डॉ. विजय दर्डा का ब्लॉग: मजहबी राज का दिवास्वप्न!

By विजय दर्डा | Updated: October 16, 2023 06:58 IST2023-10-16T06:50:30+5:302023-10-16T06:58:27+5:30

इस वक्त जो इजराइल कर रहा है, उसकी आलोचना का किसी को कोई अधिकार नहीं रह जाता है। मौजूदा मसला यहूदियों और मुसलमानों का है ही नहीं। यह हमास नाम के खूंखार आतंकी संगठन का एक बहादुर राष्ट्र इजराइल के नागरिकों पर हमले का मामला है।

Dr. Vijay Darda's blog: Daydream of religious rule! | डॉ. विजय दर्डा का ब्लॉग: मजहबी राज का दिवास्वप्न!

फाइल फोटो

Highlightsइस वक्त जो इजराइल कर रहा है, उसकी आलोचना का किसी को कोई अधिकार नहीं रह जाता हैमौजूदा मसला न तो यहूदियों का है और न ही मुसलमानों का है यह हमास नाम के खूंखार आतंकी संगठन का इजराइल के नागरिकों पर हमले का मामला है

किसी देश पर कोई आतंकी संगठन हजारों रॉकेट दागे, उस देश की सरहद में घुसकर संगीत समारोह में नरसंहार करे, बच्चों का सिर धड़ से अलग कर दे और महिलाओं को नंगा करके घुमाए, फिर उन्हें बंधक बना ले तो वह देश क्या करेगा? वही करेगा जो इजराइल करने को मजबूर हुआ है।

इसलिए इस वक्त जो इजराइल कर रहा है, उसकी आलोचना का किसी को कोई अधिकार नहीं रह जाता है। मैं इतिहास की बात नहीं कर रहा हूं लेकिन मौजूदा मसला यहूदियों और मुसलमानों का है ही नहीं। यह हमास नाम के खूंखार आतंकी संगठन का एक बहादुर राष्ट्र इजराइल के नागरिकों पर हमले का मामला है। इसे इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए।

यदि आप विश्लेषण करेंगे तो बड़ी आसानी से आपकी समझ में आ जाएगा कि हमास फिलिस्तीन का भी दुश्मन साबित हुआ है। इजराइल पर उसके हमले ने फिलिस्तीन की वाजिब मांगों को कमजोर किया है। क्या आपको पता है कि हमास जिस फिलिस्तीन की बात करता है उसी फिलिस्तीन के गाजा पट्टी पर उसने कब्जा कर रखा है! गाजा पट्टी को छोड़ कर बाकी पूरे देश पर फिलिस्तीन अथॉरिटी (पीए) के राष्ट्रपति महमूद अब्बास की सरकार शासन कर रही है लेकिन गाजा पट्टी पर हमास शासन करता है।

फिलिस्तीन लेजिस्लेटिव कौंसिल के 132 सदस्य वेस्ट बैंक, गाजा पट्टी और येरुशलम की फिलिस्तीनी आबादी द्वारा चुने जाते हैं। पीएलओ यानी फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन और इजराइल के बीच ओस्लो में एक समझौता हुआ था। उसके तहत अंतरिम प्रशासनिक संस्था के रूप में 1994 में पीए की स्थापना हुई थी।

भारत ने हमेशा ही फिलिस्तीन का साथ दिया है। यासिर अराफात के नेतृत्व वाले पीएलओ को मान्यता देने वाला भारत पहला गैर अरब देश था। साल 1988 में फिलिस्तीन को राष्ट्र के रूप में भारत ने मान्यता दी। वहां के राष्ट्रपति महमूद अब्बास 2017 में भारत आए भी थे।

भारत ने यूनेस्को में फिलिस्तीन को पूर्ण सदस्य बनाने के पक्ष में मतदान किया था। साल 2015 में फिलिस्तीनी ध्वज को संयुक्त राष्ट्र परिसर में स्थापित करने का भी भारत ने समर्थन किया था। न केवल भारत बल्कि दुनिया के बहुत से देश फिलिस्तीन के प्रति हमदर्दी रखते रहे हैं।

भारत का अभी भी रुख यही है कि फिलिस्तीन और इजराइल सहअस्तित्व में शांति के साथ रहें। एक भारतीय के रूप में मेरी निजी मान्यता भी यही है मगर हमास ने तो फिलिस्तीन को ही नुकसान पहुंचाया है, जो फिलिस्तीन के समर्थक हैं वे भी आज हमास की करतूतों के कारण इजराइल के पक्ष में खड़े हैं।

हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा भी है कि मुश्किल की इस घड़ी में भारत इजराइल के साथ खड़ा है। यहां मैं याद दिला दूं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2018 में फिलिस्तीनी इलाके में गए थे और वहां के राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने मोदीजी को देश के सर्वोच्च सम्मान ‘ग्रैंड कॉलर ऑफ द स्टेट ऑफ पेलेस्टाइन’ से नवाजा था। कहने का आशय है कि फिलिस्तीन के साथ हमारा सहयोग रहा है तो  इजराइल से दोस्ती भी रही है।

इजराइल पर हमास के हमले के फुटेज देखकर मैं अंदर तक हिल गया! क्या कोई इतना क्रूर हो सकता है कि छोटे-छोटे बच्चों का सिर धड़ से अलग कर दे? क्या कोई इतना घृणित हो सकता है कि महिलाओं को नंगा करके घुमाए और फिर अगवा करके ले जाए! हमास की क्रूरता के ऐसे-ऐसे फुटेज सामने आ रहे हैं कि उन्हें देखते हुए किसी की भी रूह कांप जाए! मैं हैरान हूं कि मोसाद जैसी दुनिया की श्रेष्ठ खुफिया संस्था कैसे फेल हो गई। इजराइल का डिफेंस सिस्टम कैसे फेल हो गया कि दरिंदे इतनी हैवानियत दिखाने में कामयाब हो गए!

मैं इजराइल भी गया हूं और मैंने फिलिस्तीनी इलाके का भी जायजा लिया है। मैं येरुशलम के तीर्थ स्थलों में भी गया हूं। मैं दोनों ही मुल्कों का मुरीद रहा हूं। बेहद उम्दा लोग हैं। आखिर शांति के साथ कौन नहीं रहना चाहता? दोनों मुल्कों के लोग भी यही चाहते हैं।

मैं मानता हूं कि विवाद को शांति के साथ हल किया जाना चाहिए। अभी दुनिया इस ओर बढ़ भी रही थी। संयुक्त अरब अमीरात के साथ इजराइल के रिश्ते अच्छे हुए हैं। इजराइल और सऊदी अरब के बीच भी समझ की अच्छी शुरुआत हुई है। ऐसी उम्मीद बंधने लगी थी कि मध्य पूर्व के देशों में शांति और सद्भाव का माहौल बनेगा।

सभी राष्ट्र तरक्की की दिशा में आगे बढ़ेंगे लेकिन इसी बीच हमास ने ये हमला कर दिया। उसका मुख्य उद्देश्य किसी भी शांति वार्ता को रोकना है। हमास को यह भी लग रहा था कि अंदरूनी राजनीति के कारण इजराइल इस वक्त शायद कमजोर स्थिति में है।

मैं इस चर्चा में नहीं जाना चाहता कि हमास को शक्ति देने और मूल रूप से हमले के इस षड्यंत्र के पीछे ईरान है या कोई और ताकत लेकिन यह जरूर कहना चाहूंगा कि जो भी है, उसने फिलिस्तीनियों के नुकसान का बड़ा रास्ता खोल दिया है।

इजराइल के तेवर को दुनिया अच्छी तरह से जानती है। वहां सरकार किसी की भी हो, यह स्थापित सोच है कि दुश्मन एक मारता है तो हम दस मारेंगे। जरा सोचिए कि इस बार तो इजराइल के इतिहास का सबसे बड़ा आतंकी हमला है तो उसे बर्दाश्त करने का सवाल ही पैदा नहीं होता है।

न केवल इजराइल में रहने वाले बल्कि दूसरे देशों में रह रहे इजराइली भी अपना काम-धंधा छोड़ कर हमास से लड़ने के लिए अपने देश पहुंच रहे हैं। वहां की राष्ट्रभक्ति का एक खास उदाहरण मैं आपके सामने रखता हूं। मेरे एक भारतीय मित्र इजराइल में रहते हैं। वहां हर युवक के लिए 32 महीने और हर युवती के लिए 24 महीने की सैन्य सेवा अनिवार्य है। उसके बाद उन्हें रिजर्व फोर्स में दर्ज किया जाता है।

मेरे मित्र अपनी बिटिया को सेना में नहीं भेजना चाहते थे इसलिए उन्होंने उसे पढ़ाई के लिए विदेश भेजने का निर्णय लिया लेकिन उनकी बिटिया ने साफ कह दिया कि वह सेना में सेवा देने के बाद ही कहीं जाएगी। तो ये है वहां का जज्बा!

ऐसे जज्बे वाले देश इजराइल ने हमास को नष्ट करने की कसम खा ली है तो हमास का बर्बाद होना तय है लेकिन जंग में निर्दोष फिलिस्तीनी भी तो मर रहे हैं। गाजा में रहने वाले लाखों लोग कहां जाएंगे? अभी तो केवल हवाई हमले हुए हैं। फास्फोरस बम की भयावहता दिखी है। इजराइली सेना जब गाजा पट्टी की जमीन पर घुसेगी तो हालात क्या होंगे? फिलिस्तीन के लिए यह अमानवीय तबाही का दौर है।

इसके लिए वह मानसिकता जिम्मेदार है जो हमास, हिजबुल्ला, आईएस, अल-कायदा, बोको हराम या तालिबान जैसे खूंखार हत्यारों को जन्म देती है, जो मजहब के नाम पर पूरी दुनिया फतह करने का दिवास्वप्न देखती है। हमास प्रमुख ने कहा है कि पूरी दुनिया उसके राज के नीचे होगी।

उसे  कौन समझाए कि जब अमेरिका और चीन दुनिया पर फतह की बात नहीं सोच सकते तो तुम्हारी क्या औकात है? मजहब के नाम पर इन आतंकियों ने  अफगानिस्तान, पाकिस्तान, इराक, ईरान, मिस्त्र, सोमालिया ओैर न जाने कितने देशों को बर्बाद कर दिया। ऐसे आतंकी संगठनों को जड़ से खत्म करना होगा! उनकी नकेल कसनी होगी जो इन आतंकी संगठनों की मदद कर रहे हैं। पैसे दे रहे हैं, हथियार दे रहे हैं। आतंक के खिलाफ पूरी दुनिया को खड़ा होना होगा।

Web Title: Dr. Vijay Darda's blog: Daydream of religious rule!

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