लूव्र, मोनालिसा की चोरी और कला की वापसी के रूपक

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: October 28, 2025 07:23 IST2025-10-28T07:23:45+5:302025-10-28T07:23:45+5:30

फ्रांस का मशहूर अजायबघर ‘लूव्र’ 1911 में अचानक दुनिया की निगाह में आ गया, क्योंकि डा विंची की ‘महबूबा’ को चोर उठा ले गए थे. प्रेम, स्त्रीत्व और रहस्य का मिश्रण ‘मोनालिसा’ दो साल बाद लौटी, तो कला के कितने ही दीवाने उसे देखने-पढ़ने, राजफाश करने में लग गए और अब तक लगे हैं, क्योंकि वह मानव सभ्यता की जीवंत छवि है.

The Louvre, the theft of the Mona Lisa, and the metaphor of the return of art | लूव्र, मोनालिसा की चोरी और कला की वापसी के रूपक

लूव्र, मोनालिसा की चोरी और कला की वापसी के रूपक

सुनील सोनी का ब्लॉग

लियोनार्दो डा विंची ने फ्लोरेंस के व्यापारी फ्रांसेस्को डेल जियाकोंडो की पत्नी लीसा में पता नहीं क्या देखा कि 1503 में उन्हें कैनवास पर उतारना शुरू कर दिया. मोनालिसा की आंखों और मुस्कान को उसी भाव में उतारने में तीन साल लगे. 1506 में तैलचित्र पूरा हुआ, तब से 1517 तक डा विंची ने उसे किसी को दिखाया नहीं. पॉपलर पैनल पर ‘स्फूमाटो’ से बड़ी बारीकी से रंगों के धुआं-धुआं होते कोमल मेल ने उसे नायाब बना दिया. जब तक वे जिंदा रहे, ‘मोनालिसा’ उनके पास ही रही. डा विंची गुजरे, तो फ्रांसिस प्रथम ने उसे शाही संग्रह में रखवा लिया और अगली कई सदियों तक कला जगत में उसकी वाहवाही कभी थमी नहीं.

फ्रांस का मशहूर अजायबघर ‘लूव्र’ 1911 में अचानक दुनिया की निगाह में आ गया, क्योंकि डा विंची की ‘महबूबा’ को चोर उठा ले गए थे. प्रेम, स्त्रीत्व और रहस्य का मिश्रण ‘मोनालिसा’ दो साल बाद लौटी, तो कला के कितने ही दीवाने उसे देखने-पढ़ने, राजफाश करने में लग गए और अब तक लगे हैं, क्योंकि वह मानव सभ्यता की जीवंत छवि है.

‘लूव्र’ में 6 लाख से अधिक दुर्लभ व अनमोल कलाकृतियां हैं, जिनकी कीमत का अंदाजा सैकड़ों लाख करोड़ रुपए हो सकता है, पर वे सांस्कृृतिक-ऐतिहासिक विरासत हैं. ‘लूव्र’ में चोरी बहुत मुश्किल है, पर नई बात नहीं है. अपोलो गैलरी से नेपोलियन बोनापार्ट और उनकी पत्नी जोसेफिन के 17 बेशकीमती गहनों की हालिया चोरी का तरीका बिल्कुल वैसा ही है, जैसे 2019 में ड्रेसडेन अजायबघर में चोरी करने के लिए जर्मन चोर गिरोह ‘रेमो क्लान’ ने अपनाया था.

कलाकृतियों की चोरी ही नहीं, चोर भी मशहूर हैं. जो मेडेइरोस ने 30 साल तक ‘मोनालिसा’ की चोरी की छानबीन की और रुपहले परदे पर कहानी लिखी : ‘द मिसिंग पीस : मोनालिसा, हर थीफ, द ट्रू स्टोरी.’ इस कहानी में मशहूर चोर विंसेंजो पेरुजिया और परिजनों से बातचीत भी है. विंसेंजो ने एक इतालवी चित्रकार और अजायबघर में ग्लास-कवर लगानेवाले कर्मचारी की मदद से चोरी को अंजाम दिया. ‘लूव्र’ तब सोमवार को बंद रहता था. 

विंसेंजो ने कर्मचारियों की सफेद गणवेश पहनी और अजायबघर के भीतर जाकर पेंटिंग का फ्रेम खोला और कपड़े में लपेटकर बाहर निकल आया. दो साल इंतजार के बाद 1913 में उसने फ्लोरेंस के आर्ट डीलर को ‘मोनालिसा’ खरीदने का लालच दिया और पकड़ा गया. अदालत ने उसे सिर्फ एक साल की सजा दी, क्योंकि देशभक्त होने का दावा करते हुए उसने कहा कि वह ‘मोनालिसा’ को मातृभूमि वापस ले आया. हालांकि, 2012 में ‘द मोनालिसा मिथ’ में एडवर्ड एफ. ग्लीसन ने कुछ सबूतों के आधार पर अंदाजा लगाया कि कलाकृृति नकलची गिरोह ने असली ‘मोनालिसा’ को बदल दिया था.

चोरी को नैतिकता और इंसानियत से जोड़ने का यह खेल काफी दिलचस्प है. यूं कला की चोरी को अपराध के बजाय सांस्कृतिक स्वामित्व, औपनिवेशिक विरासत और न्याय की वापसी का रूपक बनाना वाजिब है. यह भी कि कला सिर्फ सौंदर्य नहीं, न्याय और स्मृृति का प्रतीक भी है.

2020 में बनी फिल्म ‘द ड्‌यूक’ 1961 में लंदन की नेशनल गैलरी से गोया के बनाए ‘पोर्ट्रेट ऑफ ड्‌यूक वेलिंगटन’ की चोरी की कहानी है. 60 साल के टैक्सी ड्राइवर कैम्पटन बंटन ने बुजुर्गों से बीबीसी टीवी लाइसेंस फीस लेने के विरोध में मशहूर पेंटिंग चुराई थी. 2014 में रॉबर्ट एडसेल की किताब पर उसी शीर्षक से बनी ‘द मॉन्युमेंट्‌स मेन’ में मित्र राष्ट्रों के चुनिंदा सैनिकों का दस्ता द्वितीय विश्वयुद्ध में नाजियों की लूटी यूरोपीय कलाकृृतियों को वापस लाता है, तो राष्ट्रवाद का प्रतीक बन जाता है. 

2015 में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर बनी ‘विमन इन गोल्ड’ भी मारिया आल्टमैन की असली कहानी थी, जो नाजियों की लूटी गुस्ताव क्लीमिश की पेंटिंग को ऑस्ट्रिया से मुकदमा जीतकर वापस लाईं. 2013 में बनी ‘टेरेंस’ भी वॉन गॉग अजायबघर से 2002 में चोरी हुई दो पेंटिंगों की कहानी है, पर रूपक गोया की पेंटिंग की चोरी का है. 1999 की द थॉमस क्राउन अफेयर ‘मोनेट की पेंटिंग’ चुराए जाने की काल्पनिक कथा है, पर अजायबघर की चोरी पर ही केंद्रित है.

तमाम राष्ट्रवादी, प्रतीकवादी नारों के बावजूद यह भी हकीकत है कि बेल्जियम, जर्मनी, सर्बिया, तुर्की में कला का अवैध व्यापार करने वाले गिरोह हैं, जो अजायबघरों में ‘मानव सभ्यता के प्रतीकों’ के रूप में रखी कलाकृृतियों को सिर्फ पैसों में तब्दील करते हैं.

Web Title: The Louvre, the theft of the Mona Lisa, and the metaphor of the return of art

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