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1999 Kargil War: कारगिल पर सच कबूलने में पाकिस्तान को लग गए 25 साल

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: September 9, 2024 05:38 IST

1999 Kargil War: पाकिस्तानी सेना कारगिल युद्ध में अपनी सीधी भागीदारी को स्वीकार करने से बचती रही है.

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ठळक मुद्दे1999 Kargil War: कारगिल युद्ध में मारे गए जवान भी शामिल थे.1999 Kargil War: कारगिल युद्ध को लेकर अपनी गलतियों को स्वीकार किया था. 1999 Kargil War: पूरे सैन्य सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया था.

1999 Kargil War: भारत के अनेक मंचों से स्पष्ट बोलने के बाद पाकिस्तानी सेना को कारगिल पर अपनी कायरता स्वीकार करने में पच्चीस साल लग गए. उसने आतंकवादियों को ढाल बनाकर भारत के खिलाफ युद्ध किया था, जिसमें उसे मुंह की खाकर भागने पर मजबूर होना पड़ा था. अलग-अलग अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर जो उसकी थू-थू हुई थी, वह अलग थी. पाकिस्तान ने बीते शुक्रवार को बड़ी बेशर्मी के साथ भारत के साथ युद्धों में मारे गए पाकिस्तानी सैनिकों को सम्मानित किया. इसमें उसके कारगिल युद्ध में मारे गए जवान भी शामिल थे.

मजेदार बात यह है कि जब भारत ने युद्ध में मारे गए सैनिकों के शव पाकिस्तान को सौंपने का प्रस्ताव रखा तो उसने उन्हें अपना न मानते हुए ठुकरा दिया था. इसके बाद भारत ने उन सैनिकों का पूरे सैन्य सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया था. दरअसल पाकिस्तानी सेना कारगिल युद्ध में अपनी सीधी भागीदारी को स्वीकार करने से बचती रही है.

हालांकि सेवानिवृत्त होने के बाद तत्कालीन पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ ने जरूर कारगिल युद्ध को लेकर अपनी गलतियों को स्वीकार किया था. अब पाकिस्तान के रक्षा दिवस के अवसर पर सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर ने अपने सैनिकों की बहादुरी का गुणगान कर सन् 1948, 1965, 1971 हो या 1999 के कारगिल युद्ध में हजारों सैनिकों के देश और इस्लाम के लिए अपने प्राणों की आहुति देने की प्रशंसा की. पिछले 25 साल में यह पहला मौका था जब पाकिस्तानी सेना ने सार्वजनिक रूप से कारगिल युद्ध में अपना कबूलनामा दिया.

इससे पहले पाकिस्तानी सेना के किसी भी जनरल ने पद पर रहते हुए कारगिल युद्ध पर स्पष्टीकरण नहीं दिया. यद्यपि यह बयान पाकिस्तान के लंबे समय से दिए जा रहे आधिकारिक बयानों से भी मेल नहीं खाता है, जिनमें उसने कारगिल युद्ध में कश्मीरी उग्रवादी शामिल होने का दावा किया था. मगर सच्चाई यह थी कि पाकिस्तानी सेना ने ठंड के बाद कारगिल पर धोखे से भारत की चौकियों पर कब्जा कर लिया था, जिसके बाद भारतीय सेना ने ऑपरेशन चला कर पाकिस्तान को अपमानजनक हार के साथ मार भगाया था.

अब पच्चीस साल बाद ही सही, मगर ताजा घटनाक्रम यह साबित करता है कि आतंकवादियों और पाकिस्तानी सेना की कहीं न कहीं मिलीभगत है, जो छद्म युद्ध को अंजाम देते हैं. बार-बार भारत की सेना घुसपैठ करने वाले आतंकवादियों को मार गिराती है, लेकिन उनके पास मिलने वाले हथियार और अन्य सामग्री साबित करती है कि उन्हें पाकिस्तान सेना ने प्रशिक्षित कर भेजा है.

इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि पाकिस्तान भारत के सीमावर्ती क्षेत्र, विशेष रूप से कश्मीर में अस्थिरता पैदा करने के लिए आतंकवादी तैयार करता है, मगर वह यह मानता नहीं है. किंतु अनेक प्रमाणों के बाद उसे कारगिल की तरह ही इसे भी स्वीकार कर लेना चाहिए और शांति के रास्ते से अपनी समस्याओं का हल ढूंढ़ना चाहिए. वर्ना फिर कोई नया जनरल आएगा और कबूलनामा देकर चला जाएगा. 

टॅग्स :Kargilपाकिस्तानकारगिल विजय दिवसKargil Vijay Diwas
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