फिल्म प्रमाणित किये जाने के बाद उसमें कोई बदलाव किया जाता है तो सेंसर बोर्ड की समीक्षा जरूरी: हाईकोर्ट
By भाषा | Published: September 26, 2019 05:54 AM2019-09-26T05:54:53+5:302019-09-26T05:54:53+5:30
आईएमपीपीए के वकील अशोक सरोगी ने बुधवार को तर्क दिया कि इसमें बहुत समय लगता है और फिल्म की रिलीज में देरी होती है।
बंबई उच्च न्यायालय ने बुधवार को कहा कि फिल्म को प्रमाणित किए जाने के बाद अगर उसमें सबटाइटल जोड़े जाते हैं या कोई बदलाव किया जाता है तो सेंसर बोर्ड को फिल्म की समीक्षा करनी चाहिए। अदालत ने कहा कि सेंसर बोर्ड को इस संबंध में मौजूदा कानून का पालन करना चाहिए।
न्यायमूर्ति आई ए महंती और न्यायमूर्ति एस जे कथावाला की खंड पीठ ने बोर्ड के बयान पर गौर पर किया कि निर्माताओं को नया प्रमाण-पत्र हासिल करने की जरूरत नहीं है। अदालत इंडियन मोशन पिक्चर प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन (आईएमपीपीए) की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इसमें केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) के एक नोटिस को चुनौती दी गई है जिसमें निर्माताओं को नये प्रमाण-पत्र के लिए सबटाइटल जमा कराने को कहा गया।
सीबीएफसी ने 27 अप्रैल 2018 को आईएमपीपीए को जारी नोटिस में कहा था कि फिल्म को बोर्ड की मंजूरी मिलने के बाद अगर उसमें सबटाइटल जोड़े गए तो निर्माताओं को अलग से एक प्रमाण-पत्र लेना होगा। आईएमपीपीए के वकील अशोक सरोगी ने बुधवार को तर्क दिया कि इसमें बहुत समय लगता है और फिल्म की रिलीज में देरी होती है।
वहीं सीबीएफसी ने दलील दी कि फिल्म को प्रमाण-पत्र जारी होने के बाद अगर उसमें सबटाइटल जोड़े जाते हैं तो सिनेमैटोग्राफी कानून की नियम संख्या 33 के मुताबिक सीबीएफसी को इसकी जानकारी होनी चाहिए।” बोर्ड ने कहा कि ऐसे मामले में बोर्ड को बदलावों या सबटाइटल की समीक्षा करनी चाहिए और प्रमाण-पत्र के जरिये इसकी पुष्टि करनी चाहिए। पीठ ने यह कहते हुए याचिका का निपटारा कर दिया कि कानून के प्रावधानों का पालन होना चाहिये।