सूरमा मूवी रिव्यू: संदीप सिंह के किरदार में उतर गए हैं दिलजीत दोसांझ, जबर्दस्त बायोपिक है सूरमा
By खबरीलाल जनार्दन | Published: July 13, 2018 08:24 AM2018-07-13T08:24:56+5:302018-07-13T08:36:20+5:30
Soorma Movie Review: सूरमा की खूबी यह है कि तमाम बड़े-बड़े फिल्मकारों, बड़े अभिनेताओं और बड़ी हस्तियों की बायोपिक बन चुकने के बाद भी शाद अली की सूरमा ताजी फिल्म मालूम होती है।
सूरमा ***
रेटिंगः 3/ 5
निर्देशकः शाद अली मूवी
एक्टरः दिलजीत दोसांझ,तापसी पन्नू,अंगद बेदी निर्देशक
हिन्दी सिनेमा में यह दौर बयोपिक का है। सूरमा इनमें से उम्दा बायोपिक है। यह संदीप सिंह की जिंदगी को वैसे ही दिखाती है जैसी उनकी जिंदगी है। फिल्म कल्पनाशीलता को ज्यादा उड़ान नहीं भरने दिया गया है। हमारे देश के जांबाज स्टिक मास्टर संदीप सिंह की जिंदगी से अगर आप अभी भी परिचित ना हो तो आपको इस फिल्म के बाद उनकी जिंदगी के बारे में बहुत कुछ पता चल जाएगा। फिल्म की खूबी यह है कि तमाम बड़े-बड़े फिल्मकारों, बड़े अभिनेताओं और बड़ी हस्तियों की बायोपिक बन चुकने के बाद भी शाद अली की सूरमा ताजी फिल्म मालूम होती है। और इसमें सबसे बड़ा योगदान दिलजीत दोसांझ की ताजी एक्टिंग है।
सूरमा की कहानी
सूरमा की कहानी युवा संदीप सिंह के हॉकी में आने और फिर अपने खूसट कोच के चलते वहां से भाग जाने से शुरू होती है। इसी बीच उनकी जिंदगी में हरप्रीत (तापसी पन्नू) आती हैं। यहीं से प्यार और जज्बात के बीच हॉकी संदीप के जिंदगी का कब मकसद बन जाता है, इसका अहसास नहीं होता। यहां एक कस्बाई जगहों को बहुत सतर्कता से शाद अली ने फिल्माया है। वह लगातार फिल्म को उबाऊ होने से बचाते हैं।
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कहानी की अगली कड़ी संदीप सिंह की जिंदगी में हुई उस हादसे के बारे में है जहां से कोई शख्स उठकर हॉकी के मैदान में दोबारा जाने की नहीं सोच सकता था। लेकिन संदीप ने असल जिंदगी में यह कर के दिखाया था, उतनी ही चौकसी से दिलजीत ने पर्दे पर इसे उतारा है।
सूरमा में अभिनय
दिलजीत दोसांझ सादगी और युवा किरदारों को सबसे ईमानदारी से निभाने वाले अभिनेताओं में से एक हैं। संदीप सिंह के किरदार में उन्होंने जान डाल दी है। तापसी पन्नू के शायद ऐसे किरदारों के दोहराव हो रहे हैं, लेकिन फिर भी वह अपना कर गई हैं। उन्हें संदीप में उत्साह जोश भरना होता है, यह काम वह बखूबी करती हैं। अंगद बेदी, कुलभूषण खरबंदा, सतीश कौशिक की पंजाबी लहजे में की गई एक्टिंग जमती है।
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Final Comment: बायोपिक्स सबसे बड़ी कमजोरी होती है कि एक शख्स के जीवन में इतनी घटनाएं रोमांचक नहीं होती कि एक अदद रोमांचकारी फिल्म बनाई जाए। हालांकि नैशनल हॉकी टीम के कैप्टन, अर्जुन अवॉर्ड विनर को अगर कोई गोली मार दे। इसे बाद वह फिर टीम में वापसी कर ले तो यह अपने आप में बड़ी कहानी है, लेकिन बाकी चीजें इस फिल्म में भी डॉक्यूमेंट्री लगती हैं।
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जानिये कौन थे संदीप सिंह -