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Joe Biden-Donald Trump 2024: रंजिश भरी सियासत से अमेरिका मुश्किल में

By राजेश बादल | Updated: November 20, 2024 05:55 IST

Joe Biden-Donald Trump 2024: आने वाले दिनों में इसका परिणाम न केवल अमेरिका को, बल्कि उसके समूचे पिछलग्गू देशों तथा यूरोप के देशों को भुगतना पड़ेगा. नाटो देश परेशान हैं.

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ठळक मुद्देसमझ नहीं पा रहे हैं कि अब वे अपनी विदेश नीति में आमूलचूल परिवर्तन कैसे करें? बीते ढाई बरस से तो यह गोरे राष्ट्र यूक्रेन-रूस की जंग में अमेरिका का साथ देते आए हैं. खुलकर रूस के विरोध में हैं. अलबत्ता कुछ देश दबी जबान में रूस का समर्थन करते हैं.

Joe Biden-Donald Trump 2024: अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन अपने बचे-खुचे कार्यकाल में अजीबोगरीब फैसले ले रहे हैं. जाते-जाते वे डोनाल्ड ट्रम्प की अगली सरकार के लिए मुश्किलों का पहाड़ खड़ा कर रहे हैं. वे जानबूझ कर ऐसा कर रहे हैं. प्रचार अभियान के दौरान और उससे पहले डोनाल्ड ट्रम्प और जो बाइडेन के बीच सियासी प्रतिद्वंद्विता अब रंजिश में तब्दील हो गई है. आने वाले दिनों में इसका परिणाम न केवल अमेरिका को, बल्कि उसके समूचे पिछलग्गू देशों तथा यूरोप के देशों को भुगतना पड़ेगा. नाटो देश परेशान हैं.

वे समझ नहीं पा रहे हैं कि अब वे अपनी विदेश नीति में आमूलचूल परिवर्तन कैसे करें? बीते ढाई बरस से तो यह गोरे राष्ट्र यूक्रेन-रूस की जंग में अमेरिका का साथ देते आए हैं. वे अपने सैनिक संसाधनों और हथियारों से यूक्रेन की सहायता कर रहे हैं. खुलकर रूस के विरोध में हैं. अलबत्ता कुछ देश दबी जबान में रूस का समर्थन करते हैं.

अब डोनाल्ड ट्रम्प की सरकार निश्चित रूप से रूस के पक्ष में खुलकर आएगी तो यूरोप के देशों के सामने धर्मसंकट खड़ा होने वाला है. यक्ष प्रश्न यह है कि ऐसी स्थिति में वे अपनी नीतियों को किस तरह रूस के पक्ष में मोड़ेंगे. ट्रम्प तो रूस को सहयोग देने का ऐलान कर ही चुके हैं. पर इतनी आसानी से क्या अन्य देश खुलकर यूक्रेन के विरोध में खड़े हो जाएंगे?

उनके संसाधन और खजाने से पहले ही यूक्रेन के लिए इतना पैसा बहाया जा चुका है कि उसकी भरपाई आसान नहीं है. इस पृष्ठभूमि में जो बाइडेन की नई घोषणा उनके लिए आफत बन गई है. दरअसल जो बाइडेन ने अपनी विदाई की बेला में निर्णय लिया है कि अमेरिका पहली बार अब लंबी दूरी तक मार करने वाले आर्मी टेक्टिकल तंत्र और उसकी मिसाइलों का उपयोग रूस के खिलाफ यूक्रेन को करने देगा.

यह फैसला लेने से पहले उन्होंने अपने सहयोगियों से कोई विचार-विमर्श नहीं किया. इससे अमेरिकी प्रशासन तनाव में है. पेंटागन भी आगाह कर चुका है कि लंबी दूरी तक मार करने वाली मिसाइलें अमेरिका के पास कम हैं और उसकी अपनी रक्षा के लिए ही हैं. यदि वे यूक्रेन को दे दी गईं तो ठीक नहीं होगा.

शायद इसी वजह से अमेरिका अभी तक इस तंत्र के जरिये रूसी सीमा के अंदर मिसाइलों का इस्तेमाल करने के विरोध में रहा है. उसे आशंका थी कि इससे रूस और यूक्रेन की जंग विकराल आकार ले सकती है. कई यूरोपीय देश भी इसमें कूद पड़ेंगे. वैसे यूक्रेन एक साल से इन मिसाइलों का उपयोग अपने देश के अंदर घुस आई रूसी सेना के खिलाफ कर रहा है.

इसने रूस को भारी नुकसान पहुंचाया था. रूस के भीतर इन मिसाइलों से हमले करने की अनुमति नहीं देने के कारण यूक्रेन खुश नहीं था. राष्ट्रपति जेलेंस्की ने कहा था कि रूस के अंदर यदि इन मिसाइलों से आक्रमण करने की उसे अनुमति नहीं मिलती तो यह एक हाथ पीछे बांधकर हमला करने का आदेश देने जैसा है.

जो बाइडेन के इस फरमान के सियासी मायने भी निकाले जा रहे हैं. राजनीतिक प्रेक्षकों का एक वर्ग कयास लगा रहा है कि बाइडेन का यह निर्णय रूस और यूक्रेन के बीच जंग को दो महीने में समाप्त करा सकता है. इसका मतलब यह भी है कि रूस की पराजय हो सकती है. यानी जो बाइडेन अगले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को यह श्रेय नहीं लेने देना चाहेंगे कि वे इस जंग को समाप्त कराएं.

आपको याद होगा कि डोनाल्ड ट्रम्प अपने प्रचार अभियान में कह चुके हैं कि वे एक दिन में यह जंग खत्म करा देंगे. ट्रम्प का आशय यह भी था कि वे यूक्रेन के नीचे से जाजम खींच लेंगे और मजबूर होकर यूक्रेन को रूस के सामने घुटने टेकने पड़ेंगे. डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा था कि अमेरिका यूक्रेन के लिए अपना धन क्योंकर खर्च करे?

इसीलिए ट्रम्प के एक प्रवक्ता ने बीते दिनों यह कहा था कि यूक्रेन को यह भूल जाना चाहिए कि वह रूस से अपने हारे हुए इलाके वापस ले सकता है. इनमें क्रीमिया भी शामिल है. डोनाल्ड ट्रम्प के बेटे ने भी सोशल मीडिया पर अपनी पोस्ट में यह कहा था कि बाइडेन सरकार, सेना और रक्षा विभाग मेरे पिता को शांति स्थापित करने के प्रयासों में सहायता नहीं करने देना चाहते और इससे तीसरे विश्वयुद्ध की आग भड़क सकती है. डोनाल्ड ट्रम्प के बेटे की बात में दम है क्योंकि इस जंग में यूक्रेन नई मिसाइलों से कुर्स्क क्षेत्र के आसपास और भीतर हमला करने में सक्षम हो जाएगा.

कुर्स्क रूसी सीमा में है और पिछले तीन महीनों से यूक्रेन ने यहां लगभग 1000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर कब्जा कर रखा है. यह सीमा उत्तर कोरिया से लगती है और रूस के समर्थन में उत्तर कोरिया ने अपने सैनिकों की तैनाती कर दी है. इस तरह करीब-करीब तीन साल से जारी इस युद्ध में उत्तर कोरिया के उतरते ही वैश्विक समीकरण बदल जाएंगे.

यूरोप के देश भी अमेरिका का साथ देने से पहले हिचकिचाएंगे. बाइडेन के निर्णय ने यूक्रेन को तो प्रसन्न किया है, पर रूस को भड़का भी दिया है. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने चेतावनी दी है कि अमेरिका ने यदि ऐसा किया तो उसे परमाणु हथियारों का उपयोग करने पर बाध्य होना पड़ेगा. गुस्साए पुतिन ने यह भी कहा कि वह इसे नाटो देशों का युद्ध में शामिल होने का खुला ऐलान समझेगा.

गौरतलब है कि अमेरिका ने जब यूक्रेन को यह मिसाइलें देने का निर्णय किया था तो उससे पहले ब्रिटेन और अमेरिका के बीच एक गोपनीय बैठक हुई थी. इसमें इन मिसाइलों को यूक्रेन को देने पर चर्चा हुई थी. ब्रिटेन को आमतौर पर अमेरिका का पिछलग्गू माना जाता है, इसलिए माना जा रहा है कि ब्रिटेन वही करेगा, जो अमेरिका करेगा. यदि बात बढ़ी तो अंतरराष्ट्रीय तनाव का एक नया संस्करण हम देख सकते हैं.

उधर, बाइडेन के निर्णय ने यकीनन डोनाल्ड ट्रम्प की मुश्किल बढ़ाने का काम किया है. ऐसे निर्णय व्यक्ति के नहीं, बल्कि देश के होते हैं. दो महीने बाद वे सिंहासन संभालेंगे तो अमेरिका की बाइडेन सरकार के फैसलों को पलटना उनके लिए अत्यंत जटिल होगा. बोलचाल की भाषा में कहें तो जो बाइडेन ट्रम्प के लिए रायता फैला कर जा रहे हैं.

टॅग्स :डोनाल्ड ट्रंपजो बाइडनअमेरिकाUSA
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