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ये तो धोखेबाजों का सरताज निकला?, चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच बना गठजोड़ सुरक्षा के लिए खतरा!

By विकास मिश्रा | Updated: July 15, 2025 05:20 IST

विश्लेषकों के मन में यह सवाल पैदा होना स्वाभाविक था कि हकीकत क्या है? ऑपरेशन सिंदूर के दौरान क्या चीन ने कोई भूमिका निभाई थी या फिर चीन की पुरानी चालबाजियों को देखते हुए केवल कयास लगाए जा रहे हैं?

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ठळक मुद्देसीडीएस चौहान का कहना था कि इस मामले में चीन की भूमिका स्पष्ट नहीं है.चीन किसी भी सूरत में भारत की नकेल कसने के हर संभव रास्ते तलाशता रहता है.पाकिस्तान और चीन के बीच तो काफी समय से गठजोड़ पुख्ता हो ही रहा था, बांग्लादेश भी जुड़ गया है.

भारत के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल अनिल चौहान ने पिछले सप्ताह जब कहा कि चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच बना गठजोड़ हमारे देश की सुरक्षा के लिए खतरा है, तो वे कोई नई बात नहीं कह रहे थे. इस हकीकत से पूरा भारत वाकिफ है. नई बात उससे पहले उप सेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल राहुल आर. सिंह ने कही थी. उन्होंने खुलासा किया कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान को चीन से लाइव डाटा और सैन्य सहायता मिली. अमेरिकी खुफिया रिपोर्ट्स में इस बात की पुष्टि भी की गई है. हालांकि सीडीएस चौहान का कहना था कि इस मामले में चीन की भूमिका स्पष्ट नहीं है.

विश्लेषकों के मन में यह सवाल पैदा होना स्वाभाविक था कि हकीकत क्या है? ऑपरेशन सिंदूर के दौरान क्या चीन ने कोई भूमिका निभाई थी या फिर चीन की पुरानी चालबाजियों को देखते हुए केवल कयास लगाए जा रहे हैं? हकीकत जो भी हो लेकिन एक बात तो तय है कि चीन किसी भी सूरत में भारत की नकेल कसने के हर संभव रास्ते तलाशता रहता है.

मगर हाल के वर्षों में जो परिस्थितियां पैदा हुई हैं और जिस तरह से भारत अकेला पड़ता हुआ नजर आ रहा है, वह गंभीर खतरे की ओर इशारा करता है और सीडीएस जनरल चौहान इसी गंभीर खतरे का हवाला दे रहे थे. पाकिस्तान और चीन के बीच तो काफी समय से गठजोड़ पुख्ता हो ही रहा था, इसमें तीसरी कड़ी बांग्लादेश भी जुड़ गया है.

बांग्लादेश को अपने पाले में करने के लिए चीन लंबे समय से कोशिश करता रहा है लेकिन शेख हसीना जब तक वहां रहीं, चीन की ज्यादा दाल नहीं गली. यदि परिस्थितियों का विश्लेषण करें तो एक बात साफ समझ में आ जाती है कि बांग्लादेश में सत्ता पलट के पीछे पाकिस्तान तो था ही, चीन की भी बड़ी भूमिका थी.

बांग्लादेश के सत्ता प्रमुख मो. यूनुस जिस तरह से पाकिस्तान और चीन के गले में झूल रहे हैं और जिस तरह का भारत विरोधी रवैया उन्होंने अपना रखा है, उससे भारत की चिंता स्वाभाविक है. इस बात में भी कोई संदेह नहीं रह गया है कि चीन ने नेपाल को भी पूरी तरह अपनी गिरफ्त में ले रखा है. मालदीव भी चीन के प्रभाव में है.

इधर श्रीलंका ने भी चीन को अपना चहेता साझीदार बना रखा है. चीन श्रीलंका में लगातार निवेश कर रहा है. नतीजा यह है कि हिंद महासागर में चीन को अपना प्रभाव बढ़ाने का मौका मिलता जा रहा है. भारत के पड़ोसियों का यह गठजोड़ भारत के लिए वास्तव में गिरोहबंदी साबित हो रही है.

भारत के खिलाफ यह स्थिति क्यों बनी, इसके कारणों की तलाश के साथ यह भी जरूरी है कि अब हालात कैसे सुधारे जाएं?  खासकर जिस तरह से ऑपरेशन सिंदूर के दौरान चीन ने पाकिस्तान की मदद की है वह भविष्य की गंभीर परिस्थितियों को भी दर्शाता है. पाकिस्तान की बात तो समझ में आती है कि वह भारत का दुश्मन है और हमेशा चीन के साथ ही रहा है लेकिन दूसरे पड़ोसियों का इतिहास ऐसा नहीं है.

भारत के साथ अमूमन उनके अच्छे रिश्ते रहे हैं. इसलिए यह सवाल महत्वपूर्ण है कि आखिर चूक कहां हुई? शीत युद्ध के दौरान हम घोषित रूप से किसी के साथ नहीं थे लेकिन सोवियत संघ के साथ हमारे बहुत ही मधुर रिश्ते हुआ करते थे. सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस से वही रिश्ते बने रहे. पाकिस्तान के साथ 1971 की जंग में रूस ने हमारी मदद भी की थी.

उसके साथ हमारी रक्षा साझेदारी है और मजबूत आर्थिक रिश्ते भी हैं लेकिन यह तो स्वीकार करना ही पड़ेगा कि अमेरिका के साथ रिश्ते बढ़ाने की भारतीय चाहत ने कुछ बदलाव भी दिखाए हैं. 1990 में भारत के रक्षा आयात में रूस की हिस्सेदारी 96 प्रतिशत से ज्यादा थी जबकि 2020 में घटकर 75 प्रतिशत पर आ गई. अब यह 50 प्रतिशत से भी नीचे चला गया है.

हां, संतोष के लिए यह कह सकते हैं कि रूस अब भी भारत का सबसे बड़ा रक्षा सामग्री विक्रेता बना हुआ है. मगर रूस इस बात से कहीं न कहीं असहज तो हो ही रहा होगा कि भारत अब फ्रांस, अमेरिका, इजराइल, यूनाइटेड किंगडम से भी हथियार आयात कर रहा है. हालांकि रूस ने दोस्ती बनाए रखी है और भारत के लिए यह सुकून की बात है.

मगर यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या अमेरिका से जो हमें उम्मीदें थीं, अमेरिका उन पर खरा नहीं उतरा? या फिर यह जो धारणा बनी है कि अमेरिका भारत के साथ धोखेबाजी कर रहा है, सच है? लगता तो ऐसा ही है! एक कहावत भी है कि दुनिया के दूसरे देशों की सोच जहां खत्म होती है, अमेरिका की सोच वहां से शुरू होती है.

आज यह बात सोचने में अतिशयोक्ति लग सकती है कि भविष्य में भारत एक चुनौती की तरह उभर सकता है लेकिन इस बात से कौन इनकार कर सकता है कि अमेरिका दूर की सोचता है. क्या कभी किसी ने सोचा था कि चीन उसके लिए चुनौती बन जाएगा? अमेरिका के लिए चीन आज सबसे बड़ी चुनौती है.

चीन से निपटने के लिए ही अमेरिका ने भारत की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया लेकिन उसे रणनीतिक रूप से पाकिस्तान की भी जरूरत है. इसीलिए ट्रम्प ने भारत को गच्चा देते हुए पाकिस्तान को गोद में बिठा लिया. इस वक्त अमेरिका वो सारी हरकतें कर रहा है जिससे भारत उसके सामने झुक जाए.

उसकी शर्तों और चाहत के अनुरूप चीन से लड़े और झगड़े. अमेरिका यह भी चाहता है कि भारत और रूस की दोस्ती में दरार आ जाए ताकि भारत पूरी तरह अमेरिका की गोद में जाकर बैठ जाए. मगर ट्रम्प को ध्यान रखना चाहिए कि यह नया भारत है. हम अपना बुरा-भला बहुत अच्छी तरह से समझते हैं.

आप हमें जितना दबोचने की कोशिश करेंगे, हम उतने ही मजबूत होकर उभरेंगे. धोखेबाजी ज्यादा दिनों तक नहीं चलती मि. ट्रम्प! रूस से हमारा दोस्ताना इसीलिए बना हुआ है क्योंकि उसने कभी धोखेबाजी नहीं की. हम दोस्ती निभाना जानते हैं तो धोखेबाजों को उनकी औकात दिखाना भी जानते हैं!

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