India-Pakistan tension:पाकिस्तान के उपप्रधानमंत्री और विदेश मंत्री मोहम्मद इशाक डार इन दिनों चीन के दौरे पर हैं. चीन ने भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव के दौरान सीधे तौर पर पाकिस्तान का साथ दिया था. संभव है कि इशाक डार ड्रैगन को धन्यवाद देने और हथियारों की कुछ नई भीख मांगने पहुंचे हों! वैसे पाकिस्तान के पास मौजूद चीनी हथियारों को भारतीय सेना ने मलबे में तब्दील कर दिया था, यह न पाकिस्तान भूूला होगा और न ही चीन! चीनी हथियारों की पूरी दुनिया में किरकिरी हुई है और उसे खरीदने के बारे में अब तो हर देश चार बार सोचेगा.
लेकिन यहां चर्चा का विषय अलग है. मोहम्मद डार के पहुंचने के बाद चीनी विदेश मंत्रलय की प्रवक्ता वांग यी ने कहा कि भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम में चीन रचनात्मक भूमिका निभाने के लिए तैयार है. वांग से यह पूछा जाना चाहिए कि तुमसे भूमिका निभाने के बारे में कहा किसने? भारत ने तो बिल्कुल भी नहीं कहा है!
चीन के उतावलेपन पर एक चालाक बंदर की कहानी याद आ रही है. दो बिल्लियां एक रोटी के लिए झगड़ रही थीं. वह बंदर बीच में कूदा और कहा कि वह रोटी को दो बराबर हिस्सों में बांट कर झगड़ा सुलझा सकता है. बिल्लियां राजी हो गईं. बंदर ने जानबूझ कर रोटी को बराबर आधे हिस्सों में नहीं बांटा. हर बार छोटा बड़ा किया और फिर बराबर करने के चक्कर में रोटी का कुछ हिस्सा अपने पास रखता गया.
अंतत: पूरी रोटी वो हजम कर गया. बिल्लियां देखती रह गईं. चीन को यह समझना होगा कि भारत कोई बिल्ली नहीं है कि चीन धोखा दे देगा. भारत इस समय दुनिया में शेर की भूमिका में है और चीन की चालाकी और बंदरघुड़की का जवाब दे चुका है. दरअसल पाकिस्तान और भारत के बीच दो ही मसलों पर तनाव है.
पहला है पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद और दूसरा है कश्मीर के उस हिस्से की भारत में वापसी जिस पर पाकिस्तान ने कब्जा करके रखा है. अन्य सारे मुद्दे गौण हैं. और पाकिस्तान में ये जो लाल टोपी के नाम से कुख्यात जैद हामिद और वहां पल रहे आतंकी गजवा-ए-हिंद की बात करते हैं वह तो बस मसखरापन है.
तो सवाल यह है कि चीन कोई रचनात्मक भूमिका कैसे निभा सकता है? यूनाइटेड नेशन में वह खुलेआम पाकिस्तानी आतंकवादियों की हिफाजत करता रहा है. हाफिज सईद और उसके बेटे तल्हा को बचाने के लिए तो चीन ने अपने अधिकार का उपयोग भी किया. कब्जे वाले कश्मीर पर तो चीन खुद ही गुनहगार है.
जिस इलाके को वह अक्साई चिन कहता है वह कश्मीर का हिस्सा है. भातर के साथ जंग में कुछ हिस्सा उसने हड़पा और कुछ हिस्सा उसे पाकिस्तान ने गिफ्ट कर दिया. इसी हिस्से को लेकर भारत और चीन के बीच तनाव चला आ रहा है. बिल्कुल सामान्य भाषा में कहें तो चीन की भूमिका लुटेरे की है और एक लुटेरा दो पक्षों में सुलह कराने की बात कैसे कर सकता है?
वैसे चीन की बात ही क्या करें, चालक बंदर वाली यही कहानी तो रूस और यूक्रेन जंग में भी दोहराए जाने की कोशिश हो रही थी. ट्रम्प चाहते थे कि युक्रेन का जो बहुमूल्य मिनरल वाला हिस्सा रूस के कब्जे में चला गया है, उसमें से मिनरल निकालने का अधिकार अमेरिका को मिल जाए.
रूस शुरुआती दौर में तैयार भी हो गया था लेकिन बात बनी नहीं. संभवत: यूक्रेन और रूस दोनों को बंदर वाली कहानी याद आ गई होगी. जहां तक भारत का सवाल है तो ये कहानी हमें भी याद रखनी चाहिए. बंदर किसी भी स्वरूप में दस्तक दे सकता है. बंदरघुड़की देने से बंदर कभी बाज नहीं आता.