पाकिस्तान चुनाव विशेष: प्रजातंत्र की देह पर लगा हुआ है भ्रष्टाचार का दीमक

By राजेश बादल | Published: July 21, 2018 08:58 AM2018-07-21T08:58:15+5:302018-07-21T08:58:15+5:30

पाकिस्तान में 25 जुलाई को आम चुनाव होने हैं। वरिष्ठ पत्रकार राजेश बादल पाकिस्तानी के राजनीतिक इतिहास पर लोकमत समाचार के लिए विशेष शृंखला लिख रहे हैं।

pakistan election special nawaz sharif political journey and his downfall | पाकिस्तान चुनाव विशेष: प्रजातंत्र की देह पर लगा हुआ है भ्रष्टाचार का दीमक

पाकिस्तान चुनाव विशेष: प्रजातंत्र की देह पर लगा हुआ है भ्रष्टाचार का दीमक

यह तिलिस्मी सवाल है कि फौज ने जिनको नेता बनाया, वे बाद में उससे क्यों छिटके? बेनजीर भुट्टो से सेना के रिश्ते बिगड़े तो 1990 में नवाज शरीफ ने आर्मी का दामन थामा। कारोबारी घराने से आए नवाज राजनीति में पिता को गुरु मानकर सियासत की चालें चलते रहे थे। बेनजीर ने जहां पाकिस्तान को छोड़ा था, उससे कुछ भी अलग करते तो फौज की त्यौरी चढ़ जातीं। कसमसाते नवाज के दिन कट रहे थे। अवाम को लगा कि यह कैसी हुकूमत है, जिसमें चेहरा व पार्टी तो बदलती है, काम वही होता है जो होता आया था। बहरहाल! कुछ दिन फौज के साथ हनीमून के बाद दोनों का एक दूसरे से मोहभंग हो गया। 

फौज बेहद आक्रामक अंदाज में कश्मीर समस्या निपटाना चाहती थी। नवाज हिचक रहे थे। वे भारत से अच्छे रिश्तों की वकालत करते, जो सेना को नागवार था। फौज उन्हें भरोसे में लिए बिना कश्मीर में आतंकवाद को खुल्लमखुल्ला शह दे रही थी। इसके अलावा भ्रष्टाचार चरम पर था। आर्थिक स्थिति डांवाडोल थी। इस हाल में दोनों के बीच फासला बढ़ता गया और एक सुबह जब नवाज जागे तो प्रधानमंत्नी नहीं रहे थे। उन्हें बर्खास्त कर दिया गया था। देश के टीवी, रेडियो और महत्वपूर्ण ठिकानों पर एक रात पहले ही सेना का नियंत्नण हो चुका था। एक बेहद खामोश तख्तापलट। मुल्क एक बार फिर सेना की निगरानी में चुनाव की तैयारी कर रहा था। यह 1993 का साल था। चुनाव हुए। नवाज की पार्टी औंधे मुंह गिरी। बेनजीर भुट्टो फिर गद्दीनशीन। इस बार वो एक-एक कदम फूंककर रख रही थीं।

उन्होंने आर्थिक स्थिति सुधारने, नौजवानों को रोजगार और कृषि उत्पादन बढ़ाने पर जोर दिया। इसके कुछ अच्छे नतीजे भी आए। मगर चंद रोज बाद उनके कदम भी बहक गए। मां और भाई मुर्तजा भुट्टो से मतभेद गहरा गए। दरअसल बेनजीर ने जब सत्ता संभाली तो मुर्तजा भुट्टो विदेश से निर्वासन समाप्त करके पाकिस्तान लौट आए। आते ही बहन की सरकार ने उन्हें आतंकवाद के आरोप में जेल में डाल दिया। बेनजीर के पति आसिफ अली जरदारी ने इसमें खास भूमिका निभाई। वे सरकार के काम में दखल देने लगे थे। बड़े ठेके और सौदों में उनकी चलती थी। राजनीतिक हलकों में उनका नाम ‘मिस्टर टेन परसेंट’ हो गया था।

जरदारी खुद को बेनजीर का उत्तराधिकारी मानने लगे थे। दूसरी ओर पीपुल्स पार्टी और जनता के बीच बेनजीर से ज्यादा लोकिप्रय भाई मुर्तजा भुट्टो थे जो खुलकर बेनजीर और उनके पति की आलोचना करने लगे थे। इसी बीच पुलिस मुठभेड़ में मुर्तजा भुट्टो 20 सितंबर 1996 को मारे गए। इसके पीछे बेनजीर और उनके पति जरदारी का हाथ बताया गया। बेनजीर को सफाई देनी पड़ी। लोगों ने उन पर यकीन करना छोड़ दिया था। बेनजीर ने इसी बीच सेना और आईएसआई के आला पदों पर कुछ नई नियुक्तियां कीं। यही उनकी दूसरी सरकार का काल बन गया। बेनजीर ने सेना के मामलों में दखल दिया था और सेना के अफसरों से नहीं पूछा। राष्ट्रपति ने सेना के दबाव में भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन के आरोप में एक बार फिर बेनजीर की सरकार बर्खास्त कर दी। पाकिस्तान की सियासत एक अंधी सुरंग में थी। 

क्रमशः

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Web Title: pakistan election special nawaz sharif political journey and his downfall

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