तस्वीरें वहां बोलती हैं, जहां शब्द चुप हो जाते हैं

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: August 19, 2025 07:14 IST2025-08-19T07:14:14+5:302025-08-19T07:14:43+5:30

भारत में भी कोविड-19 के दौरान प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा की तस्वीरों ने सरकार और समाज दोनों का ध्यान आकर्षित किया.

World Photography Day Pictures speak where words fall short | तस्वीरें वहां बोलती हैं, जहां शब्द चुप हो जाते हैं

प्रतीकात्मक फोटो

देवेंद्रराज सुथार

इतिहास गवाह है कि 19 अगस्त 1839 को फ्रांस ने फोटोग्राफी की तकनीक को दुनिया के लिए मुफ्त घोषित करके एक क्रांतिकारी कदम उठाया था. लुई डेगुएर के आविष्कार ने न केवल चित्रकला में बदलाव लाया, बल्कि सूचना और संचार के तरीकों को भी हमेशा के लिए बदल दिया. आज जब हम अपने स्मार्टफोन से सेकंडों में तस्वीर खींच लेते हैं, तो शायद ही यह सोचते हों कि 1826 में पहली तस्वीर खींचने में आठ घंटे लगे थे. 1888 में जॉर्ज ईस्टमैन के कोडक कैमरे ने ‘यू प्रेस द बटन, वी डू द रेस्ट’ का नारा देकर फोटोग्राफी को आम जनता तक पहुंचाया था. आज हर व्यक्ति के हाथ में कैमरा है और वह अपनी कहानी कह सकता है.

फोटोग्राफी की सबसे बड़ी शक्ति यह है कि यह सच को बेपर्दा करती है. इतिहास के पन्नों में दर्ज लुईस हाइन की बाल श्रमिकों की तस्वीरों ने अमेरिका में श्रम कानूनों को बदलने पर मजबूर किया था. डोरोथिया लैंग की महामंदी के दौरान की ‘माइग्रेंट मदर’ तस्वीर ने गरीबी की पीड़ा को दुनिया के सामने रखा.  वियतनाम युद्ध की निक उत की ‘नेपाम गर्ल’ तस्वीर ने युद्ध विरोधी भावनाओं को हवा दी और अंततः अमेरिकी जनमत को युद्ध के खिलाफ कर दिया.

भारत में भी फोटोग्राफी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.  रघु राय जैसे फोटोग्राफरों ने देश की विविधता के साथ-साथ इसकी विसंगतियों को भी उजागर किया है. आपातकाल से लेकर इंदिरा गांधी की हत्या के बाद की घटनाओं तक, इन तस्वीरों ने भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण क्षणों को संजोया है.  डिजिटल युग में फोटोग्राफी की शक्ति और बढ़ी है.  सोशल मीडिया के कारण एक तस्वीर मिनटों में करोड़ों लोगों तक पहुंच जाती है. अमेरिका में ब्लैक लाइव्स मैटर आंदोलन की तस्वीरों ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया था. भारत में भी कोविड-19 के दौरान प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा की तस्वीरों ने सरकार और समाज दोनों का ध्यान आकर्षित किया.

लेकिन इस शक्ति के साथ चुनौतियां भी आई हैं. फेक फोटो और डीपफेक तकनीक का दुरुपयोग चिंता का विषय है. व्हाट्सऐप पर वायरल होने वाली झूठी तस्वीरें अक्सर सामाजिक तनाव का कारण बनती हैं. इंस्टाग्राम और फेसबुक पर इंफ्लुएंसर कल्चर ने तस्वीरों को व्यावसायिक बना दिया है, जिससे फोटोग्राफी की मूल भावना को नुकसान हो रहा है.  ऐसे में जरूरी है कि हम फोटोग्राफी की नैतिकता को समझें.  गोपनीयता का सम्मान करना, सच्चाई दिखाना और जिम्मेदारी से इस माध्यम का इस्तेमाल करना हमारी जिम्मेदारी है.  

Web Title: World Photography Day Pictures speak where words fall short

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