तमाम प्रेतबाधाओं को पार करते हुए इमरान खान नियाजी अब पाकिस्तान के प्रधानमंत्नी हैं। पहली बार कोई क्रिकेट स्टार अब सियासत की पिच पर आकर डट गया है। मुल्क के आसमान पर मंडराते जिन्नों को बोतल में बंद करना इमरान के लिए नामुमकिन नहीं तो बहुत आसान भी नहीं है। इस काम के लिए वहां की अवाम कोई बहुत लंबा वक्त उन्हें नहीं देने वाली है। वर्षो से दो घरानों और फौजी हुकूमत से अघाए लोग इस बार एक नए चेहरे पर यकीन कर बैठे हैं, जिसकी स्लेट एकदम कोरी है। उधर, इमरान के लिए भी यह पारी करो या मरो जैसी स्थिति में है। बाइस साल में उनकी छवि कभी एक भरोसेमंद गंभीर राजनेता की नहीं रही। कह सकते हैं कि इमरान अंगारों पर चल रहे हैं। उन्हें पुराने इमरान को इन अंगारों में राख करना होगा। यदि वे ऐसा नहीं कर पाए तो एक बार फिर पाकिस्तान में जम्हूरियत की साख को बट्टा लगेगा।
आज के पाकिस्तान में इमरान की चुनौतियों की फेहरिस्त बड़ी है। सबसे विकराल संकट खाली खजाने का है। अगर एक महीने के भीतर इमरान ने अपने पिटारे से कोई जादू की छड़ी नहीं घुमाई तो दिवालियेपन का जिन्न देश को अपने शिकंजे में जकड़ लेगा। ताजा आंकड़ों के मुताबिक पाकिस्तान के पास कोई आठ अरब डॉलर विदेशी मुद्रा का भंडार शेष है। यह वहां के इतिहास में अब तक का सबसे कम है। तेरहवीं बार मुल्क को अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष के सामने झोली फैलानी पड़ेगी। इससे पहले मियां नवाज शरीफ ने भी मुद्राकोष के सामने याचक बन कर जाने का फैसला किया था, मगर उसका इतना विरोध हुआ कि नवाज को बढ़े कदम वापस खींचने पड़े। इससे पाकिस्तान की अंदरूनी हालत खस्ता हो गई। नवाज की हार के पीछे यह भी एक साजिश थी क्योंकि जानकार मानते थे कि मुद्राकोष की देहरी पर नाक रगड़ने के अलावा कोई चारा पाकिस्तान के पास नहीं है। मौजूदा परिस्थितियों में मुद्राकोष से इतनी मदद कठिन लगती है। अमेरिका ने पहले ही हाथ खींच रखे हैं।
अगला दरवाजा चीन का है। ताजे सरकारी आंकड़ों के अनुसार चीन से पाकिस्तान का व्यापार घाटा दस अरब डॉलर है। बीते पांच साल में यह पांच गुना बढ़ा है। इस साल अब तक पाकिस्तान चीन से पांच अरब डॉलर का कर्ज ले चुका है। अगर हम विश्व बैंक की चेतावनी को गंभीरता से लें तो पाकिस्तान की वित्तीय सेहत अत्यंत बिगड़ चुकी है। विश्व बैंक ने कहा था कि चालू माली साल में ऋण भुगतान और घाटे को पाटने के लिए हर हाल में 17 अरब डॉलर की जरूरत होगी। यदि अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष ने हाथ खड़े कर दिए तो इमरान खान के सामने एक बार फिर चीन के दरवाजे पर दस्तक देने के सिवा कोई विकल्प नहीं बचेगा। देखा जाए तो चीन के चंगुल में पाकिस्तान पूरी तरह फंस चुका है। दोनों देशों की इकोनॉमिक कॉरिडोर परियोजना 62 अरब डॉलर की है। इसमें उसने पाकिस्तान को कितना ऋण दिया है-किसी को नहीं मालूम। शर्ते एकदम गोपनीय हैं। विडंबना है कि पाकिस्तान को चीन से कर्ज मिलता है। पाकिस्तान उस पैसे से आवश्यक वस्तुएं चीन से आयात करता है। यानी चीन के दोनों हाथ में लड्ड हैं। उसने पाकिस्तान में अपनी मुद्रा चला दी, अपना बैंक खोल दिया, अपने ठेकेदारों को काम दे दिया और अब पाकिस्तान की आर्थिक गर्दन दबोचने की पूरी तैयारी कर ली है। इमरान के पास कोई चारा नहीं है।
इमरान का एक सिरदर्द कट्टरपंथियों, फौज व आईएसआई के पिंजरे से बाहर निकलना है। जिस सेना ने उन्हें प्रधानमंत्नी बनवाया, उनके चुनाव पर करोड़ों रुपए खर्च किए वह इमरान को अपनी मुट्ठी से यूं ही नहीं फिसल जाने देगी। इमरान पिंजरे से बाहर मुक्त आकाश में उड़ान नही भरेंगे तो इतिहास के किसी पन्ने में बंद होकर रह जाएंगे। जुल्फिकार अली भुट्टो, बेनजीर, आसिफ अली जरदारी, नवाज शरीफऔर यहां तक कि जनरल परवेज मुशर्रफ भी जानते थे कि भारत के अलावा उनका कोई संकट मोचक नहीं है। इमरान भी यह समझते हैं लेकिन फौज और आईएसआई भारत को अपने मुल्क की बर्बादी का सबब मानती है, ऐसे विरोधाभास के चलते इमरान कैसे अपनी राह ढूंढेंगे- यह विकट सवाल है। घरेलू मोर्चे पर आम आदमी को राहत देना भी इमरान के लिए एक बड़ी चुनौती है। वहां का बुनियादी ढांचा चरमराया हुआ है। महंगाई अपने विकराल रूप में है। बेरोजगारी ने नौजवानों में गुस्सा भर दिया है। सड़क, बिजली, पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं का हाल बेहद खराब है। इमरान इनके लिए बजट आवंटन कहां से करेंगे - कोई नहीं जानता। भारत से नफरत की अफीम चटा कर अवाम को बेवकूफ बनाने के दिन अब लद गए। अब लोग सिर्फ परिणाम चाहते हैं।
बाहरी मोर्चे पर भी इमरान की कठिनाइयां हजार हैं। स्वतंत्न विदेश नीति की बात करना आसान है लेकिन अमल में लाना उतना ही मुश्किल। इमरान खान खुद भी यह जानते हैं कि कश्मीर समस्या को हल किए बिना वे भारत से सामान्य संबंध नहीं बना सकते। पाकिस्तान का आम आदमी भी यह बात समझता है कि उनका देश कश्मीर कभी नहीं ले पाएगा। इसके बावजूद वह भावनात्मक रूप से हिंदुस्तान से जुड़ा है। वह चाहता है कि कश्मीर को भूलकर उनके देश के नियंता भारत से दोस्ती की राह पर चलें। लेकिन पाकिस्तानी फौज और वहां सक्रिय आतंकवादी समूह इस पर किसी भी सूरत में अमल नहीं होने देंगे। इस दृष्टि से देखें तो इमरान खान के कार्यकाल में भी रिश्ते कोई सुधरते हुए नहीं लगते। पाकिस्तान संसार भर में दसों दिशाओं में कश्मीर के लिए चक्कर लगा चुका है। सिर्फ उस देश से वह बात नहीं करना चाहता, जो उसका उद्धार कर सकता है। एकमात्न तरीका हिंदुस्तान से दोस्ती है। आज नहीं तो कल उसे यह सच्चाई समझनी पड़ेगी। हिंदुस्तान से सामान्य रिश्तों में एक बड़ी बाधा अफगानिस्तान भी है। जब तक अफगानिस्तान में सक्रिय तालिबानी गुटों को वह पनाह देता रहेगा, दोनों तरफ से उसे सीमा पर खतरा बना रहेगा। भारत अफगानिस्तान से अपने कदम पीछे नहीं खींच सकता।
अगर पाकिस्तान ने अपने देश के अंदर उग्रवादियों के प्रशिक्षण केंद्र और ठिकाने बंद करने में कामयाबी हासिल की तो दोनों मोर्चो पर उसे शांति की सुविधा मिलेगी। कश्मीर सीमा पर तनाव कम होने से भारत भी राहत की सांस लेगा और अफगानिस्तान भी। यह इमरान को एक नया पाकिस्तान बनाने में सहायता ही करेगा। अमेरिका से संबंधों में तनाव भी पाकिस्तान के लिए अच्छा नहीं है। जब तक विदेश नीति स्थायी और पाकिस्तान के अपने हित में तैयार नहीं की जाएगी, उसे अपने कष्टों से मुक्ति नहीं मिलेगी। संभवत: पाकिस्तान संसार का अकेला ऐसा देश है, जो अपनी विदेश नीति बिना अपना कल्याण देखे बनाता रहा है। इमरान खान को इस पर जोखिम लेना ही पड़ेगा - चाहे कुर्सी ही क्यों न दांव पर लगानी पड़े।