शोभना जैन का ब्लॉग: जर्मनी के साथ संबंधों पर तनाव की छाया

By शोभना जैन | Updated: June 17, 2023 14:17 IST2023-06-17T14:16:14+5:302023-06-17T14:17:11+5:30

सात माह की दुधमुंही अरिहा शाह को बीस माह पहले जर्मनी की बाल कल्याण सेवा द्वारा अपनी कस्टडी में लेने को लेकर विवाद बढ़ता जा रहा है. मामला तूल पकड़ता जा रहा है, जिसकी छाया द्विपक्षीय संबंधों पर भी दिखाई दे रही है.

Shadow of tension on relations with Germany | शोभना जैन का ब्लॉग: जर्मनी के साथ संबंधों पर तनाव की छाया

(फाइल फोटो)

Highlightsतमाम प्रयासों के बावजूद बच्ची मां के आंचल से दूर फॉस्टर होम में पल रही है. बच्ची की कस्टडी की कानूनी लड़ाई जारी है.सॉफ्टवेयर इंजीनियर भावेश और उनकी पत्नी धरा शाह साल 2018 में जर्मनी गए थे.

सात माह की दुधमुंही अरिहा शाह को बीस माह पहले जर्मनी की बाल कल्याण सेवा द्वारा अपनी कस्टडी में लेने को लेकर विवाद बढ़ता जा रहा है. मामला तूल पकड़ता जा रहा है, जिसकी छाया द्विपक्षीय संबंधों पर भी दिखाई दे रही है. मां-बाप की गुहार और भारत सरकार के बार-बार आग्रह के बावजूद वहां की बाल कल्याण सेवा बच्ची की कस्टडी मां-बाप को सौंप नहीं रही है, हालांकि वहां की पुलिस ने फरवरी 2022 में बच्ची के मां-बाप के खिलाफ आपराधिक केस को बंद कर दिया लेकिन कस्टडी का मामला हल नहीं हुआ और इसके लिए लड़ाई जारी है. 

जर्मनी के एक अस्पताल ने भी बच्ची के खिलाफ किसी प्रकार के यौन उत्पीड़न होने के आरोपों को खारिज कर दिया है, लेकिन चाइल्ड लाइन सर्विस ने कोर्ट में माता-पिता के अभिभावक होने संबंधी अधिकार रद्द किए जाने का केस बरकरार रखा यानी बच्ची पिता भावेश और माता धरा शाह को नहीं दी जा सकती. कोर्ट ने अरिहा शाह के अभिभावकों की मनोवैज्ञानिक जांच कराने की बात कही लेकिन अब सवा दो बरस की हो चुकी बच्ची एक अजनबी देश, अजनबी माहौल और अनजान परिवेश में अपने मां-बाप के प्रेम को तरस रही है. 

दोनों देशों के बीच यह मामला राजनयिक तनाव का रूप लेता जा रहा है लेकिन बच्ची की कस्टडी के लिए जर्मनी में दर-दर भटकने वाले माता-पिता जर्मन अधिकारियों से गुहार लगाने और भारत सरकार द्वारा भी बच्ची को भारत को अविलंब सौंपे जाने की मांग के बावजूद अभी तक कस्टडी नहीं मिलने से निराश हैं. गुजराती मूल के जर्मनी में रहने वाले धरा और भावेश शाह की बेटी अरिहा शाह की कस्टडी के मामले पर विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने अपनी जर्मनी यात्रा में जर्मनी के अधिकारियों को अरिहा के माता-पिता के साथ ही देश की चिंता से भी अवगत कराया. 

जर्मनी की विदेश मंत्री एनालेना बेयरबॉक की गत दिसंबर में भारत यात्रा के दौरान भी भारतीय प्रतिनिधियों ने अरिहा की कस्टडी अविलंब भारत को सौंपे जाने की मांग की. अरिहा शाह के समर्थन में 59 सांसदों ने भारत में जर्मनी के राजदूत फिलिप एकरमैन को एक पत्र लिख कर भारत की चिंता से अवगत कराया और बच्ची की कस्टडी तुरंत भारत को सौंपे जाने की मांग की. लेकिन इन तमाम प्रयासों के बावजूद बच्ची मां के आंचल से दूर फॉस्टर होम में पल रही है. बच्ची की कस्टडी की कानूनी लड़ाई जारी है.
 
गौरतलब है कि सॉफ्टवेयर इंजीनियर भावेश और उनकी पत्नी धरा शाह साल 2018 में जर्मनी गए थे, वहीं उनकी बेटी का जन्म हुआ, मां-बाप पर लगे आरोपों के बाद से उनकी बेटी अरिहा शाह पिछले 20 महीने से जर्मनी के फोस्टर केयर में ही है. बच्ची की मां धरा शाह का कहना है कि एक मां की अपने बच्चे को पलते-बढ़ते देखने की ख्वाहिश होती है लेकिन उन्हें इन सब लम्हों से दूर कर दिया गया है. मेरी बेटी सवा दो साल की हो चुकी है. न मैंने उसके मुंह से निकला पहला शब्द सुना, चलना सीखने से पहले न पहला कदम देखा और न उसके दांत निकलना देखा. 

धरा शाह कहती हैं कि जब वो अपनी बेटी से मिलने जाती हैं तो वो हम से बहुत प्यार से मिलती है, लेकिन इस पर जर्मनी का प्रशासन कहता है कि उसे स्ट्रेंजर अटैचमेंट डिसऑर्डर है. धरा शाह कहती हैं, "हमने ये अपील की थी कि अरिहा का ये अधिकार है कि उसे उसकी मातृभाषा सिखाई जाए, समुदाय के लोगों से मिलवाया जाए, मंदिर ले जाया जाए लेकिन ऐसा कुछ नहीं किया जा रहा है. वो 27 महीने की हो गई है, इसके बावजूद उसे भारतीय संस्कृति के बारे में कुछ नहीं बताया गया और केवल जर्मन भाषा सिखाई जा रही है." 

धरा का कहना है कि वे जैन होने के नाते विशुद्ध शाकाहारी भोजन ही करते हैं लेकिन फॉस्टर होम में उनकी धार्मिक मान्यताओं के विरुद्ध उसे मांसाहारी भोजन दिया जा रहा है. अगर इस केस को जानें तो साल 2021 के सितंबर महीने में धरा ने अपनी बेटी के डायपर में खून के धब्बे देखे. वहां डॉक्टर ने प्रारंभिक जांच में कहा कि कुछ गंभीर नहीं है. फॉलोअप के लिए जब धरा शाह अपनी बेटी को लेकर गईं तो उन्हें बड़े अस्पताल में दिखाने की सलाह दी गई. वहीं से साढ़े सात महीने की अरिहा शाह को जर्मन चाइल्ड लाइन सर्विस भेज दिया गया और तब से यह मामला उलझता जा रहा है.
 
गत वर्षों में नॉर्वे में सागरिका चटर्जी के बच्चे को इसी तरह के आरोपों के बाद फॉस्टर होम ले जाने के बाद मां द्वारा अपने बच्चे की कस्टडी पाने की असंभव सी लगने वाली लड़ाई अब भी मन को उद्वेलित कर देती है. अब अरिहा के मामले ने इस तरह की स्थितियों को फिर से उजागर किया है. अरिहा शाह के माता-पिता को उम्मीद है कि भारत के लोगों, सांसदों और सरकार की कोशिशों के कारण उन्हें अपनी बच्ची जल्द ही मिल जाएगी. 

लेकिन जर्मनी की बाल कल्याण सेवा की कार्यशैली सवालों के घेरे में है, जो खास तौर पर अक्सर विदेशी मूल के बच्चों की इस तरह से कस्टडी लिए जाने को लेकर विवादों में रही है. मानवीय संवेदनाओं के साथ ये मामले द्विपक्षीय संबंधों को भी प्रभावित करते हैं. सम्बद्ध देशों को मानवीय नजरिये के साथ इनके द्विपक्षीय संबंधों के पहलुओं पर भी ध्यान देना चाहिए.

Web Title: Shadow of tension on relations with Germany

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