अमेरिका का एक बड़ा संचार उपग्रह अपनी कक्षा में टूट गया. इस कारण यूरोप, मध्य-अफ्रीका, मध्यपूर्व एशिया और ऑस्ट्रेलिया के संचार उपयोगकर्ता प्रभावित हुए हैं. वहीं हमारे ग्रह के निकट अंतरिक्ष कचरे में भारी वृद्धि हुई है. अंतरिक्ष में पहले से ही 4300 टन कचरा वायुमंडल में तैर रहा है, जिसे नष्ट करना दुनिया की विज्ञान संस्थाओं के लिए चुनौती बना हुआ है.
इंटेलसैट 33-ई नामक उपग्रह भूमध्य रेखा के चारों ओर भूस्थिर कक्षा में हिंद महासागर से लगभग 35,000 किमी ऊपर एक बिंदु से ब्राॅडबैंड संचार सुविधा प्रदान कर रहा था. बिजली गुल हो जाने के कारण यह उपग्रह 22 टुकड़ों में टूटकर नष्ट हो गया. इस घटना के कुछ घंटे बाद ‘यूएस-स्पेस फोर्सेस स्पेस’ ने इसकी पुष्टि भी कर दी. इस तरह से उपग्रह टूटने की यह दुनिया की पहली घटना है. अतीत में उपग्रह समय अवधि पूरी करने व परस्पर टकराव के कारण नष्ट होते रहे हैं. सौर गतिविधियों में बदलाव होने पर भी उपग्रह नष्ट हुए है.
इस उपग्रह के टूटने के बाद अंतरिक्ष में कचरे को लेकर नई बहस छिड़ गई है. अंतरिक्ष में कचरे की बड़ी मात्रा राॅकेट के टुकड़ों के रूप में है. अंतरिक्ष कचरे का पता लगाना और पहचान करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है. अधिक ऊंचाई पर इंटेलसैट 33-ई की कक्षा लगभग 35,000 किमी ऊपर है, अतएव वैज्ञानिक केवल एक निश्चित आकार के रूप में ऊपर की वस्तुओं को देख पाते हैं.
क्षतिग्रस्त हुए इस उपग्रह के बारे में चिंता की बात यह है कि इसके टूटने से कचरे के इतने छोटे-छोटे टुकड़े बने होंगे कि उन्हें वर्तमान में उपलब्ध दूरदर्शी यंत्रों से ठीक से देख पाना मुश्किल है. अंतरिक्ष में उपग्रह और राॅकेट इतनी बड़ी संख्या में दुनिया के आर्थिक रूप से सक्षम देशों द्वारा भेजे जा रहे हैं, कि अब इनके अनियंत्रित होकर टूटने की घटनाएं निरंतर सामने आ रही हैं.
यह भी तय नहीं हो पा रहा है कि इनके नुकसान का प्रभाव क्षेत्र कितना व्यापक है. अतएव जटिल अंतरिक्ष मलबे के भविष्य में होने वाले प्रभाव को समझने के लिए आकाश पर निरंतर निगरानी की जरूरत है.
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के मुताबिक मलबे के पांच लाख से भी ज्यादा टुकड़े या स्पेस-जंक पृथ्वी की कक्षा में घूम रहे हैं. यह मलबा इतना शक्तिशाली है कि इसका एक छोटा सा टुकड़ा भी किसी उपग्रह या अंतरिक्ष यान को क्षतिग्रस्त करने के लिए सक्षम है।