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राजेश बादल का ब्लॉग: अमेरिकी चुनाव में भारतवंशियों का दबदबा

By राजेश बादल | Updated: July 22, 2020 11:10 IST

अब तक के सारे पूर्वानुमान संकेतों में डेमोक्रेट जो बिडेन अपने प्रतिद्वंद्वी रिपब्लिकन प्रत्याशी डोनाल्ड ट्रम्प पर भारी पड़ रहे हैं.

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अमेरिकी चुनाव अब दिलचस्प मोड़ पर आ पहुंचा है. डेमोक्रेट उम्मीदवार जो बिडेन इस मोड़ पर राहत की सांस ले सकते हैं. अब तक के सारे पूर्वानुमान संकेतों में डेमोक्रेट जो बिडेन अपने प्रतिद्वंद्वी रिपब्लिकन प्रत्याशी डोनाल्ड ट्रम्प पर भारी पड़ रहे हैं. कोरोना के कहर का आगाज होने तक जो बिडेन पर राष्ट्रपति ट्रम्प बढ़त बनाए हुए थे.

मगर कोरोना-काल में बाजी ट्रम्प के हाथ से फिसलती सी नजर आ रही है. पर इसमें जो बिडेन की कोई अतिरिक्त मेहनत नहीं है, न ही इस अवधि में उन्होंने एड़ी-चोटी का जोर लगाया है. काल का पहिया कुछ इस तरह घूमा कि डोनाल्ड ट्रम्प के अधिकतर पांसे उलटे पड़े हैं.

संदर्भ के तौर पर याद रखना चाहिए कि ताजा आंकड़े अमेरिका के केवल आठ प्रदेशों में ही भारतीय मूल के अमेरिकी मतदाताओं की संख्या पंद्रह लाख के आसपास बता रहे हैं. अन्य राज्यों के भारतीय मूल के मतदाताओं की तादाद जोड़ने पर उनके वोट अमेरिका के नए मुखिया के चुनाव में अपनी निर्णायक भूमिका निभाते दिखाई देते हैं.

हालांकि नहीं भूलना चाहिए कि डोनाल्ड ट्रम्प चतुर कारोबारी भी हैं. उन्होंने हिंदुस्तानी जड़ों वाले मतदाताओं की अहमियत पिछले साल ही समझ ली थी, जब उन्होंने दूसरी पारी खेलने का ऐलान किया था. इसके बाद उन्होंने सितंबर में भारतीय प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी की ह्यूस्टन में रैली कराई.

सियासी शतरंज की बिसात पर ट्रम्प की यह पहली चाल थी क्योंकि ह्यूस्टन टेक्सॉस प्रांत का सबसे बड़ा शहर है. वहां के अमीर रिपब्लिकन पार्टी को समर्थन देते आए हैं. दूसरी ओर भारतीय, बौद्ध, सिख, मुस्लिम, ब्लैक और अन्य एशियाई नौकरीपेशा लोग डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रति समर्पित परंपरागत मतदाता माने जाते रहे हैं.

इनमें गुजराती भी बहुत हैं. इसीलिए फरवरी में ट्रम्प जड़ों को सींचने के लिए गुजरात आए थे. उन्होंने संसार के सबसे बड़े स्टेडियम में नमस्ते ट्रम्प के जरिए गुजरातियों को लुभाने की कोई कोशिश नहीं छोड़ी थी. ट्रम्प का गणित यह था कि रिपब्लिक वोटों में डेमोक्रेटिक प्रत्याशी के सेंध की संभावना कम है, मगर डेमोक्रेटिक मतदाताओं में सेंध लग सकती है.

ऐसे में भारतीय मूल के मतदाता ह्यूस्टन-सभा से ट्रम्प के हक में मतदान का मन बनाते हैं तो ट्रम्प के लिए बड़ी उपलब्धि होगी. करीब चौबीस लाख की आबादी वाले ह्यूस्टन ने विश्व में हेल्थ केयर के क्षेत्न में बड़े शोध केंद्र के रूप में नाम कमाया है. नासा का अंतरिक्ष केंद्र भी यहां है.

मंदी के दौर में रोजगार पैदा करने में यह अमेरिका का पहले नंबर का शहर है. इसमें भारतीयों की मेहनत कम नहीं है. इस कारण यहां तक डोनाल्ड ट्रम्प अपने को सुरक्षित महसूस कर रहे थे.

लेकिन कोरोना का कोप शुरू होते ही समीकरण भी बदलने लगे. अपने व्यवहार और फैसलों से ट्रम्प ने अपने प्रति अवाम के दिलों में गुस्सा भरने का काम किया. इनमें सबसे बड़ा मामला तो अश्वेतों के प्रति नजरिया था. एक अश्वेत की पुलिस ने जिस तरह हत्या की, उससे अल्पसंख्यक और अश्वेत भड़क उठे.

भारतीय भी वहां एक तरह से अश्वेत ही माने जाते हैं. इसके बाद ट्रम्प को सौ फुट नीचे बने तहखाने के बंकर में जाना पड़ा, सेना को तैनात करने की धमकी देनी पड़ी और पुलिस को समूचे मुल्क में घुटनों के बल बैठकर खेद जताना पड़ा था.

इससे ट्रम्प की स्थिति काफी कमजोर हो गई. रही-सही कसर उनके इस बयान ने पूरी कर दी, जिसमें कहा गया था कि जब लूट शुरू होती है तो उसके बाद शूट भी होता है. एक रिपोर्ट के मुताबिक औसतन अमेरिकी पुलिस रोज तीन नागरिक मारती है. इनमें एक अश्वेत होता है.

ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के बाद डेढ़ हजार के आसपास अश्वेत नागरिक पुलिस के हाथों मारे जा चुके हैं. इसके अतिरिक्त डोनाल्ड  ट्रम्प के एच-1 वीजा निलंबन के फैसले ने भी वहां बसे भारतीयों के मन में नाराजगी भर दी. इन्हीं दिनों डोनाल्ड ट्रम्प ने ऑनलाइन अध्ययन करने वाले छात्नों को स्वदेश लौटने का फरमान भी जारी कर दिया. इसे उचित नहीं माना गया.

यह ठीक है कि ऑनलाइन अध्ययन भारत में भी हो सकता है, मगर इन दिनों छात्नों के लिए एक तो यात्ना में जान का जोखिम है और दूसरा आना-जाना बहुत महंगा है. जाहिर है छात्नों के लिए यह बड़ा झटका है.  

भारत और चीन के बीच बीते दिनों सीमा पर गंभीर तनाव तथा बीस फौजियों की शहादत पर अमेरिकी सरकार का रवैया शुरुआत में बड़ा ठंडा था. तीन दिन तक डोनाल्ड ट्रम्प की हुकूमत यही तय नहीं कर पाई कि उसे भारत का किस स्तर तक साथ देना है. इससे अमेरिका में रहने वाले भारतवंशियों को निराशा हुई.

अमेरिका की आईटी इंडस्ट्री को पालने-पोसने वाले तो भारतीय ही हैं. डोनाल्ड ट्रम्प के रंग बदलते व्यवहार ने उन्हें अपनी परंपरागत डेमोक्रेटिक पार्टी के पाले में लौटने के लिए मजबूर कर दिया है.

अब भले ही ट्रम्प चुनाव पूर्व अनुमानों को फर्जी बताएं, लेकिन हकीकत यही है कि उनकी लोकप्रियता का ग्राफ इस साल तेजी से गिरा है. लोग उनका चार साल पुराना वह बयान भी याद कर रहे हैं जो अमेरिकी चुनाव प्रक्रि या पर ही सवाल खड़े करता था.

इस बयान में उन्होंने कहा था कि अगर डेमोक्रेट उम्मीदवार ने उन्हें पराजित किया तो वे उस नतीजे का सम्मान नहीं करेंगे. इससे लोकतांत्रिक मतदाताओं को निराशा हुई थी.

इसलिए डेमोक्रेटिक पार्टी के अध्यक्ष थॉमस पेरेज का यह दावा अनुचित नहीं लगता कि भारतीय मूल के अमेरिकी मतदाताओं का बहुमत उनके दल को मिला तो जो बिडेन की जीत में शंका नहीं है. जो बिडेन बराक ओबामा के भरोसेमंद हैं इसलिए उनका स्थायी स्वाभाविक रुझान भारत के प्रति है.

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