वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः चीनी चंगुल और यूरोपीय मदद

By वेद प्रताप वैदिक | Published: December 4, 2021 11:41 AM2021-12-04T11:41:44+5:302021-12-04T11:43:19+5:30

यूरोपीय संघ उत्तर-अफ्रीकी देशों को आपस में जोड़नेवाला एक भूमध्यसागरीय महापथ भी बनानेवाला है। यूरोपीय संघ की यह उदारता सर्वथा सराहनीय है लेकिन हम यह न भूलें कि यूरोप की समृद्धि का रहस्य उसके पिछले 200 साल के उपनिवेशवाद में भी छिपा है।

vedpratap vaidik blog chinese captivity and european help | वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः चीनी चंगुल और यूरोपीय मदद

वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः चीनी चंगुल और यूरोपीय मदद

जो काम भारत को करना चाहिए था, वह अब यूरोपीय संघ करेगा। चीन ने ‘रेशम महापथ’ की अपनी पुरानी चीनी रणनीति को नया नाम देकर एशिया और अफ्रीका में फैला दिया है। भारत के लगभग सभी पड़ोसी राष्ट्रों को उसने अपने बंधन में बांध लिया है। लगभग सभी उसके कर्जदार बन गए हैं। उसने एशिया और अफ्रीका के देशों को एक विशाल सड़क से जोड़ने की योजना तो बनाई ही है, वह इन देशों में बंदरगाह, रेलवे, नहर, बिजलीघर, गैस और तेल की पाइपलाइन वगैरह कई चीजें बनाने का लालच उन्हें दे रहा है। इन निर्माण-कार्यो से इन देशों को अरबों-खरबों रु. का टैक्स मिलने के सपने भी दिखा रहा है। उसने 65 से भी ज्यादा देशों को अपने चंगुल में फंसा लिया है। अब तो 139 देशों ने इस चीनी पहल से सहमति जताई है। इन देशों की कुल जीडीपी वैश्विक जीडीपी की 40 प्रतिशत है।

अभी तक चीन ने एशिया और अफ्रीका के जिन देशों को मोटे-मोटे कर्ज दिए हैं, यदि उनके मूल दस्तावेज आप पढ़ें तो उनकी शर्ते जानकर आप भौंचक रह जाएंगे। यदि निश्चित समय में वे राष्ट्र चीनी कर्ज नहीं चुका पाएंगे तो उन निर्माण-कार्यो पर चीन का अधिकार हो जाएगा। चीन उनका संचालन करेगा और अपनी राशि ब्याज समेत वसूल करेगा या किन्हीं दूसरे स्थलों को अपने नियंत्नण में ले लेगा। एक अर्थ में यह नव-उपनिवेशवाद है। इसका मुकाबला भारत को कम से कम दक्षिण और मध्य एशिया में तो करना ही था। उसे नव-उपनिवेशवाद नहीं, इस क्षेत्न में वृहद परिवारवाद का परिचय देना था लेकिन अब यह काम यूरोपीय संघ करेगा। उसने घोषणा की है कि वह चीन के रेशम महापथ की टक्कर में ‘विश्व महापथ’ प्रारंभ करेगा। वह 340 अरब डॉलर लगाएगा और अफ्रो-एशियाई देशों को समग्र विकास के लिए अनुदान देगा। चीन की तरह वह ब्याजखोरी नहीं करेगा। अपनी कोशिश भर वह इन विकासमान राष्ट्रों को प्रदूषण-नियंत्नण, शिक्षा, स्वास्थ्य, रेल, हवाई अड्डे, सड़क-नहर निर्माण तथा अन्य कई क्षेत्नों में न सिर्फआर्थिक मदद देगा बल्कि हर तरह का सहयोग करेगा ताकि इन देशों के साथ उसका व्यापार भी बढ़े और इन देशों के लोगों को नए-नए रोजगार भी मिलें। चीन भी इन देशों में रोजगार बढ़ाता है लेकिन वह सिर्फ चीनी मजदूरों का ही बढ़ाता है। 

यूरोपीय संघ उत्तर-अफ्रीकी देशों को आपस में जोड़नेवाला एक भूमध्यसागरीय महापथ भी बनानेवाला है। यूरोपीय संघ की यह उदारता सर्वथा सराहनीय है लेकिन हम यह न भूलें कि यूरोप की समृद्धि का रहस्य उसके पिछले 200 साल के उपनिवेशवाद में भी छिपा है। यूरोप हो, अमेरिका हो या रूस हो, इनमें से प्रत्येक राष्ट्र द्वारा की जाने वाली मदद के पीछे उसका राष्ट्रहित भी निहित होता ही है लेकिन वह चीन की तरह अपने चंगुल में फंसाने के लिए नहीं होता। मुङो प्रसन्नता तब होगी जबकि दक्षिण और मध्य एशिया के लगभग 16 देशों में यूरोप की तरह एक साझा बाजार, साझी संसद और साझा महासंघ बन जाएगा।

Web Title: vedpratap vaidik blog chinese captivity and european help

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