Shahbaz Sharif government: पूर्व पीएम इमरान खान की पार्टी के दबाव में झुकी पाक सरकार?
By राजेश बादल | Updated: December 24, 2024 06:14 IST2024-12-24T06:13:35+5:302024-12-24T06:14:54+5:30
Shahbaz Sharif government: फौजी हुकूमत के इशारे पर इमरान सरकार का पतन तथा शाहबाज शरीफ की सरकार बनने के बाद ही पक्ष और प्रतिपक्ष के बीच संवाद का सिलसिला टूट गया था.

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Shahbaz Sharif government:पाकिस्तान की शाहबाज शरीफ सरकार को अंततः इमरान खान और उनके समर्थकों से संवाद के लिए तैयार होना पड़ा. उनकी पार्टी पाकिस्तान तहरीके इंसाफ को अपने आंदोलन में जिस तरह जनता का व्यापक सहयोग मिल रहा था, वह सत्तारूढ़ गठबंधन के लिए चिंता का सबब बनता जा रहा था. हालांकि इमरान खान के पार्टी कार्यकर्ताओं के दमन का उसने कोई अवसर नहीं छोड़ा था. फौजी हुकूमत के इशारे पर इमरान सरकार का पतन तथा शाहबाज शरीफ की सरकार बनने के बाद ही पक्ष और प्रतिपक्ष के बीच संवाद का सिलसिला टूट गया था.
इसके बाद इमरान खान को जब जेल में डाला गया तो उनकी पार्टी और भड़क उठी थी. तब से राष्ट्र की जनता भी लगातार इमरान का साथ दे रही थी. पर, सच्चाई तो यही है कि दोनों पक्ष थकने लगे थे और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सरकार की छवि अलोकतांत्रिक तथा सेना के साये में काम करने वाली कठपुतली सरकार की बनती जा रही थी.
सोमवार को राष्ट्रीय असेंबली के स्पीकर अयाज सादिक ने चर्चा के लिए सरकारी समिति का ऐलान किया. समिति में प्रधानमंत्री के राजनीतिक सलाहकार राणा सनाउल्लाह खान, विदेश मंत्री मोहम्मद इशाक डार और पाकिस्तान तहरीके इंसाफ के कार्यकारी अध्यक्ष बैरिस्टर गौहर अली खान सदस्य के तौर पर शामिल हैं.
इमरान की गैरमौजूदगी में गौहर अली खान ने पार्टी के आंदोलन का शानदार नेतृत्व किया है और इमरान ने उन्हें सभी फैसलों के लिए अधिकृत किया है. गौहर ने दो दिन पहले ही बयान दिया था कि सरकार और विपक्ष के बीच बातचीत के जरिये ही समाधान निकल सकता है. यह इस बात का सबूत है कि इमरान का दल अब नरम रुख अपना रहा है.
इसका एक कारण यह भी था कि कुछ समय पहले इमरान ने पार्टी के राजनीतिक कैदियों की रिहाई और पिछले साल के सियासी घटनाक्रम की जांच के लिए न्यायिक आयोग के गठन की मांग की थी. उन्होंने कहा था कि 14 दिसंबर से देशभर में सविनय अवज्ञा आंदोलन छेड़ा जाएगा. इस आंदोलन को जनता का समर्थन तो मिला, लेकिन यह स्पष्ट हो गया कि आने वाले दिन इमरान के लिए भी मुश्किल भरे होंगे,
क्योंकि आंदोलन में निरंतर साथ देने वाले लोगों को सताने का सिलसिला भी तेज हो गया था. इसे देखते हुए ही इमरान और गौहर अली खान ने अपने तेवर ठंडे किए. सूत्रों की मानें तो राष्ट्रीय असेंबली के अध्यक्ष अयाज सादिक ने पर्दे के पीछे से भूमिका निभाई है और गौहर को बातचीत की मेज पर लाने का काम किया. इसके बाद उन्होंने प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ को मनाया.
इसके अलावा उन्होंने सैनिक नेतृत्व को समझाया कि विपक्ष के लगातार उत्पीड़न से मुल्क की साख को बट्टा लगा है. उन्होंने बांग्लादेश का उदाहरण दिया कि प्रधानमंत्री शेख हसीना ने विपक्ष की नेता और पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया को लगातार कैद में रखा. इससे उनकी छवि बिगड़ी और अवाम के भीतर असंतोष बढ़ता गया था.
परिणाम यह कि शेख हसीना को तख्तापलट का सामना करना पड़ा. सूत्र बताते हैं कि शाहबाज शरीफ बेमन से माने. वे इमरान की पार्टी पर प्रतिबंध लगाने के पक्ष में थे. बलूचिस्तान असेंबली इमरान की पार्टी पर बंदिश लगाने का प्रस्ताव पारित कर चुकी थी और पंजाब विधानसभा में भी इसी किस्म का प्रस्ताव लाया गया.
इसके बाद शाहबाज सरकार को समर्थन दे रही पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी ने प्रतिबंध के प्रस्ताव का विरोध किया. पीपुल्स पार्टी ने कहा कि इमरान की पार्टी को बतौर मुख्य विपक्षी दल के रूप में अवसर मिलना चाहिए. प्रतिबंध लगाने से आम जनता भड़क सकती है तथा पाकिस्तान की छवि पर भी आंच आएगी.
पंजाब पीपुल्स पार्टी के महासचिव सैयद हसन मुर्तजा ने कहा कि उनकी पार्टी पीटीआई पर प्रतिबंध के पक्ष में नहीं है, बल्कि सरकार को पीटीआई को राष्ट्रीय मुख्यधारा में लाने की पहल करनी चाहिए. मुर्तजा ने पत्रकारों से कहा था कि पीटीआई पर प्रतिबंध के संबंध में कोई चर्चा नहीं हुई है. जब वे हमसे संपर्क करेंगे तो हम कोई विचार करके ही निर्णय लेंगे.
उन्होंने दोहराया कि सरकार को नकारात्मक रुख छोड़ना चाहिए. इससे पहले तक शाहबाज शरीफ अड़े हुए थे. उन्होंने कैबिनेट बैठक में कहा कि पीटीआई के आंदोलन और राजधानी इस्लामाबाद में अराजकता ने पाकिस्तान की छवि को धूमिल किया है. इसके बाद शाहबाज शरीफ को असेंबली अध्यक्ष अयाज सादिक ने मनाया.
दरअसल शाहबाज शरीफ का रवैया कुछ दिनों से बदला हुआ है. वे सेना के इशारे पर न केवल प्रतिपक्ष, बल्कि पत्रकारों को लेकर भी सख्त होते जा रहे हैं. इस साल प्रधानमंत्री ने अभिव्यक्ति की आजादी को कुचलने का कोई अवसर नहीं छोड़ा. इस साल पाकिस्तान में 7 पत्रकारों ने आजाद पत्रकारिता के लिए संघर्ष करते हुए जान गंवाई है.
कई टीवी एंकर्स फर्जी मामलों में जेल के भीतर हैं. डेढ़ सौ से ज्यादा पत्रकारों और डिजिटल अवतारों पर राय रखने वालों के खिलाफ मुकदमे चल रहे हैं. इनमें मुल्क के इकलौते सिख पत्रकार हरमीत सिंह भी हैं. डिजिटल मंचों पर भी ऐसी ही सख्ती बरती जा रही है. इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप्प जैसे माध्यम तक फौजी निगरानी में हैं.
विडंबना यह कि जिस पोस्ट या सूचना को सरकार गलत मानती है, उससे जुड़े पत्रकार अथवा आम नागरिक को पांच साल की कैद और दस लाख रुपए का जुर्माना लगाने का फरमान जारी कर सकती है. पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार हामिद मीर ने बीते दिनों सरकार को चेतावनी तक दे डाली थी. उन्होंने कहा था कि लोकतंत्र स्वतंत्र मीडिया के बिना जिंदा नहीं रह सकता.
अगर लोकतंत्र मर गया तो पाकिस्तान का जिंदा रहना मुश्किल हो जाएगा. तानाशाह जनरल याह्या खान ने बंगालियों का अलग देश बनवा दिया था. आज नकली लोकतंत्र पश्तूनों और बलूचों को अलग-थलग कर रहा है. हामिद मीर के मुताबिक, ‘सेंसरशिप लोकतंत्र के लिए जहर है.
मैंने खुद देशद्रोह से लेकर ईशनिंदा तक के मुकदमों का सामना किया है. फर्जी खबरों से लड़ने के लिए तो मैं स्वयं तैयार हूं. लेकिन मैं अपनी आजादी किसी भी खुफिया एजेंसी को नहीं सौंपूंगा, जो सियासत में दखल देकर पहले से ही संविधान का उल्लंघन कर रही है.’