमाल भी शुरू किया जा रहा है।

सरकार ने किसान संघों की प्रमुख मांग - न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) व्यवस्था के लिए कानूनी गारंटी के मुद्दे पर विचार करने के लिए एक समिति के गठन की घोषणा भी की है।

नए साल में एमएसपी के मुद्दे पर एक सौहार्दपूर्ण समाधान निकलने की उम्मीद है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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