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Justin Trudeau: आखिर किसने छीनी टूड्रो की बैसाखी...?

By विकास मिश्रा | Updated: January 15, 2025 14:56 IST

Justin Trudeau: सरकार लंगड़ी थी, उसे बचाने के लिए वे चरमपंथियों के रक्षक बने हुए थे लेकिन उन्हीं चरमपंथियों ने उनकी बैसाखी छीन ली.

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ठळक मुद्देचरमपंथियों के रक्षक बने हुए थे लेकिन उन्हीं चरमपंथियों ने उनकी बैसाखी छीन ली.घरेलू राजनीति में उनका ग्राफ तेजी से गिरता जा रहा था.दल के तीन दर्जन से ज्यादा सांसदों ने  उनके इस्तीफे की मांग की.

Justin Trudeau: बस कुछ दिन पहले तक जस्टिन टूड्रो के तेवर इतने तीखे थे जैसे वे  कनाडा के स्थाई शहंशाह हों लेकिन हालात ऐसे पलटे कि उन्हें  न केवल  प्रधानमंत्री बल्कि सत्ताधारी लिबरल पार्टी के नेता पद से भी इस्तीफा देना पड़ा. फिलहाल वे सत्ताधारी लिबरल पार्टी के नए नेता चुने जाने तक पीएम के पद पर बने रहेंगे. मगर सबसे बड़ा सवाल यह है कि उन्हें इस्तीफा क्यों देना पड़ा? इसका सीधा सा जवाब है कि अपने अहंकार में चूर जस्टिन टूड्रो किसी की सुन ही नहीं रहे थे. उनकी सरकार लंगड़ी थी, उसे बचाने के लिए वे चरमपंथियों के रक्षक बने हुए थे लेकिन उन्हीं चरमपंथियों ने उनकी बैसाखी छीन ली. टूड्रो जब खालिस्तान समर्थक न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता जगमीत सिंह के इशारे पर नाच रहे थे और भारत के खिलाफ आग उगल रहे थे तब घरेलू राजनीति में उनका ग्राफ तेजी से गिरता जा रहा था.

कनाडा में पढ़ने वाले विदेशी विद्यार्थियों में 40 प्रतिशत भारतीय हैं. भारत कनाडा का बड़ा आर्थिक साझेदार भी है. कनाडा की सामान्य जनता इस बात को समझ रही थी कि टूड्रो केवल अपनी सत्ता बचाए रखने के लिए ही चरमपंथियों का साथ दे रहे हैं. टूड्रो की पार्टी के पास जरूरत से कम सीटें थीं और जगमीत सिंह उसकी पूर्ति कर रहे थे.

हाल ही में कनाडा में एक सर्वे सामने आया जिसमें कहा गया है कि केवल 16 प्रतिशत लोग ही टूड्रो को पीएम के रूप में पसंद रहे थे. इस बीच कुछ उपचुनाव हुए जिसमें टूड्रो की पार्टी बुरी तरह पराजित हो गई. पार्टी के भीतर भी टूड्रो को लेकर असंतोष कुलबुलाने लगा था. उनके दल के तीन दर्जन से ज्यादा सांसदों ने  उनके इस्तीफे की मांग की.

टूड्रो की नीतियों के विरोध में उनकी वित्त मंत्री क्रिस्टिया ने इस्तीफा दे दिया. यह मानने में कोई गुरेज नहीं है कि अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव भी टूड्रो के लिए नया संकट लेकर आया. डोनाल्ड ट्रम्प चुनाव जीत गए जो टूड्रो को फूटी आंख भी नहीं देखना चाहते हैं. ट्रम्प के पहले कार्यकाल में भी टूड्रो के साथ संबंध ठीक नहीं थे.

ट्रम्प ने हालांकि अभी सत्ता नहीं संभाली है लेकिन आते ही जिस तरह से उन्होंने कनाडा से आयात पर 25 प्रतिशत टैक्स लगाने की चेतावनी जारी कर दी और सोशल मीडिया पर लिख भी दिया कि 20 जनवरी को ऑफिस संभालते ही वे कनाडा, मेक्सिको और चीन के खिलाफ टैरिफ लगाने के लिए आदेश पर हस्ताक्षर कर देंगे, इससे कनाडा में हड़कंप मच गया.

कनेडियन डॉलर नीचे की ओर जाने लगा. टूड्रो तत्काल ट्रम्प से मिलने भागे लेकिन उसका कोई फायदा नहीं हुआ. ट्रम्प ने लगे हाथ कनाडा को अमेरिका का 51 वां राज्य बनाने की नसीहत दे डाली. जब टूड्रो ने इस्तीफा दिया, उसके बाद भी ट्रम्प ने सोशल मीडिया पर अपनी चाहत का इजहार किया. परिस्थितियों ने इस कदर करवट ली कि टूड्रो के लिए खुद को बचा पाना मुश्किल हो रहा था.

थोड़ी-बहुत उम्मीद उन्हें जगमीत सिंह से रही होगी क्योंकि जगमीत को खुश करने के लिए उन्होंने भारत से तनाव भी मोल लिया था. लेकिन इतिहास गवाह है कि जगमीत जैसे चरमपंथी किसी के साथी नहीं होते.जगमीत को जैसे ही लगा कि टूड्रो कमजोर पड़ चुके हैं और अमेरिका में बाइडेन का जमाना बीतने वाला है तो उसने पलटी मार दी.

उसने सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी राय सबके सामने रख दी कि लिबरल यानी टूड्रो की पार्टी दूसरा मौका दिए जाने के लायक नहीं है. उसने यहां तक कह दिया कि हाउस ऑफ कॉमन्स के अगले सत्र में वह अविश्वास प्रस्ताव लाएगा. इन सबके बीच टूड्रो के लिए सत्ता से चले जाना ही एकमात्र विकल्प बचा था.

 हालांकि वे तकनीकी कारणों से अभी पद पर बने हुए हैं लेकिन उनके इस्तीफे को कनाडा की जनता और वहां के बाजार ने सुकून के रूप में लिया है. कनेडियन डॉलर की स्थिति सुधरने लगी है. विदेशी निवेशकों के भीतर भी उम्मीद की किरण फूटी है वर्ना टूड्रो और ट्रम्प के बीच उनके पिस जाने का खतरा पैदा हो गया था.

अब एक महत्वपूर्ण सवाल है कि टूड्रो के जाने के बाद क्या भारत और कनाडा के रिश्ते में कोई सुधार आएगा? जैसी कि उम्मीद है, टूड्रो की पार्टी इसी साल होने वाले चुनाव में जीत की संभावना से बहुत दूर जा चुकी है और कंजर्वेटिव नेता पियरे पोइलिवरे के पीएम बनने की पूरी उम्मीद है. टूड्रो की हरकतों के कारण भारत के साथ तनातनी के पूरे दौर में पियरे बेहतर संबंध की वकालत करते रहे हैं.

यदि हम दोनों देशों के संबंधों के इतिहास पर नजर डालें तो ट्रूडो से पहले स्टीफन हार्पर जब सत्ता में थे तो उन्होंने भारत के साथ अच्छे संबंध बनाए थे. यहां तक कि एक परमाणु समझौता भी हुआ था. हालांकि टूड्रो की लिबरल पार्टी ने भी चुनाव के दौरान 2015 में भारत के साथ अच्छे संबंध की बात की थी. लेकिन टूड्रो अपने पिता की तरह भारत के विरोधी साबित हुए. वे न केवल खालिस्तानियों के समर्थक  बन गए बल्कि उनका बर्ताव खालिस्तान के प्रवक्ता जैसा हो गया. टूड्रो की नीतियों की पियरे पोइलिवरे आलोचना करते रहे हैं.

उन्होंने साफ तौर पर कहा है कि भारत को लेकर टूड्रो के रुख से वे सहमत नहीं हैं. बल्कि उन्होंने यह भी कहा कि टूड्रो का व्यवहार गैरपेशेवर रहा है. इसलिए हम उम्मीद कर सकते हैं कि पियरे भारत के साथ रिश्ते जरूर सुधारेंगे. वैसे यह देखना ज्यादा महत्वपूर्ण होगा कि कनाडा की धरती पर चल रहे खालिस्तानी आतंकवाद पर पियरे कितनी लगाम लगा पाते हैं.

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