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वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: रूस-यूक्रेन संकट का तत्काल समाधान खोजना जरूरी

By वेद प्रताप वैदिक | Updated: March 2, 2022 12:01 IST

व्लादिमीर पुतिन के होश फाख्ता हो रहे होंगे कि नाटो की निष्क्रियता के बावजूद यूक्रेन अभी तक रूसी हमले का मुकाबला कैसे कर पा रहा है. अभी यूक्रेन में शांति होगी या नहीं, इस बारे में कुछ भी कहना संभव नहीं है.

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यूक्रेन का संकट उलझता ही जा रहा है. बेलारूस में चली रूस और यूक्रेन की बातचीत का कोई नतीजा नहीं निकला. इतना ही नहीं, पुतिन ने परमाणु-धमकी भी दे डाली. इससे भी बड़ी बात यह हुई कि यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने यूरोपीय संघ की सदस्यता के लिए औपचारिक अर्जी भेज दी.

जेलेंस्की की अर्जी का अर्थ यही है कि रूसी हमले से डरकर भागने या हथियार डालने की बजाय यूक्रेन के नेताओं ने गजब की बुलंदी दिखाई है. रूस भी चकित है कि यूक्रेन की फौज तो फौज, जनता भी रूस के खिलाफ मैदान में आ डटी है. पुतिन के होश इससे फाख्ता हो रहे होंगे कि नाटो की निष्क्रियता के बावजूद यूक्रेन अभी तक रूसी हमले का मुकाबला कैसे कर पा रहा है. शायद इसीलिए उन्होंने परमाणु-युद्ध का ब्रह्मास्त्र उछालने की कोशिश की है.

संयुक्त राष्ट्र की महासभा ने अपने इतिहास में यह 11वीं आपात बैठक बुलाई थी लेकिन इसमें भी वही हुआ, जो सुरक्षा परिषद में हुआ था. दुनिया के गिने-चुने राष्ट्रों को छोड़कर सभी राष्ट्रों में रूस के हमले की निंदा हो रही है. खुद रूस में पुतिन के विरुद्ध प्रदर्शन हो रहे हैं. 

इस वक्त जेलेंस्की द्वारा यूरोपीय संघ की सदस्यता की गुहार लगाने से यह सारा मामला पहले से भी ज्यादा उलझ गया है. अब अपनी नाक बचाने के लिए पुतिन बड़ा खतरा भी मोल लेना चाहेंगे. यदि जेलेंस्की कीव में टिक गए तो मास्को में पुतिन की गद्दी हिलने लगेगी. 

अभी यूक्रेन में शांति होगी या नहीं, इस बारे में कुछ भी कहना संभव नहीं है. ऐसी स्थिति में भारत के लगभग 20 हजार नागरिकों और छात्रों को वापस ले आना ही बेहतर रहेगा. इस संबंध में भारत के चार मंत्रियों को यूक्रेन के पड़ोसी देशों में तैनात करने का निर्णय नाटकीय होते हुए भी सर्वथा उचित है. हमारे लगभग डेढ़ हजार छात्र भारत आ चुके हैं और लगभग 8 हजार छात्र यूक्रेन के पड़ोसी देशों में चले गए हैं. 

हमारी हवाई कंपनियां भी डटकर सहयोग कर रही हैं. यदि यह मामला लंबा खिंच गया तो भारत के आयात और निर्यात पर गहरा असर तो पड़ेगा ही, आम आदमी के उपयोग की चीजें भी महंगी हो जाएंगी. भारत की अर्थव्यवस्था पर भी गहरा कुप्रभाव हो सकता है.

इस संकट ने यह सवाल भी उठा दिया है कि भारत के लगभग एक लाख छात्र मेडिकल की पढ़ाई के लिए यूक्रेन, पूर्वी यूरोप और चीन आदि देशों में क्यों चले जाते हैं? क्योंकि वहां की मेडिकल पढ़ाई हमसे कई गुना सस्ती है. क्या यह तथ्य भारत सरकार और हमारे विश्वविद्यालयों के लिए बड़ी चुनौती नहीं है? स्वयं मोदी ने ‘मन की बात’ में इस सवाल को उठाकर अच्छा किया लेकिन उसके लिए यह जरूरी है कि तत्काल उसका समाधान भी खोजा जाए.

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