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USA Donald Trump: अपनी ही लगाई आग में झुलसते देश और दुनिया में गहराता अंधेरा, 175 अरब डॉलर हथियारों के भाड़ में झोंक रहा है?

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: June 4, 2025 05:11 IST

USA Donald Trump: पिछली सदी के पांचवें-छठवें दशक में जब शीतयुद्ध चरम पर था, दुनिया इसी तरह परमाणु युद्ध के साये में जिया करती थी.

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ठळक मुद्देअमेरिका और सोवियत रूस के बीच अधिक से अधिक परमाणु हथियारों के निर्माण की होड़ लगी थी. हास्यास्पद बात यह कि पूरी दुनिया को खत्म करने के लिए महज कुछ सौ परमाणु बम ही काफी थे, देश कुछ हजार परमाणु बमों को नष्ट कर अपने स्टाॅक को कुछ हजार बमों तक ही सीमित रखेंगे.

हेमधर शर्मा

जो अमेरिका पूरी दुनिया में लड़ाइयों के लिए बदनाम रहा है, अब उसके राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने देश की सुरक्षा को अभेद्य बनाने के लिए ‘गोल्डन डोम’ के निर्माण की घोषणा की है. इजराइल के ‘आयरन डोम’ से लोग  सहज ही अनुमान लगा सकते हैं कि गोल्डम डोम क्या बला है. सवाल यह है कि दुनिया के चौधरी अमेरिका को क्या सचमुच किसी से इतना ज्यादा खतरा है या वह काल्पनिक भय के चलते 175 अरब डॉलर हथियारों के भाड़ में झोंक रहा है? पिछली सदी के पांचवें-छठवें दशक में जब शीतयुद्ध चरम पर था, दुनिया इसी तरह परमाणु युद्ध के साये में जिया करती थी.

द्विध्रुवीय दुनिया के दोनों शिखर देशों- अमेरिका और सोवियत रूस के बीच अधिक से अधिक परमाणु हथियारों के निर्माण की होड़ लगी थी. इतिहास के पन्नों में झांकें तो आप पाएंगे कि गलतफहमियों के चलते कई बार ऐसे मौके आए थे जब दुनिया परमाणु युद्ध की आग में स्वाहा होने से बाल-बाल बची थी. हास्यास्पद बात यह कि पूरी दुनिया को खत्म करने के लिए महज कुछ सौ परमाणु बम ही काफी थे,

फिर भी दोनों देश हजारों बम बनाए जा रहे थे. बाद में संबंधों में जब कुछ सुधार आया तो संधि हुई कि दोनों देश कुछ हजार परमाणु बमों को नष्ट कर अपने स्टाॅक को कुछ हजार बमों तक ही सीमित रखेंगे. लेकिन बमों को नष्ट करने का काम भी कम खर्चीला नहीं था. तो क्या ये दोनों देश इतने अमीर थे कि बनाने-बिगाड़ने का यह खेल अपने दम पर वहन कर सकते थे?

दरअसल दोनों देशों के कब्जे में इतने ज्यादा प्राकृतिक संसाधन थे कि उन्होंने उसका अंधाधुंध दोहन किया. आज जो ग्लोबल वॉर्मिंग हम मनुष्यों का अस्तित्व ही मिटाने पर आमादा है, उसकी जड़ में इन दोनों देशों की होड़ भी है. भूतपूर्व सोवियत संघ के विखंडन से रूस को पहले ही बड़ा झटका लग चुका था. अब पिछले तीन साल से जारी यूक्रेन युद्ध में वह धीरे-धीरे और भी खोखला होता जा रहा है.

रही अमेरिका की बात, तो जो प्रस्तावित गोल्डन डोम उसे अभी 175 अरब डॉलर का नन्हा पौधा नजर आ रहा है, वटवृक्ष बनते-बनते कीमत कितने हजार अरब डॉलर तक पहुंच जाएगी, इसकी आशंका विशेषज्ञ अभी से जता रहे हैं. यह कोई फलदार वृक्ष नहीं है जो आज पाले-पोसे जाने पर समृद्धि लाएगा. प्रतिरक्षा में दागी जाने वाली हर मिसाइल की कीमत लाखों डॉलर में होती है.

अमेरिका बाहर से भले मजबूत दिखाई दे लेकिन भीतर से उसकी वित्तीय स्थिति कितनी खोखली है, यह ट्रम्प के कटौती और टैरिफ अभियानों से समझा जा सकता है. तो क्या रूस और अमेरिका के अतीत के भूतों ने उनका पीछा शुरू कर दिया है? चीन जिस तेजी से दुनिया में अपना आर्थिक साम्राज्य फैलाता जा रहा है, उससे अतीत की इन दोनों महाशक्तियों को निकट भविष्य में ढहते शायद देर नहीं लगेगी.

दुर्भाग्य से चीन का ढर्रा भी बहुत अलग नहीं है. फर्क बस यह है कि प्राकृतिक संसाधनों की सीमितता के चलते वह अपने मनुष्य बल का दोहन (या शोषण!) कर रहा है और विनाश के खतरे को धरती तक ही सीमित न रख सुदूर अंतरिक्ष तक ले जा रहा है. अहिंसा का पुजारी भारत हिंसक दुनिया में प्रतिरोध का एक नया ध्रुव बन सकता था लेकिन बदले की जलती आग में अभी तो इसकी दूर-दूर तक कोई संभावना दिखाई नहीं देती. ऐसा नहीं है कि महात्मा गांधी ने जब अहिंसक प्रतिरोध की ताकत को अंग्रेजों के खिलाफ साबित करके दिखाया था तब माहौल इसके लिए अनुकूल था.

पूरी दुनिया द्वितीय विश्व युद्ध की विभीषिका से ग्रस्त थी और जर्मनी में लाखों लोग बेमौत मारे जा रहे थे. अंग्रेज भी यूरोप में हिटलर के ही पड़ोसी थे लेकिन गांधीजी ने साबित किया कि निर्मल अंत:करण से मुकाबला किया जाए तो क्रूर से क्रूर दुश्मन पर भी असर पड़ता है.

आज पूरी दुनिया में हथियारों की होड़ लगी है (परमाणु बमों की तबाही झेलने के बाद इस होड़ से अलग हुए जापान तक को अपने फैसले पर पुनर्विचार के लिए मजबूर होना पड़ रहा है). अंधेरा गहराता जा रहा है और आसमान में चांद तो दूर, तारे भी टिमटिमाते नहीं दिख रहे. क्या इस भयावह रात की कोई सुबह होगी?  

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