सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण और भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति के अहम साझीदार ब्रुनेई देश की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस सप्ताह की संक्षिप्त यात्रा कई मायनों में खासी चर्चा में रही। एशियाई देश ब्रुनेई की यात्रा करने वाले मोदी पहले भारतीय प्रधानमंत्री बने। न केवल यह यात्रा दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों के लिए अहम रही बल्कि ब्रुनेई की सामरिक स्थिति ने यात्रा को और अहम बना दिया।
ब्रुनेई का चीन कनेक्ट एक अहम पहलू है। पिछले कुछ वर्षों से चीन ने ब्रुनेई के साथ नजदीकियां बढ़ानी शुरू कीं, उसके अनेक नेताओं ने वहां के चक्कर लगाने शुरू किए। खास तौर पर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की स्थिति देश में मजबूत होते जाने पर यह सब और तेज हो गया।
इसी संदर्भ में पीएम मोदी का ब्रुनेई में दिया गया भाषण गौर करने लायक है, जिसमें उन्होंने कहा कि भारत विकास का समर्थक है, न कि विस्तारवाद का। पीएम मोदी की इस टिप्पणी को दक्षिण चीन महासागर और एशिया प्रशांत क्षेत्र में चीन की निरंतर बढ़ती आक्रामक गतिविधियों की ओर इशारा समझा जा सकता है।
प्रधानमंत्री मोदी ने ब्रुनेई के सुल्तान हसन अल बोल्किया के साथ शीर्ष स्तरीय वार्ता में कहा कि इस क्षेत्र में नौवहन और क्षेत्र के ऊपर से गुजरने वाले विमानों को निर्बाध रूप से वहां से गुजरने की आजादी होनी चाहिए। दोनों नेताओं के बीच मुलाकात ऐसे वक्त हुई है जबकि दक्षिण चीन महासागर क्षेत्र में चीन और फिलीपींस कोस्ट गार्ड के जहाजों के बीच वहां एक द्वीप को लेकर टकराव जारी है।
अहम बात यह है कि दोनों देशों द्वारा रक्षा क्षेत्र सहित समुद्री सुरक्षा के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने पर जोर देने की सहमति से द्विपक्षीय सहयोग को नई गति मिल सकती है। सामरिक पहलू से अलग हट कर अगर दोनों देशों के आर्थिक रिश्तों की बात करें तो चीन फिलहाल ब्रुनेई का सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार है। चीन और ब्रुनेई के बीच 2.6 अरब डॉलर का व्यापार होता है जबकि चीन व भारत के बीच लगभग 28 करोड़ 62 लाख डॉलर का व्यापार होता है।
बहरहाल, चीन जिस तरह से एशिया प्रशांत और दक्षिण पूर्व क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ा रहा है और आर्थिक निवेश की आड़ में ऋण जाल फैला रहा है, साथ ही अपनी सामरिक ताकत का इस्तेमाल एशिया प्रशांत क्षेत्र और दक्षिण चीन महासागर क्षेत्र में अपनी आक्रामक गतिविधियों के लिए कर रहा है।
ऐसे मे उम्मीद की जा सकती है कि इस यात्रा और ऐसे अन्य कदमों से भारत और ब्रुनेई, दोनों देशों के बीच आपसी समझबूझ और सभी क्षेत्रों में सहयोग बढ़ेगा। क्षेत्र में शांति और स्थिरता बढ़ाने में सहायता मिलेगी, साथ ही इस क्षेत्र में भारत अपने सकारात्मक प्रभाव से चीन की आक्रामक गतिविधियों पर कुछ अंकुश लगा सकता है।