इन दिनों एक बार फिर अंतर्राष्ट्रीय दबाव में मजबूर होकर पाकिस्तान द्वारा आतंक के खिलाफ कुछ कार्रवाई करने की खबरें हैं. साफ जाहिर है कि कार्रवाई दिखावटी है, वक्त की मजबूरी है. आतंक की धुरी बना पाकिस्तान खास तौर से जिस तरह से पुलवामा आतंकी हमले के बाद आतंक को प्रश्रय देने को लेकर दुनिया भर में अलग-थलग पड़ता जा रहा है, उसके चलते अंतर्राष्ट्रीय दबाव की वजह से उसे यह कदम उठाना पड़ा है.
पाकिस्तान सरकार ने आतंकी गुट लश्करे-तैयबा के सरगना और मुंबई आतंकी हमलों और संसद पर हुए आतंकी हमलों के दोषी दुर्दात आतंकी हाफिज सईद और उसके कुछ सदस्यों के खिलाफ आतंकवाद के लिए धन उपलब्ध कराने के मामले में एफआईआर दर्ज की है, जिस के बाद हाफिज सहित उसके सभी आतंकी साथियों की गिरफ्तारी हो सकती है. भारी आर्थिक संकट से ग्रस्त पाकिस्तान को तथाकथित शुभचिंतक मित्न देशों के अलावा वैश्विक वित्तीय संस्थाओं से आर्थिक मदद की दरकार है.
वैसे यह जानना दिलचस्प है कि इस दिखावटी कार्रवाई के फौरन बाद अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष-आईएमएफ-ने आर्थिक संकट का सामना कर रहे पाकिस्तान को तीन साल के लिए छह अरब डॉलर के कर्ज की मंजूरी दी है. इमरान खान की सरकार के पद संभालने के बाद बेलआउट पैकेज के लिए पाकिस्तान के वित्त मंत्नालय ने अगस्त 2018 में आईएमएफ से संपर्क किया था.
आईएमएफ के अनुसार यह कर्ज देश की अर्थव्यवस्था को ठीक करने और जीवन दशा को बेहतर करने के मकसद से दिया गया है. इसके अलावा यह बात साफ है कि आतंकी गतिविधियों के लिए टेरर फंडिंग रोकने के लिए गठित अंतर्राष्ट्रीय फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) का शिकंजा पाकिस्तान पर कसता जा रहा है. इस संस्था ने हाल ही में बेहद सख्त शब्दों में पाकिस्तान से कहा था कि पाकिस्तान आतंकवाद को मिलने वाले आर्थिक समर्थन को रोकने में नाकाम रहा है.
उसने गत जून की बैठक में अल्टीमेटम दिया था कि सितंबर 2019 से पहले आतंकवादी समूहों की फंडिंग को रोकने के लिए अपनी कार्ययोजना को लागू करे अन्यथा उसे ‘ग्रे लिस्ट’ से ‘ब्लैक लिस्ट’ कर दिया जाएगा यानी उस पर वैश्विक आर्थिक प्रतिबंध लागू कर दिए जाएंगे.
हाल ही में जी-20 शिखर बैठक में भारत सहित सभी सदस्य देशों ने टेरर फंडिंग की रोकथाम में लगी एजेंसियों के बीच ग्लोबल नेटवर्क बनाने की बात कही ताकि दुनिया के सभी देश इस बुराई से एकजुट होकर सख्ती से निबटें.
हाल की इसी मजबूरन दिखावटी कार्रवाई से जुड़े एक और महत्वपूर्ण घटनाक्र म में इसी माह 22 जुलाई को पाकिस्तान के प्रधानमंत्नी इमरान खान की अमेरिकी राष्ट्रपति से अमेरिका में पहली अहम मुलाकात प्रस्तावित है. उससे पहले इस तरह की दिखावटी कार्रवाई के जरिये पाकिस्तान अमेरिका सहित विश्व बिरादरी को बताना चाहता है कि वह आतंक के खिलाफ कड़े कदम उठा रहा है.
गौरतलब है कि भारत काफी समय से हाफिज सईद, अजहर मसूद जैसे आतंकियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के साथ पाकिस्तान में रह कर भारत के खिलाफ आतंकी गतिविधियां चलाने वाले अंडरवल्र्ड डॉन दाऊद इब्राहिम को उसे सौंपे जाने की मांग करता रहा है. अमेरिका का भी मानना है कि दाऊद का आतंकी गुट अल-कायदा से करीबी तालमेल है, इसी वजह से वह उसे वैश्विक आतंकी घोषित कर चुका है.
अमेरिका दाऊद पर कार्रवाई करने के मामले को लेकर संयुक्त राष्ट्र भी गया ताकि दुनिया भर में उसकी संपत्ति फ्रीज की जा सके. इसके बावजूद पाकिस्तान का रवैया जस का तस रहा है और सीमापार से आतंकी गतिविधियां बरकरार हैं.
हालांकि पुलवामा आतंकी हमले के बाद भारत ने वैश्विक मंच पर पाकिस्तान को पूरी तरह से अकेला कर दिया है. जब कभी अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी का दबाव बढ़ता है तो वह आतंकी हाफिज के खिलाफ हाल के जैसे इक्का-दुक्का बनावटी कदम उठा लेता है. लेकिन सवाल फिर वही बना रहता है कि पाकिस्तान आखिर भारत के खिलाफ आतंकी गतिविधियों को रोकने के लिए सही मायने में प्रभावी कदम कब उठाएगा?
फरवरी में जम्मू-कश्मीर में हुए पुलवामा हमले के बाद भी भारत ने पाकिस्तान से बेहद सख्त शब्दों में कहा था कि वह आतंकवाद के खिलाफ सख्त कार्रवाई करे. पुलवामा हमले के जवाब में भारत ने पाकिस्तान के बालाकोट में सर्जिकल स्ट्राइक की थी. तब पाकिस्तान के प्रधानमंत्नी इमरान खान ने भारत और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को भरोसा दिलाया था कि पाकिस्तान अपनी जमीन का एक इंच भी आतंकवाद के लिए इस्तेमाल नहीं होने देगा. लेकिन हमेशा की तरह उसकी कथनी और करनी में फर्क रहा. एक तरफ वह वार्ता की बात करता है तो दूसरी तरफ आतंकवाद जारी है.
अब समय आ गया है कि पाकिस्तान आतंक के खिलाफ ठोस कदम उठाए. तभी न केवल दोनों देशों के बीच परस्पर हित के द्विपक्षीय संबंधों की शुरुआत हो सकेगी बल्कि इस पूरे क्षेत्न में शांति, स्थिरता और प्रगति कायम हो सकेगी.