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मजरूह सुल्तानपुरी जयंती विशेष: PM नेहरू के खिलाफ शेर लिखने पर इस शायर को जाना पड़ा था जेल

By स्वाति सिंह | Updated: October 1, 2018 07:30 IST

मजरूह सुल्तानपुरी ने लगभग 4000 गीत लिखे हैं। उनकी मशहूर में पंक्तियां हैं 'मै अकेला ही चला था, जानिबे मंजिल मगर लोग साथ आते गए कारवां बनता गया'।  

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नई दिल्ली, 1 अक्टूबर: बॉलीवुड में लगभग तीन सौ फिल्मों के लिए गाना लिखने वाले मजरूह सुल्तानपुरी की सोमवार को 99वीं जयंती है। मजरूह का जन्म 1 अक्टूबर 1919 में उत्तर प्रदेश के निजामाबाद में हुआ था। उन्होंने अपने लगभग 4000 गीत लिखे हैं। उनकी पंक्ति 'मै अकेला ही चला था, जानिबे मंजिल मगर लोग पास आते गये कारवां बनता गया'।  उनके सफर पर सटीक बैठती है।

मजरूह सुल्तानपुरी को जाना पड़ा था जेल 

सन 1947 में जब देश के हर शहर, गांव में आजादी का जश्न मनाया जा रहा था। उस वक्त मजरूह सुल्तानपुरी अपने प्रगतिशील लेखक दोस्तों के साथ मिलकर उंचे बांस का कलम बनाकर सड़कों पर डांस कर रहे थे। लेखकों के मुताबिक आजाद देश में कलम की आजादी जरूरी थी।

एक शाम जब मजदूरों की एक सभा के दौरान मजरूह सुल्तानपुरी ने पंडित जवाहरलाल नेहरू पर एक शेर सुनाया था। उन्होंने यह शेर नेहरू और खादी के खिलाफ लिखा था। जिसके बाद सियासी गलियारे में काफी गर्मागर्मी हुई और उनके समर्थकों को आगबबूला कर दिया।

तब मुंबई के तत्कालीन गर्वनर मोरारजी देसाई ने मजरूह की गिरफ्तारी का आदेश दिया था। इसके बाद उन्हें मुंबई के ऑर्थर रोड जेल में डाल दिया। इसके बाद उन्हें अपने लिखे गाने के लिए माफी मांगने को कहा।  लेकिन मजरूह ने माफी मांगने से साफ इनकार कर दिया। जिसके बाद उन्हें 2 साल तक जेल में रहना पड़ा था।  

हालांकि जेल में भी अपनी कविताएं लिखनी नहीं छोड़ी। नतीजा ये कि अंत में थक हारकर मजरूह को जेल से रिहा करना पड़ा।

ऐसे मिली थी बॉलीवुड में एंट्री 

आजादी के दो साल बाद ही मजरूह मुंबई में एक मुशायरे में हिस्सा लेने गए थे। उस समय मशहूर फिल्म-निर्माता अब्दुल हफीज कारदार ने उन्हें अपनी फिल्म 'शाहजहां' के लिए गाना लिखने को कहा था। इस गाने के लिए कॉम्पटीशन के जरिए हुआ था। उनका चुनाव इन गानों के लिए हुआ था- ग़म दिए मुस्तकिल और जब दिल ही टूट गया। ये गाने आज भी युवाओं के बीच बहुत लोकप्रिय हैं। इस फिल्म के गीत प्रसिद्ध गायक कुंदन लाल सहगल ने गाए थे। इसको मशहूर संगीतकार नौशाद ने लयबद्ध किया था। 

देश के पहले गीतकार जिन्हें मिला 'दादासाहब फाल्के अवार्ड'

मजरूह देश के ऐसे पहले गीतकार थे जिन्हें दादासाहब फाल्के अवार्ड से नवाजा गया था। इसके अलावा इन्हें 'चाहूंगा मैं तुझे सांझ सवेरे, फिर भी कभी अब नाम को तेरे, दोस्ती फिल्म का ये गीत, जैसे गानों के लिए पहला फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला था। 24 मई 2000 को मुंबई में मजरूह सुल्तानपुरी का निधन हुआ।

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