विशाल भारद्वाज जिस 'हंटरवाली' को नहीं समझा पाए, आज गूगल ने डूडल बनाकर समझाया है
By खबरीलाल जनार्दन | Published: January 8, 2018 03:07 PM2018-01-08T15:07:38+5:302018-01-08T15:16:40+5:30
भारतीय सिनेमा एक ऐसी महिला ढूंढ़ ही रहा था, जैसी फीयरलेस नाडिया थीं। उन्होंने पहली बार भारतीय सिनेमा में एक महिला को स्थापित किया।
पिछले साल जिन फिल्मों का इंतजार किया गया था, उनमें रंगून भी थी। विशाल भारद्वाज, सैफ अली खान, शाहिद कपूर, कंगना रनौत सब एक साथ आ रहे थे, सबको लगा कुछ धमाका होने जा रहा है। फिर फिल्म से पहले रिलीज हुए गाने 'ब्लडी हेल' में कंगना का हंटर लेकर स्टेज अलग ही उत्सुकता जगा दिया। आखिर ये किरदार क्या है? लेकिन न फिल्म चली, न यह जाहिर हो पाया कि विशाल भारद्वाज 'हंटरवाली' की कहानी कह रहे थे। गुगल ने डूडल बनाकर फिर इस कहानी को जिंदा किया है। आज (8 जनवरी) हंटरवाली का 110वां जन्मदिन है।
इंडिया की पहली महिला सुपरहीरो, असली स्टंटक्वीन, फीयरलेस नाडिया जैसे कितने ही नाम उस शख्सियत के बारे में मशहूर हैं। जिसके बारे में लिखा जाता है- वह चट्टानों से छलांग लगा सकती है, वह चलती ट्रेन के ऊपर मुकाबला कर सकती है, स्पार्कलिंग झूमर पर झूल सकती है, उसकी शेरों से दोस्ती थी, और जब भी जरूरत पड़े पुरुषों पर लात-घूंसे बरसा सकती है, बस एक बार नहीं, दो बार नहीं, कई-कई बार। और ऊपर से उसकी चौंधिया देने वाली खूबसूरती मानो उसे ग्रीक देवी अफ्रोडाइट का आशीर्वाद मिला था।
यह कसीदें किसी ब्रिटिश या अमेरिकी महिला की तारीफ में नहीं पढ़ीं जा रही हैं। यह चरित्र चित्रण हम साल 1935 में सनसनी बनी एक हीरोइन की कर रहे हैं, जिसके हाथ में हंटर था। ठीक से याद करेंगे तो पाएंगे कि यह प्रथम विश्वयुद्ध (साल 1914-1918) से निढाल हो चुके लोगों के शरीर में फिर से उबाल (द्वितीय विश्व युद्ध- 1939-1945) मारना कर दिया था। इसके बावजूद जब सिनेमा की बात आए तो लड़कियों के किरदार भी लड़के छाली में कुछ फूलने वाली वस्तु रखकर निभा रहे हैं। ऐसे समय में अगर एक महिला हाथ में हंटर लेकर स्टेज पर खड़ी होने माद्दा रखे (1935 हंटरवाली फिल्म रिलीज) तो भारतीय पुरुषों के अंदर का जलजला बाहर आ जाता है।
यही वजह है जो उनके असल नाम भले 'मेरी एन इवांस' या होमी वाडिया से शादी के बाद 'मेरी इवांस वाडिया' हो लेकिन गूगल 2018 में जब गूगल डूडल बनाता है तो फीयरलेस नाडिया कहकर पुकारता है। एकबार डूडल पर क्लिक कर दिए तो दिखाएगा कि महज 27 सेकेंड में आपको फीयरलेस नाडिया से संबंधित करीब पौने पांच लाख लिंक्स उसके पास पड़ी हुई हैं। इन सब को खंगालने पर जो निकल कर आता है वह नीचे लिखा है।
फीयरलेस नाडिया की असल कहानी
भारत में सिनेमा शुरुआत (पहली मूक फिल्म-राजा हरिश्चंद्र, साल 1913) हो गई थी। महिला किरदार लिखे तो जा रहे थे, लेकिन भारत के कुलीन समाज में घर की बहू-बेटियों को सिनेमा में काम के लिए भेजने को लेकर सहज नहीं थे। साल 1931 में बोलती फिल्म आलम आरा की सफलता भी यह मिथक न तोड़ सकी। ऐसे में आंग्ल भारतीय परिवार से ही महिलाएं फिल्मों में आती थीं। जब तक कि महाराष्ट्र की एलीट फैमिली से आई दुर्गा खोटे ने इस टायबू को नहीं तोड़ा। दुर्गा खोटे को पहली भारतीय महिला अभिनेत्री के तौर पर देखा जाता है। उन्होंने 1932 में 'फरेबी जाल' से शुरुआत की थी। लेकिन दुर्गा भारी मेकअप और भारी-भरकम सजवाट वाले कॉस्ट्यूम में रहतीं।
भारतीय सिनेमा एक ऐसी महिला ढूंढ़ ही रहा था, जैसी फीयरलेस नाडिया थीं। उन्होंने पहली बार भारतीय सिनेमा में एक महिला को स्थापित किया। गोरी-चिट्टी, छरहरी, सट-सट हंटर चलाते जब हंटरवाली पर्दे पर सामने आई, लोग हूटिंग करने लगे। साल 1932 में हंटरवाली सुपरहिट रही। फीयरलेस नाडिया स्टार बनकर उभरीं। रास्ते में यहां-वहां लोगों ने उन्हें देखकर हूटिंग शुरू की।
ऑस्ट्रेलिया में जन्मी थी फीयरलेस नाडिया
नाडिया एक सैनिक परिवार थीं। उनके पिता ब्रिटिश सेना में थे। तब इनका परिवार ऑस्ट्रेलिया में रहता था। नाडिया का जन्म वहीं हुआ था। पहले विश्व युद्ध में जर्मनों से लड़ते वक्त उनकी जान चली गई थी। पिता की मौत के बाद उनका परिवार बॉम्बे आया। यहां नाडिया ने कुछ दिनों तक आर्मी और नेवी संबंधित शॉप में सेल्सगर्ल का काम किया। वहां शॉर्ट हैंड और टाइपिंग सीखकर वह बेहतर नौकरी पा गईं। यह नौकरी भी सेना से संबंधित थी।
इसमें नाडिया को कुछ दिनों तक सेना की ट्रेनिंग भी करनी पड़ी। इसमें उन्होंने कई तरह के स्टंट सीख लिए। तभी उन्हें भारत के मशहूर जार्को सर्कस में काम मिल गया। यहां उन्हें जमशेद जेबीएच वाडिया ने देखा। उन्होंने अपनी फिल्म के लिए चुना। फिल्म देश दीपक में उन्हें एक कैमियो किया, एक गुलाम लड़की का। इसके बाद वह पूरी तरह एक फिल्म अभिनेत्री हो गईं। एक के बाद एक उन्होंने कई फिल्में की। जेबीएच वाडिया के बाद उनका जुड़ाव छोटे भाई होमी वाडिया से हुआ। दोनों एक दूसरे शादी कर ली। फिल्मों में आने के बाद वाडिया के बजाय नाडिया लिखना शुरू किया। ऐसा बताया जाता है कि सुनने में नाडिया उन्हें अच्छा लगता था। साल 1967-68 में जब वाडिया ब्रदर्स प्रोडक्शन ने जेम्स बॉण्ड की सी एक हिन्दी फिल्म खिलाड़ी बनानी शुरू की तो 50 साल पार कर चुकी नाडिया को चुना गया। यह नाडिया का आखिरी किरदार था।
गूगल ने दी फीयरलेस नाडिया को श्रद्धांजलि
साल 1993 में नाडिया की परपोती रिकी विंसी वाडिया ने एक डॉक्यूमेंट्री बनाई, फीयरलेसः दी हंटरवाली स्टोरी। इसे बर्लिन इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में यह दिखाई गई। वहीं एक फ्रीलांसर राइटर ने इस पर उपन्यास लिखा, फीयलेस नाडिया- दी ट्रू स्टोरी ऑफ बॉलीवुड ओरिजनल स्टंट क्वीन। इसे बाद में अग्रेजी में भी ट्रांसलेट किया गया। यह किताब बहुत मशहूर हुई। रंगून में कंगना का किरदार इन्हीं से प्रेरित बताया गया। आज उनके 110वें जन्मदिन पर गूगल ने डूडल बनाकर उन्हें श्रद्धांजलि दी है।