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ब्लॉग: धधकते कजाकिस्तान के लिए क्या है आगे का रास्ता?

By शोभना जैन | Updated: January 15, 2022 11:17 IST

कजाकिस्तान में ईंधन की बेशुमार बढ़ती कीमतों, महंगाई और अराजक प्रशासकीय स्थिति व सरकार की निरंकुश नीतियों के विरोध में शुरू हुआ विरोध प्रदर्शन अब देश की भावी तस्वीर बदलने के जनांदोलन का रूप लेता जा रहा है. 

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ठळक मुद्देकजाकिस्तान के पिछले तीस सालों के इतिहास का यह सबसे बड़ा राजनीतिक संकट है.दुनिया के कुल यूरेनियम उत्पादन का 40 फीसदी कजाकिस्तान से आता है.कजाकिस्तान में हो रही उथल-पुथल, अस्थिरता भारत के लिए भी चिंताजनक है.

कजाकिस्तान धधक रहा है. गत सप्ताह कजाकिस्तान की सड़कों पर अचानक भड़के हिंसक प्रदर्शन, सरकार द्वारा उन्हें सख्ती से दबाना, महंगाई की मार से त्रस्त आमजनों के बीच जिंदगी को चलाने की दहशत, अराजक प्रशासकीय स्थिति से निपटने के लिए देश के शीर्ष नेतृत्व द्वारा रूसी सेना को बुलाया जाना- कजाकिस्तान से इन दिनों ऐसी ही चिंताजनक खबरें आ रही हैं. 

ईंधन की बेशुमार बढ़ती कीमतों, महंगाई और अराजक प्रशासकीय स्थिति व सरकार की निरंकुश नीतियों के विरोध में शुरू हुआ विरोध प्रदर्शन अब देश की भावी तस्वीर बदलने के जनांदोलन का रूप लेता जा रहा है. 

कजाकिस्तान के पिछले तीस सालों के इतिहास का यह सबसे बड़ा राजनीतिक संकट है, जिसका क्या हल निकलेगा, कजाकिस्तान के लिए आगे का रास्ता क्या होगा, यह एक बड़ा सवाल है.

आखिर कजाकिस्तान क्यों उबल रहा है? यूरेनियम के समृद्ध विपुल प्राकृतिक भंडारों के स्रोत वाले कजाकिस्तान की इस अफरा-तफरी और दहशत भरी खबरों के बीच याद आता है कुछ बरस पहले का कजाकिस्तान, जब विदेश मंत्रियों की एक अहम बैठक में कजाकिस्तान के शांत और खूबसूरत अलमाटी शहर जाने का मौका मिला. 

प्राकृतिक सौंदर्य से आच्छादित एक बेहद खूबसूरत, गर्मजोशी रखने वाले बेफिक्र से समृद्ध लोगों का देश. भारतीय सैलानियों के लिए भी कजाकिस्तान एक पसंदीदा पर्यटक स्थल के रूप में उभर रहा था. 

दुनिया के कुल यूरेनियम उत्पादन का 40 फीसदी कजाकिस्तान से आता है जो परमाणु संयंत्रों के लिए मुख्य ईंधन है. इसलिए यहां उत्पन्न सामाजिक और राजनीतिक अस्थिरता का असर पूरी दुनिया पर पड़ेगा. 

कजाकिस्तान में हो रही उथल-पुथल, अस्थिरता भारत के लिए भी चिंताजनक है. पिछले कुछ सालों से भारत मध्य एशियाई देशों के साथ मजबूत संबंध बनाने की कोशिश कर रहा है. 

भारत ने कहा है कि एक निकट और साझीदार मित्र होने के नाते वह वहां हालात के जल्द स्थिर होने का इंतजार कर रहा है तथा वहां गए भारतीय नागरिकों की सुरक्षा को लेकर स्थानीय प्रशासकीय अधिकारियों के समन्वय से काम कर रहा है. 

निश्चित ही मध्य एशिया में हो रही अस्थिरता भारत के लिए प्रतिकूल है. कजाकिस्तान की अहमियत इसी बात से समझी जा सकती है कि रूस के साथ-साथ चीन, अमेरिका सभी महाशक्तियों की निगाहें यहां के घटनाक्रम पर लगी हैं. 

कजाक हिंसक प्रदर्शनों के बाद चीन ने वहां सुरक्षा के क्षेत्र में सहयोग देने का प्रस्ताव दिया है. साथ ही चीन ने कजाकिस्तान में बाहरी ताकतों द्वारा हस्तक्षेप का विरोध करने की भी बात कही है. चीन की कजाकिस्तान को लेकर इस तरह की सक्रियता भी अनेक सवाल उठा रही है. 

एक विशेषज्ञ के अनुसार चीन इस बात से आशंकित है कि अगर उसके पड़ोस में अशांति होगी तो उसका चीन के ऊर्जा व्यापार पर, बेल्ट-एंड-रोड परियोजना पर असर पड़ेगा. यानी आशंका यह भी है कि कजाकिस्तान अर्थव्यवस्था को चीनी हाथों में धकेलने की संभावनाएं लिए है. 

इसके अलावा चीन को लगता है कि इसका असर उसके शिन्जियांग इलाके पर भी पड़ेगा, जो कजाकिस्तान के साथ 1770 किमी लंबी सीमा साझा करता है.

दरअसल मध्य एशिया की अस्थिरता और उथल-पुथल के बीच कजाकिस्तान एक स्थिर और समृद्धि की ओर बढ़ता देश रहा है. सालों तक बनी स्थिरता के चलते पिछले दो दशकों में संसाधनों के मामले में संपन्न इस देश की अर्थव्यवस्था कई गुना बढ़ी, लेकिन सरकार की श्रम नीतियों वगैरह को लेकर अंदर ही अंदर कुछ असंतोष तो था. 

कजाकिस्तान की इन घटनाओं को बेलारूस, यूक्रेन और कजाकिस्तान में चल रही उथल-पुथल से जोड़कर देखना होगा. हालांकि इन सभी देशों में चल रही उथल-पुथल की अपनी अलग-अलग वजहें हैं लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि इन तमाम घटनाक्र मों को जोड़ें तो यूरेशिया की भू-राजनीति में एक नया जुड़ाव नजर आता है जिसमें रूस की केंद्रीय भूमिका है.

कजाकिस्तान आज इतिहास के दोराहे पर खड़ा है. एक तरफ उसकी जनता में अपने वर्तमान शासकों की नीतियों को लेकर असंतोष जनआंदोलन का रूप ले रहा है, साथ ही देश में बढ़ती अशांति से विदेशी निवेशकों के कजाकिस्तान में निवेश करने से कुछ हद तक पीछे हटने का अंदेशा भी नजर आता है. 

जरूरी है कि राष्ट्रपति कासिम-योमात तोकायेव पूर्व राष्ट्रपति नूर सुल्तान की शक्तिशाली छाया से निकल कर बिना बल प्रदर्शन के जनता के सरोकारों को लेकर सीधे उनसे बातचीत करें. 

हालांकि इन सबके बीच वहां के सबसे बड़े नेता और 29 साल तक राष्ट्रपति रह चुके नूर सुल्तान नजरबायेव संभवत: अपने खिलाफ बढ़ते जनअसंतोष के चलते सार्वजनिक जीवन में नजर नहीं आ रहे हैं. कजाकिस्तान का आगे का रास्ता वहां के शासकों, राष्ट्रपति कासिम को जनता से सीधे जुड़कर ही तय करना होगा.

टॅग्स :KazakhstanचीनरूसRussiaAsia
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