क्यों नजरंदाज करने लायक नहीं है चीन की सक्रियता?
By रहीस सिंह | Published: July 27, 2023 01:08 PM2023-07-27T13:08:41+5:302023-07-27T13:09:08+5:30
मध्य-एशिया, मध्य-पूर्व अथवा पश्चिम एशिया हमेशा से भू-राजनीतिक दृष्टि से एक संक्रमणीय क्षेत्र रहा है इसलिए वहां बाहरी हस्तक्षेप सहित बहुत सी गतिविधियां होती रहती हैं. इस समय यूरेशिया भी ऐसे ही हस्तक्षेपों से गुजर रहा है. ये विश्वव्यवस्था को प्रभावित करने वाले हैं. चीन इनमें निर्णायक भूमिका में दिख रहा है.
यूरेशियाई क्षेत्र में मॉस्को और वॉशिंगटन प्लस (अमेरिका एवं उसके सहयोगी) में से शायद कोई भी न जीते लेकिन एक देश है जो उसी तरह का लाभांश हासिल कर सकता है जैसा कि प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान अमेरिका ने किया था. वह है चीन. तो क्या चीन इस क्षेत्र में ‘जीरो-सम-गेम’ के जरिये एक नए भविष्य की बुनियाद रखना चाह रहा है?
मध्य-पूर्व में तेल अवीव, रियाद और तेहरान के बीच बीजिंग एक नई भूमिका में आता दिख रहा है जिसका एक छोर इस्लामाबाद तक जाता है. यह सिरा बीजिंग और तेहरान के साथ एक ट्रैंगल निर्मित कर रहा है जो भारत के लिए चुनौती बन भी सकता है और नहीं भी. ऐसे में सवाल यह उठता है कि भारत को इसे किस तरह से देखना चाहिए ?
दरअसल चीन, पाकिस्तान और ईरान पिछले कुछ समय से सुरक्षा और प्रतिआतंकवाद (काउंटर टेररिज्म) को लेकर व्यापक सहयोग की दिशा में बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं.
यह सहयोग केवल चीनी परियोजनाओं के लिए औपचारिक सुरक्षा कवच की दृष्टि से निर्मित हो रहा है अथवा यह किसी गठबंधन की शक्ल लेगा, यह स्पष्ट नहीं है. यद्यपि ईरान के साथ भारत की दोस्ती ऐतिहासिकता और विरासत की बुनियाद पर खड़ी है जिसमें वर्तमान के कई व्यवसायिक एवं कूटनीतिक हित भी जुड़े हैं जो इसे अन्योन्याश्रित बनाते हैं लेकिन चीन की आर्थिक कूटनीति उसे निरंतर प्रभावित करने की कोशिश कर रही है.
हालांकि चीन के साथ भी भारत ब्रिक्स और शंघाई सहयोग जैसी बहुपक्षीय कूटनीति के जरिए बॉन्डिंग बनाए हुए है लेकिन चीन अभी स्वाभाविक मित्र का संदेश देता हुआ नहीं दिख रहा है. बदलती विश्वव्यवस्था में चीन जिन प्रतिस्पर्धाओं को जन्म दे रहा है दरअसल वे संभ्रांत नहीं हैं. इसलिए बीजिंग-इस्लामाबाद-तेहरान त्रिकोण संशय से परे तो नहीं हो सकता.
सच तो यह है कि चीन ईरान को न केवल बड़े पैमाने पर ऊर्जा की मांग का सपना दिखा रहा है बल्कि वित्त और इन्फ्रा विकास के सपने को भी दिखा रहा है जैसा कि उसने पाकिस्तान को दिखाया है, श्रीलंका को दिखाया या उन सभी देशों को जो इस ऋण जाल में फंस चुके हैं. यही नहीं, निवेश के साथ ही चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ईरान में प्रवेश कर जाएगी. हालांकि इसे लेकर ईरान में विरोध शुरू हो चुका है लेकिन अभी चीन का पलड़ा भारी है.