अपनी आवाज से दुनिया भर में प्रशंसक बनाने वाले संगीत मार्तंड पंडित जसराज खुद मशहूर गजल गायिका बेगम अख्तर के मुरीद थे और तबला वादन से गायन की ओर प्रवृत्त होने में इस दीवानगी का बड़ा हाथ था । पंडित जसराज ने अपने बड़े भाई एवं शास्त्रीय गायक पंडित मणिराम के साथ तबला वादक के तौर पर शुरुआत की थी लेकिन 14 बरस की उम्र से वह शास्त्रीय गायन सीखने लगे ।
इस बारे में एक बार भाषा को दिये साक्षात्कार में उन्होंने बताया था ,‘‘ हैदराबाद में हर रोज स्कूल जाते समय रास्ते में एक होटल पड़ता था जहां बेगम अख्तर की गायी गजल ‘दीवाना बनाना है तो दीवाना बना दे ,वरना तकदीर तमाशा ना बना दे ’ बजती थी । होटल का मालिक बार बार एक ही गजल बजाता था ।’’ उन्होंने कहा था ,‘‘ मेरे कदम वहीं रूक जाते थे । आवाज में ऐसी कशिश थी कि मैं आगे बढ ही नहीं पाता था । इससे स्कूल की बजाय होटल के सामने ज्यादा समय बीतने लगा ।’’
सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर के फैन थे पंडित जसराज
सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर भी उनकी पसंदीदा गायिका रही हैं । उनका कहना था ,‘‘ मेरी सबसे पसंदीदा गायिका लता मंगेशकर हैं । उनके जैसा कोई नहीं है ।’’ शास्त्रीय संगीत से जुड़े होने के बावजूद वह हर तरह का संगीत सुनते थे और नये जमाने के संगीत से उन्हें गुरेज नहीं था । वह बीटल्स भी उतने ही चाव से सुनते थे जितना भीमसेन जोशी या मेहदी हसन को । उन्होंने कहा था ,‘‘ मेरी पसंद कहीं एक जगह पर ठहरी नहीं है । मुझे जो पसंद आ जाता है , मैं सुन लेता हूं । एक बार मैने जगजीत सिंह की गजल ‘सरकती जाये रूख से नकाब’ सौ बार सुन डाली । मुझे आज भी वह बहुत पसंद है ।’’
बॉलीवुड में दे चुके हैं अपनी आवाज
उन्होंने बॉलीवुड में भी अपनी आवाज दी है । उनकी पत्नी मधुरा मशहूर फिल्मकार वी शांताराम की बेटी है लिहाजा हिन्दी सिनेमा से उनका नाता रहा है ।उन्होंने 1966 में वी शांताराम की फिल्म ‘लड़की सहयाद्रि की’ के लिये ‘वंदना करो’ भजन गाया था । इसके बाद 1975 में ‘बीरबल माय ब्रदर’ फिल्म के लिये पंडित भीमसेन जोशी के साथ जुगलबंदी की ।