घरेलू मोर्चे पर आर्थिक उथल-पुथल और राजनीतिक अस्थिरता झेलने के साथ ही अमेरिका और पड़ोसी देशों के साथ उलझे रिश्तों के चक्रव्यूह में फंसे जापान की पूर्व आर्थिक सुरक्षा मंत्री तथा दक्षिणपंथी विचारधारा से प्रभावित साने ताकाइची को जापान की सत्तारूढ़ लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (एलडीपी) का बहुमत से नेता चुन लिया गया. वे आगामी 15 अक्तूबर को संसदीय मंजूरी के बाद जापान की पहली महिला प्रधानमंत्री बनने वाली हैं. उन्हें संसद में सत्तारूढ़ दल के बहुमत के चलते संसदीय मंजूरी मिलने की पूरी उम्मीद है. निश्चय ही उनका कार्यकाल चुनौतियों भरा होगा.
एक तरफ जहां उनके ऊपर बिखरे हुए गठबंधन सहयोगियों के साथ एकजुटता बनाकर सरकार और गठबंधन सहयोगियों के साथ सामंजस्य बनाते हुए नेता के रूप में काम करने की जिम्मेदारी होगी तो दूसरी तरफ घरेलू मोर्चे पर ताकाइची के सम्मुख बढ़ती कीमतों से नाराज जनता का विश्वास हासिल करने की भी चुनौती है.
अधिक व्यय और आसान मौद्रिक नीति के साथ अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए वे पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे की ‘आबेनामिक्स’ रणनीति की समर्थक हैं. इस के साथ ही उन्हें तेजी से बदलते अंतरराष्ट्रीय समीकरणों में जापान के हितों और भू-राजनीतिक स्थिति में उसकी प्रभावी भूमिका सुनिश्चित करनी है.
देश की मुख्यतः पुरुष प्रधान सत्तारूढ़ पार्टी की वे पहली महिला अध्यक्ष हैं, जिनका राजनीति ग्राफ खासा प्रभावी रहा है. उन्होंने आर्थिक सुरक्षा, आंतरिक मामलों और लैंगिक समानता मंत्री सहित प्रमुख पार्टी और सरकारी पदों पर कार्य किया है. लेकिन पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर की प्रशंसक ताकाइची की राह अब चुनौतियों भरी होगी.
बहरहाल, अगर उनके कार्यकाल में भारत के साथ जापान के रिश्ते की बात करें तो भारत में, पूर्व पीएम शिंजो आबे के साथ उनके जुड़ाव की वजह से उनकी जीत को काफी हद तक सकारात्मक तरीके से देखा जाएगा. आबे के कार्यकाल में भारत-जापान संबंधों में तेजी से सुधार हुआ था.
सरकार विभिन्न मोर्चों पर, खासकर प्रौद्योगिकी और महत्वपूर्ण खनिज प्रसंस्करण के क्षेत्र में, अपना सहयोग जारी रखने का प्रयास कर सकती है. क्वाड शिखर सम्मेलन और ट्रम्प की हिंद-प्रशांत नीति के प्रति प्रतिबद्धता को लेकर छाई अनिश्चितता के बीच, भारत को जापान में एक ऐसे मजबूत नेता की उम्मीद है जो इस क्षेत्र में वर्तमान में व्याप्त भू-राजनैतिक उथल-पुथल को शांत करने में भी मदद करे.