रमेश ठाकुर का ब्लॉग: शरणार्थियों की समस्या दुनिया के लिए बनी चुनौती
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: June 20, 2024 11:35 IST2024-06-20T11:33:52+5:302024-06-20T11:35:11+5:30
शरणार्थी वे होते हैं जिन्हें युद्ध या हिंसा के कारण अपना घर-संसार न चाहते हुए भी त्यागना पड़ता है. उन्हें हमेशा जाति, धर्म, राष्ट्रीयता, राजनीतिक या किसी विशेष सामाजिक समूहों से पीड़ित होना पड़ता है. समय बदला है और व्यवस्थाएं भी बदली हैं.

प्रतीकात्मक तस्वीर
विश्व की एक बड़ी आबादी आज भी ऐसी है, जो दर-दर भटक रही है. आज ‘विश्व शरणार्थी दिवस’ है जो दर-दर भटकते बेघर लोगों के सम्मान के लिए समर्पित है. संसार में ये दिवस सालाना 20 जून को मनाया जाता है. संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 4 दिसंबर, 2000 को ‘विश्व शरणार्थी दिवस’ घोषित हुआ था.
सन् 2001 से, इस दिवस को वार्षिक कार्यक्रम के रूप में पहचान मिली. 2001 से संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 1951 कन्वेंशन रिफ्यूजी स्टेटस की 50वीं वर्षगांठ के रूप में इस दिवस को पूर्ण चिह्नित किया.
भारत में तिब्बत, भूटान, नेपाल व म्यांमार के शरणार्थी पनाह लिए हुए हैं. ये आधुनिक समय की विकट समस्याओं में से एक है. शरणार्थी वे होते हैं जिन्हें युद्ध या हिंसा के कारण अपना घर-संसार न चाहते हुए भी त्यागना पड़ता है. उन्हें हमेशा जाति, धर्म, राष्ट्रीयता, राजनीतिक या किसी विशेष सामाजिक समूहों से पीड़ित होना पड़ता है. समय बदला है और व्यवस्थाएं भी बदली हैं.
इसके बावजूद शरणार्थियों की समस्याएं जस की तस बनी हुई हैं. एशिया कुछ ज्यादा ही इस परेशान से पीड़ित है. शायद ही कोई ऐसा एशियाई मुल्क हो, जहां विगत कुछ वर्षों में म्यांमार के रोहिंग्या न पहुंचे हों. दिक्कत ये है कि अपना देश छोड़ने के बाद शरणार्थी फिर आसानी से अपने घर वापस नहीं लौट पाते. उन्हें ताउम्र दर-दर ही भटकना पड़ता है क्योंकि आज अमूमन कोई भी मुल्क ऐसे लोगों को पनाह देने को राजी नहीं होता.
एक वक्त था जब शरणार्थी सिर्फ हिंसा, दंगा या युद्ध के चलते ही अपना देश छोड़ते थे, पर अब जातीय और धार्मिक कारणों के चलते भी लोगों को घर छोड़ना पड़ रहा है. शरणार्थी दिवस उन परिस्थितियों और समस्याओं के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए मनाया जाता है जिनका शरणार्थी अपने जीवन में सामना करते हैं.
यह दिन विश्व स्तर पर यह दिखाने का अवसर प्रदान करता है कि हम सभी शरणार्थियों के दुख-दर्द में हिस्सेदारी करें, क्योंकि मानवता हमें यही सीख देती है. यूक्रेन-रूस के बीच जारी युद्ध के चलते लाखों लोग पड़ोसी देशों में शरण लिए हुए हैं. बांग्लादेश के लाखों लोग भारत में अवैध तौर पर रह रहे हैं. पूरी दुनिया की बात करें तो युद्ध, उत्पीड़न या प्राकृतिक आपदा से सुरक्षित रहने के लिए प्रत्येक वर्ष कई लाख लोग अपने घरों से पलायन करने को विवश होते हैं.
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार हर मिनट करीब 25 लोगों को बेहतर और सुरक्षित जीवन की तलाश में अपना घर छोड़ना पड़ रहा है. ब्रिटिश रेडक्रॉस के आंकड़े बताते हैं कि ब्रिटेन में लगभग 120,000 शरणार्थी रह रहे हैं. वहीं, भारत में म्यांमार के रोहिंग्या, बांग्लादेश, नेपाल, तिब्बत जैसे पड़ोसी देशों के करीब बीस लाख लोग बीते काफी समय से रह रहे हैं.