पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के बारे में अब तो पूरी दुनिया ही कहने लगी है कि ये व्यक्ति सिर्फ नाम का ही शरीफ है. बाकी शराफत से इसका कोई लेना-देना नहीं है. वैसे तो षड्यंत्र रचना और पीठ में छुरा घोंपना पाकिस्तान के करीब-करीब सभी नेताओं के खून में है लेकिन शहबाज शरीफ उन सबसे चार कदम आगे निकल गए हैं. शहबाज की फौज के मुखिया मुनीर और उनकी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने आतंकी संगठनों के माध्यम से पहलगाम में जब निर्दोष भारतीय पर्यटकों का खून बहाया तो भारत ने जम कर प्रहार किया.
अब भारत ने कूटनीतिक हमला बोला है तो वे भागे-भागे अपने हमदर्दों की गोद में जा बैठे हैं. ये नए हमदर्द हैं तुर्किए और अजरबैजान. उन्होंने अजरबैजान के लाचिन में पाकिस्तान-तुर्किए-अजरबैजान शिखर सम्मेलन में कहा है कि भारत के साथ वे बातचीत करना चाहते हैं. साथ ही यह भी जोड़ दिया कि बातचीत कश्मीर, पानी और आतंकवाद को लेकर होनी चाहिए.
अरे जनाब शरीफ! भारत तो पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि बात न तो कश्मीर को लेकर होनी है और न ही पानी को लेकर होगी. बात होगी तो केवल पाक अधिकृत कश्मीर को फिर से भारत में मिलाने को लेकर होगी. जहां तक आतंकवाद का सवाल है तो इस पर बात क्या करनी है? पाकिस्तान आतंकवाद को अपनी गोद में पाल रहा है, उसे अपनी गोद से आतंकवाद को हटाना है.
इसमें भारत से बातचीत जैसा कोई मसला है ही नहीं. अब तो मसला केवल इतना है कि हमारी धरती पर यदि फिर से कोई पाकिस्तानी आतंक मचाता है तो हम पाकिस्तान में घुसकर आतंक का जवाब देंगे. इस बार जिस तरह का जवाब दिया है, उससे करारा जवाब देंगे. दरअसल इस वक्त पाकिस्तान इस बात को लेकर घबराया हुआ है कि भारत ने दुनिया के 33 देशों में अपने प्रतिनिधिमंडल भेज रखे हैं जो पाकिस्तान की करतूतों का कच्चा-चिट्ठा खोल रहे हैं. पाकिस्तान को डर है कि भारत उसे फिर से सबक सिखाने के लिए कोई सैनिक कार्रवाई न कर दे.
उसके डर का कारण यह है कि भारत सरकार स्पष्ट कर चुकी है कि ऑपरेशन सिंदूर अभी खत्म नहीं हुआ है, बल्कि स्थगित किया गया है. शहबाज शरीफ ने ये जो बातचीत की पेशकश की है, वह भी किसी षड्यंत्र का हिस्सा ही होगा. उन्हें लग रहा होगा कि वे भारत से बातचीत की पेशकश करेंगे तो दुनिया भारत पर इसके लिए दबाव डालेगी लेकिन वे यह भूल रहे हैं कि इस वक्त पूरा भारत कोई भी दबाव बर्दाश्त करने के मूड में नहीं है. इसलिए यदि वे धोखा देने का कोई षड्यंत्र रच रहे हैं तो यह उनकी भूल है.
भारत यह कैसे भूल सकता है कि हमारे तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जब दोनों देशों के रिश्ते सुधारने का सपना लेकर पाकिस्तान पहुंचे थे तब शहबाज के भाई नवाज शरीफ वहां प्रधानमंत्री थे. तब जनरल मियां मुशर्रफ कारगिल में भारत के खिलाफ अपनी फौज की गोटियां बिछा रहे थे. तब वाजपेयी ने उनसे कहा भी था कि आपने पीठ में छुरा घोंपा है.
आज भी पाकिस्तान की यही फितरत है. ताजा उदाहरण सामने है कि जब पाकिस्तान की गुहार पर भारत ने सीजफायर पर सहमति जाहिर कर दी, उसके बाद चीन के कहने पर पूरी शाम पाकिस्तान ने ड्रोन से भारतीय सीमा पर बसे शहरों पर हमले किए. इसलिए उसकी किसी बात पर भरोसा नहीं किया जा सकता है.
वह लाख चिल्लाता रहे कि भारत से बात करनी है लेकिन हम भारतीयों को दुनिया के सामने स्पष्ट कर देना चाहिए कि हमें उससे कोई बात नहीं करनी है. धोखेबाजों से कभी बात नहीं की जाती...उन्हें सीधा किया जाता है. हम पाकिस्तान को सीधा करेंगे! शहबाज शरीफ अगर इतने ही शरीफ होते तो युद्ध में हारने वाले मियां मुनीर को फील्ड मार्शल के पद से नहीं नवाजते.