वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: अमेरिका में बज रहा भारतवंशियों का डंका
By वेद प्रताप वैदिक | Published: December 19, 2022 12:03 PM2022-12-19T12:03:23+5:302022-12-19T12:04:49+5:30
भारत के प्रवासी प्रायः उत्साही नौजवान ही होते हैं जो वहां पढ़ने जाते हैं, वे या तो वहीं रह जाते हैं या फिर यहां से अनेक सुशिक्षित लोग बढ़िया नौकरियों की तलाश में अमेरिका जा बसते हैं।
भारतीय मूल के लगभग दो करोड़ लोग इस समय विदेशों में फैले हुए हैं। लगभग दर्जन भर देश ऐसे हैं, जिनके राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री वगैरह भारतीय मूल के हैं। भारतीय लोग जिस देश में भी जाकर बसे हैं, वे उस देश के हर क्षेत्र में सर्वोच्च स्थानों तक पहुंच गए हैं। इस समय दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्ति और महासंपन्न देश अमेरिका है, जहां इस समय 50 लाख लोग भारतीय मूल के हैं।
इसके कारण भारत से प्रतिभा-पलायन जरूर हुआ है लेकिन अमेरिका के ये भारतीय मूल के नागरिक सबसे अधिक संपन्न, सुशिक्षित और सुखी लोग हैं, ऐसा कई सर्वेक्षणों ने सिद्ध किया है। यदि अमेरिका में 200 साल पहले से भारतीय बसने शुरू हो जाते तो शायद अमेरिका भी मॉरीशस, सूरीनाम वगैरह की तरह भारत-जैसा देश बन जाता।
भारत के प्रवासी प्रायः उत्साही नौजवान ही होते हैं जो वहां पढ़ने जाते हैं, वे या तो वहीं रह जाते हैं या फिर यहां से अनेक सुशिक्षित लोग बढ़िया नौकरियों की तलाश में अमेरिका जा बसते हैं। उनके साथ उनके माता-पिता भी वहीं बसने की कोशिश करते हैं। इसके बावजूद भारतीय अप्रवासियों की औसत आयु 41 वर्ष है, जबकि अन्य देशों के अप्रवासियों की 47 वर्ष है।
लगभग 50-55 साल पहले जब मैं न्यूयाॅर्क की सड़कों पर घूमता था तो कभी-कभी कोई भारतीय ‘टाइम्स स्क्वायर’ पर दिख जाता था लेकिन अब हर बड़े शहर और प्रांत में भारतीय भोजनालयों में भीड़ लगी रहती है। विश्वविद्यालयों में भारतीय छात्रों और अध्यापकों की भरमार है। अमेरिका की कई कंपनियों और सरकारी विभागों के सिरमौर भारतीय मूल के लोग हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि आज से 24 साल पहले मैंने जो लिखा था, वह भी शीघ्र हो ही जाए। ब्रिटेन की तरह अमेरिका का शासन भी किसी भारतीय मूल के व्यक्ति के हाथ में ही हो।