शोभना जैन का ब्लॉग: शेख हसीना के प्रत्यर्पण की मांग होगी कठिन चुनौती

By शोभना जैन | Updated: August 17, 2024 10:12 IST2024-08-17T10:11:44+5:302024-08-17T10:12:44+5:30

बांग्लादेश में गत पांच अगस्त को पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार के तख्तापलट के बाद हसीना के धुर विरोधी रहे बांग्लादेश के नोबल पुरस्कार प्राप्त 84 वर्षीय अर्थशास्त्री डॉ. मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में नई अंतरिम सरकार का गठन तो हो गया है, लेकिन देश में नई सरकार को शुरुआत से ही कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.

Demand for Sheikh Hasina's extradition will be a tough challenge | शोभना जैन का ब्लॉग: शेख हसीना के प्रत्यर्पण की मांग होगी कठिन चुनौती

शोभना जैन का ब्लॉग: शेख हसीना के प्रत्यर्पण की मांग होगी कठिन चुनौती

Highlightsइस सरकार ने ऐसे समय में कार्यभार संभाला है, जब देश में कानून-व्यवस्था की स्थिति चरमरा चुकी है. अल्पसंख्यकों के ठिकानों, मंदिरों पर हमले जारी हैं, भारत-बांग्लादेश सीमा पर भारी तनाव है, वहां बसे हिंदू भारत में आने की कोशिश कर रहे हैं.हसीना इस्तीफे के बाद पांच अगस्त से भारत में अस्थाई रूप से रह रही हैं, अलबत्ता उन्होंने भारत से राजनैतिक शरण नहीं मांगी है. 

बांग्लादेश में गत पांच अगस्त को पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार के तख्तापलट के बाद हसीना के धुर विरोधी रहे बांग्लादेश के नोबल पुरस्कार प्राप्त 84 वर्षीय अर्थशास्त्री डॉ. मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में नई अंतरिम सरकार का गठन तो हो गया है, लेकिन देश में नई सरकार को शुरुआत से ही कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. इस सरकार ने ऐसे समय में कार्यभार संभाला है, जब देश में कानून-व्यवस्था की स्थिति चरमरा चुकी है. 

अल्पसंख्यकों के ठिकानों, मंदिरों पर हमले जारी हैं, भारत-बांग्लादेश सीमा पर भारी तनाव है, वहां बसे हिंदू भारत में आने की कोशिश कर रहे हैं. उधर हसीना इस्तीफे के बाद पांच अगस्त से भारत में अस्थाई रूप से रह रही हैं, अलबत्ता उन्होंने भारत से राजनैतिक शरण नहीं मांगी है. 

उनके सहयोगियों की धरपकड़ जारी है. लेकिन इस अराजकता के बीच अब एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में खबर आई है कि बांग्लादेश की नई अंतरिम सरकार हत्या के आरोपों को लेकर हसीना के प्रत्यर्पण की मांग कर सकती है. अगर बांग्लादेश सरकार भारत से इस आशय की मांग करती है तो भारत की प्रगाढ़ मित्र रही हसीना को लेकर भारत के लिए निश्चय ही दुविधा की स्थिति होगी. ऐसी स्थिति आने पर भारत क्या फैसला करेगा?

हसीना के प्रत्यर्पण को लेकर हालांकि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार में ही फिलहाल अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई है और उनकी तरफ से आधिकारिक तौर पर ऐसी कोई मांग फिलहाल आई नहीं है लेकिन दो देशों के बीच भावनात्मक संबंधों पर डिप्लोमेसी, राष्ट्रीय हित सदैव हावी रहते हैं. हालांकि इस सब के बावजूद ऐसे मामलों में डिप्लोमेसी के साथ मानवीय पहलू भी जुड़ा रहता है. 

संभवत: इसी के मद्देनजर भारत को हसीना के साथ अपने प्रगाढ़ संबंधों के साथ ही अपने राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखते हुए बांग्लादेश की नई सरकार के साथ अपने संबंधों को सर्वोपरि रखना होगा. इस सबके मद्देनजर यह भारत के लिए एक कठिन फैसला होगा. दोनों देशों के बीच 2013 में प्रत्यर्पण संधि तो हो चुकी है लेकिन इसमें राजनैतिक बंदियों को लेने का कोई प्रावधान नहीं है. 

बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के शीर्ष नेता तथा पूर्व कैबिनेट मंत्री अब्दुल एम. खान का कहना है कि इसी प्रावधान के चलते संभवत: प्रत्यर्पण हसीना पर लागू नहीं हो पाएगा. गौरतलब है कि वर्ष 1975 में बांग्लादेश के जनक और शेख हसीना के पिता बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान और उनके दस वर्षीय बेटे सहित परिवार के सात सदस्यों की हत्या कर दी गई थी. 

उस वक्त जर्मनी में रह रही हसीना ने जब भारत से राजनैतिक शरण मांगी तो तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी हसीना के भारत आने पर फौरन उनसे मिलने गईं और उन्हें भारत में सुरक्षा मुहैया कराई और रहने को आवास भी दिया. हसीना के भारत की मोदी सरकार के साथ भी अच्छे रिश्ते रहे.

हाल ही में अपनी चीन यात्रा से वे बीच में ही लौट आई थीं और महत्वाकांक्षी तीस्ता नदी जल परियोजना भारत को दिए जाने की घोषणा की थी. निश्चय ही भारत और बांग्लादेश के प्रगाढ़ संबंधों के लिए आपसी समझबूझ का यह एक अच्छा फैसला रहा.

Web Title: Demand for Sheikh Hasina's extradition will be a tough challenge

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