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राजेश बादल का ब्लॉग: अवाम-ए-पाकिस्तान और दगाबाज हुकूमत

By राजेश बादल | Updated: January 25, 2022 16:21 IST

करतारपुर साहब गुरु द्वारा अकेला उदाहरण नहीं है। बाबा गुरु नानक के जन्मस्थल ननकाना साहब गुरु द्वारे में तो खुलेआम खालिस्तानी समर्थक आपत्तिजनक बैनर, पोस्टर लगाए हैं और भारत विरोधी साहित्य मिलता है।

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खुलासे हो रहे हैं। रोज नए-नए खुलासे। चौंकाने वाली जानकारियां आ रही हैं। पाकिस्तान के लोग अभी तक इसे अपनी सरकार की भलमनसाहत मान रहे थे कि उसने करतारपुर साहिब गुरु द्वारा कॉरिडोर की पहल कर हिंदुस्तान के साथ अच्छे संबंधों के सिलसिले की शुरुआत की है। 

इससे दोनों देशों के रिश्तों में जमी बर्फ पिघलेगी और करीब पौन सदी के बाद लोग आपस में प्यार से रह सकेंगे, लेकिन हालिया ब्यौरे से साबित हो गया है कि पाकिस्तान गुरुद्वारों के बहाने भारत को बांटने की कुटिल चालों से बाज नहीं आया है। 

शुक्र है कि अब हुकूमत की इस मानसिकता का विरोध पाकिस्तान में ही शुरू हो गया है। जाने-माने बैरिस्टर हकीम बाशानी ने इमरान सरकार को रवैया बदलने के लिए आगाह किया है। असल में कोई भी अवाम हो, एक सीमा तक ही सत्ता के कुत्सित इरादों को बर्दाश्त करती है। 

आपको याद होगा कि जब पाकिस्तान सरकार ने करतारपुर साहिब गुरु द्वारा कॉरिडोर खोलने की पहल की तो विदेश मंत्नी शाह महमूद कुरैशी ने इसे इमरान की पार्टी के एक जलसे में प्रधानमंत्री की गुगली बताया था।

अवाम ने इसका स्वागत भी किया था, लेकिन जब श्रद्धालुओं का आना-जाना प्रारंभ हो गया तो वे गुरु द्वारे में जहरीले पोस्टर देखकर हैरान रह गए। दरअसल पाकिस्तान सरकार ने करतारपुर साहिब गुरुद्वारे में एक विशाल बोर्ड लगा दिया है। इसमें लिखा है कि भारत ने 1971 की जंग में इस गुरुद्वारे को बम से उड़ाने का षड्यंत्र रचा था।

वह बम परिसर के कुएं में जा गिरा। इस तरह अल्लाहताला ने और वाहे गुरु ने गुरु द्वारे को बचा लिया। पाकिस्तान सरकार ने कांच के एक खोल में यह तथाकथित बम बंद करके श्रद्धालुओं के लिए किसी धार्मिक सामग्री की तरह रखा हुआ है। 

अब इसे वहां की सरकार का कैसा रवैया माना जाए। भारतीय विदेश विभाग ने पहले ही पाकिस्तान सरकार से वादा लिया था कि वहां भारत के खिलाफ भावनाएं भड़काने वाला कोई प्रदर्शन नहीं किया जाएगा।

बैरिस्टर बाशानी अब अपने देश की तरफ से इमरान हुकूमत से पूछ रहे हैं कि एक तरफ आप भारत से सद्भावना दिखाने का नाटक करते हैं, दूसरी ओर उस देश के सिखों को उनकी ही सरकार के खिलाफ भड़काते हैं। बैरिस्टर साहब यहीं नहीं रुकते। 

वे कहते हैं कि कमाल की बात है कि अल्लाह और वाहेगुरु करतारपुर साहिब गुरुद्वारे को बचाने के लिए एक हो गए, मगर पाकिस्तान की सरकारों ने पिछले पचहत्तर साल में सैकड़ों गुरु द्वारों को बर्बाद कर दिया।

करतारपुर साहब गुरु द्वारा अकेला उदाहरण नहीं है। बाबा गुरु नानक के जन्मस्थल ननकाना साहब गुरु द्वारे में तो खुलेआम खालिस्तानी समर्थक आपत्तिजनक बैनर, पोस्टर लगाए हैं और भारत विरोधी साहित्य मिलता है। 

पाकिस्तान की सरकार के दोहरे चरित्र का यह प्रमाण है। पाकिस्तान में बैरिस्टर बाशानी इस तरह सोचने वाले अकेले नहीं हैं, लेकिन जितने भी लोग वहां हैं, वे अल्पमत में हैं और उन्हें सच होते हुए भी अपने देश का अब तक समर्थन नहीं मिलता था। यह वर्ग ऐसा है, जिसने पाकिस्तान बनने के बाद हिंदुस्तान की प्रगति और रंजिश भाव रखने के कारण पाकिस्तान की दुर्दशा देखी है।

यह बुद्धिजीवी तबका कहता है कि पाकिस्तान के हुक्मरानों ने भारत के खिलाफ इतना जहर उगला है कि वहां नई नस्लों का डीएनए ही बदल गया है। भारत का नाम आते ही उनके मन में घृणा भाव आने लगता है। 

बाशानी पांच साल से चल रहे एक शो ‘सरहद के उस पार’ में कहते हैं कि पाकिस्तान सरकार को समझना चाहिए कि वह नाटक तो गुरुद्वारे खोलने का करते हैं, लेकिन जब हिंदुस्तान से लाखों नागरिक आते हैं और उन्हें वह मुल्क बड़ी नेकनीयती से पाकिस्तान आने की इजाजत देता है तो यह साफतौर पर उनके साथ षड्यंत्र नजर आता है।

आप किसी देश के श्रद्धालुओं को उनके ही राष्ट्र के विरोध में भड़काते हैं और फिर उनसे संबंध भी सुधारना चाहते हैं। यह कैसा रवैया है। इमरान खान को पता ही नहीं है कि उनके आसपास क्या चल रहा है, यह दुर्भाग्यपूर्ण है। पाकिस्तान की हुकूमतें कई जंगें भारत से लड़ चुकी हैं। किसी का कोई फायदा नहीं हुआ।

अलबत्ता सरकारी पैसे से प्रचार माध्यमों के जरिये हिंदुस्तान जैसे बड़े मुल्क के विरुद्ध नफरत की फसलें बोई गईं। विडंबना है कि अब इमरान सरकार भारत से रिश्ते सुधारने की वकालत कर रही है। बीते एक-डेढ़ महीने में प्रधानमंत्री इमरान खान नियाजी दो-तीन बार अप्रत्यक्ष रूप से भारत की तारीफ कर चुके हैं।

यह स्वयं पाकिस्तानियों के लिए चौंकने वाली बात है। ताजा उदाहरण तो पाकिस्तान की राष्ट्रीय सुरक्षा नीति है। यह महत्वपूर्ण दस्तावेज कहता है कि पाकिस्तान हिंदुस्तान के साथ सौ साल तक युद्ध नहीं करना चाहता, हालांकि दस्तावेज कश्मीर के बारे में कुछ नहीं कहता।

मगर यह मान भी लिया जाए तो कहा जा सकता है कि सारे संसार में दरवाजे-दरवाजे भटकने के बाद इस शातिर पड़ोसी को अक्ल आ गई है। अपने देश को जिंदा रखने के लिए उन्हें भारत से दोस्ती रखनी ही होगी।

टॅग्स :करतारपुर साहिब कॉरिडोरपाकिस्तान
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