पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर को मुक्ति कब मिलने वाली है?, पाकिस्तान के खिलाफ बगावत पर उतरे लोग
By विकास मिश्रा | Updated: October 7, 2025 05:18 IST2025-10-07T05:18:48+5:302025-10-07T05:18:48+5:30
शहबाज शरीफ और मुनीर के पसीने छूट गए और 8 सदस्यों वाला एक प्रतिनिधिमंडल उन्होंने तत्काल मुजफ्फराबाद भेजा ताकि अवामी एक्शन कमेटी से बातचीत की जा सके.

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अब हर ओर बस यही सवाल पूछा जा रहा है कि पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर को मुक्ति कब मिलने वाली है? हकीकत यही है कि वहां के लोग पाकिस्तान के खिलाफ बगावत कर चुके हैं. पाकिस्तानी हुक्मरान उन्हें गोलियों की बौछार के बीच कुछ प्रलोभन देकर चुप कराना चाह रहे हैं लेकिन लोग बौखलाए हुए हैं. हालात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 12 लोग मारे जा चुके हैं. पाकिस्तानी बलों की गोलियों से 50 से ज्यादा लोग घायल हैं. प्रतिक्रियास्वरूप 172 पुलिसकर्मी अस्पताल में भर्ती हैं. यह पहली बार नहीं है जब पीओके में विद्रोह की आग भड़की है.
आजादी के ठीक बाद पाकिस्तानी फौज ने कबायलियों के वेश में कश्मीर पर हमला कर दिया था. वहां के महाराजा हरि सिंह जब तक भारत में कश्मीर का विलय करते तब तक पाकिस्तानियों ने कश्मीर का बड़ा हिस्सा अपने कब्जे में कर लिया. हर भारतीय के मन में आज भी टीस उठती है कि भारत ने उसी वक्त कब्जे वाले हिस्से को वापस क्यों नहीं लिया.
भारत ने युद्ध में अपनी शक्ति दिखा दी थी और हमलावरों को रोक दिया था, फिर पाकिस्तान के कब्जे से कश्मीर का वो हिस्सा वापस क्यों नहीं लिया? ये बातें अब इतिहास का हिस्सा हैं, किसी को इसके लिए दोषी ठहराने का वक्त नहीं है. अब तो सवाल है कि आगे क्या? 1994 में भारतीय संसद ने सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव पारित किया था कि पाक के कब्जे वाला पूरा हिस्सा भारत का है.
पाकिस्तान को इसे खाली करना ही होगा. इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर विधानसभा में पीओके के लिए 24 सीटों का प्रावधान भी है. अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने भी कहा है कि पीओके भी भारत के घर का ही एक कमरा है जिसे हथिया लिया है, उसे वापस पाना है. वास्तविकता यही है कि पीओके में पाकिस्तान के खिलाफ लगातार विद्रोह की ज्वाला भड़कती रही है.
आमतौर पर पाकिस्तानी पुलिस और पाकिस्तानी फौज वहां के लोगों का मुंह बंदूक की नोक से बंद कर देती है लेकिन अब दमन इतना बढ़ चुका है कि लोगों के बर्दाश्त से बाहर हो रहा है. पाकिस्तानी दमन के खिलाफ पिछले साल भी भारी विद्रोह हुआ था. पीओके का कोई हिस्सा ऐसा नहीं बचा था जहां विद्रोह न हुआ हो और पाकिस्तान के खिलाफ खुलेआम प्रदर्शन न हुआ हो!
तब भी बंदूक की नोक पर ही लोगों को दबा दिया गया था लेकिन इस साल विद्रोह ऐसा था कि शहबाज शरीफ और मुनीर के पसीने छूट गए और 8 सदस्यों वाला एक प्रतिनिधिमंडल उन्होंने तत्काल मुजफ्फराबाद भेजा ताकि अवामी एक्शन कमेटी से बातचीत की जा सके.
हो सकता है अंकल सैम ने समझाया हो कि पीओके के इस विद्रोह को बंदूक से नहीं बल्कि प्रलोभनों से संभालो अन्यथा हालात 1971 जैसे न हो जाएं! अवामी एक्शन कमेटी ने 39 मांगें रखी थीं जिनमें से 20 से ज्यादा मांगें पाकिस्तानी सरकार ने मान लीं और बाकी मांगों पर विचार करने का लॉलीपॉप थमा दिया.
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पीओके के सामने पाकिस्तानी सरकार इस कदर पहली बार झुकी है. उसे अंदाजा हो चुका है कि पीओके उसके साथ बिल्कुल ही नहीं रहने वाला है. बहरहाल, कहने भर को अवामी एक्शन कमेटी ने फिलहाल चुप्पी साधी है लेकिन वास्तविकता यह है कि पूरा पीओके अंदर ही अंदर जल रहा है.
पिछले वर्षों में भारत के समर्थन वाले नारे, बैनर-पोस्टर सार्वजनिक तौर पर वहां देखे जाते रहे हैं. वहां का बड़ा तबका भारत के साथ आना चाहता है क्योंकि कश्मीर के इस हिस्से में जीवन सुगम है. पाकिस्तान ने भले ही जम्मू-कश्मीर को आतंकवाद की आग में झुलसाने की कोशिश की हो लेकिन पूरे जम्मू-कश्मीर में जिंदगी सुगम है.
आज पीओके में अवाम को आटे तक के लिए तरसना पड़ रहा है. ऊंची कीमत पर भी आटा मिलना मुश्किल हो रहा है. पीओके के लोग यह महसूस कर रहे हैं कि पाकिस्तानी सरकार उनके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार करती है. और यह बात सही भी है. पीओके के संसाधनों का तो पाकिस्तान भरपूर दोहन कर रहा है लेकिन उसका थोड़ा हिस्सा भी पीओके के लोगों पर खर्च नहीं किया जा रहा है.
पीओके स्थित नीलम-झेलम जलविद्युत परियोजना से पाकिस्तान 2600 मेगावाट बिजली बनाता है लेकिन पीओके का मुजफ्फराबाद जैसा शहर भी अंधेरे में डूबा रहता है. पीओके में न रोजगार की सुविधा है, न स्वास्थ्य देखभाल की कोई व्यवस्था है. अस्पतालों के हाल बुरे हैं. जीवन की बुनियादी जरूरतें भी पूरी नहीं हो पा रही हैं.
महंगाई और कालाबाजारी चरम पर है. ऐसी स्थिति में यदि लोग किसी भी बात को लेकर प्रदर्शन करते हैं या विरोध के दूसरे रास्ते अपनाते हैं तो पाकिस्तानी फौज गोलियों की भाषा में बात करती है. यही कारण है कि इस बार जब पाकिस्तानी फौज और पुलिस ने लोगों पर गोलियां चलाईं तो गुस्साई भीड़ ने फौजियों और पुलिसवालों को भी नहीं बख्शा!
पहली बार इतनी बड़ी संख्या में पाकिस्तानी फौजी और पुलिस वाले घायल हुए हैं. तो अब सवाल वही है कि आगे क्या होगा? और पाकिस्तानी चंगुल से पीओके को मुक्त कराने के लिए भारत क्या करेगा? भारत में बातें तो बहुत बड़ी-बड़ी की जा रही हैं, लेकिन जो उम्मीद पीओके के लोग कर रहे हैं और जो उम्मीद भारत का हर नागरिक कर रहा है,
उस कसौटी पर क्या भारत सरकार खरी उतर रही है? ऑपरेशन सिंदूर जब प्रारंभ हुआ था तब हर भारतीय उम्मीद कर रहा था कि इस बार तो पीओके हम ले ही लेंगे. मगर उम्मीद फिर अधूरी रह गई! पीओके में जन विद्रोह के बीच हर कोई जानना चाह रहा है कि पीओके की मुक्ति अब कितनी दूर है?