तेरी सूरत से अलग भगवान की सूरत क्या होगी...?
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: April 9, 2025 07:08 IST2025-04-09T07:07:42+5:302025-04-09T07:08:03+5:30
यह मान्यता रही है कि घर में यदि कोई बुजुर्ग हैं तो वे छाया की तरह हैं.

तेरी सूरत से अलग भगवान की सूरत क्या होगी...?
मजरूह सुल्तानपुरी ने एक बड़ा ही खूबसूरत गीत लिखा... उसको नहीं देखा हमने कभी पर इसकी जरूरत क्या होगी, ऐ मां तेरी सूरत से अलग भगवान की सूरत क्या होगी. दरअसल इस गीत की याद इस खबर से आई है कि मध्यप्रदेश के बालाघाट में एक युवक ने ‘माता-पिता मंदिर’ की स्थापना की है. अमूमन मंदिरों में भगवान की मूर्तियां होती हैं. भक्त उन्हें पूजते हैं ताकि उनकी मनोकामनाएं पूरी हो सकें. लेकिन बालाघाट के किरनापुर के मंगल प्रसाद रैकवार को लगा कि आज वे जो कुछ भी हैं, वह अपने अपने माता-पिता के कारण हैं.
इसी सोच ने माता-पिता मंदिर को स्वरूप दिया. न केवल भारतीय आध्यात्मिक बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी देखें तो हमारे प्रत्यक्ष निर्माता माता-पिता ही होते हैं. हमारी रगों में उन्हीं का खून दौड़ता है और उन्हीं से हमें आनुवंशिक गुण प्राप्त होते हैं. इसीलिए माता-पिता को भगवान का ही रूप माना गया है. क्या कभी आपने इस दृष्टि से सोचा है कि भगवान की सबसे करीबी कृति कौन है?
वो मां है जिसे भगवान ने यह सामर्थ्य दिया है कि वह सृष्टि को आगे बढ़ाने के लिए संतति को जन्म दे सके. किसी भी दृष्टि से देखें तो माता-पिता हमारे सृष्टिकर्ता हैं, इसलिए उन्हें नहीं तो भगवान किसे मानें? माता-पिता की सेवा को कितना महत्व दिया गया है, वह आप श्रवण कुमार की पौराणिक कहानी से समझ सकते हैं. उन्हें दुनिया आज भी याद करती है. सौभाग्य से रैकवार जैसे श्रवण कुमार हमारे समाज में आज भी मौजूद हैं लेकिन दुर्भाग्य से आज ऐसे लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है जो खुद सक्षम हैं लेकिन उनके माता या पिता वृद्धाश्रम में रहने को मजबूर हैं.
भारत में कितने बुजुर्ग वृद्धाश्रमों में रह रहे हैं, इसका बिल्कुल पुख्ता आंकड़ा तो मौजूद नहीं है लेकिन वृद्धाश्रमों की संख्या के हिसाब से एक मोटामोटी आंकड़ा है कि करीब 2 करोड़ बुजुर्ग वृद्धाश्रमों में रह रहे हैं. अभी तक इस बात का विश्लेषण नहीं किया गया है कि इनमें से कितने बुजुर्गों के बच्चों ने सक्षम होने के बावजूद उन लोगों को वृद्धाश्रम में पहुंचा दिया है. लेकिन जो कहानियां रह-रह कर सामने आती हैं, वे दुखी करती हैं.
वृद्धाश्रम में रहने वाला कोई व्यक्ति जब यह कहता है कि आर्थिक रूप से वे सक्षम थे लेकिन बेटे-बहू ने या बेटी ने उन्हें वृद्धाश्रम में पहुंचा दिया, तब मन में सवाल उठता है कि भारतीय समाज में कोई बेटा-बहू या बेटी इस तरह की शर्मनाक हरकत कैसे कर सकते हैं. हमारी संस्कृति बुजुर्गों को पूजने की रही है. यह मान्यता रही है कि घर में यदि कोई बुजुर्ग हैं तो वे छाया की तरह हैं. हमारी संस्कृति में वृद्धाश्रम की कल्पना कैसे की जा सकती है? आपको एक सच्ची घटना सुनाते हैं.
अमिताभ बच्चन और जया बच्चन जब पहली बार ब्रिटेन जा रहे थे तो हरिवंश राय बच्चन ने उन्हें कहा कि जिनके मार्गदर्शन में हमने पीएचडी किया था, उनसे जरूर मिलने जाना. जब अमिताभ और जया वहां पहुंचे तो एक बुजुर्ग अकेले समय गुजार रहे थे. उनकी पत्नी का निधन हो चुका था और बच्चे कहीं दूर रहे रहे थे.
उन्होंने दोनों का काफी स्वागत किया और लौटते वक्त हरिवंश राय बच्चन के नाम से एक चिट्ठी थी. आप जानते हैं कि उस चिट्ठी में क्या लिखा था? उसमें लिखा था- ‘तुम भारतीय बहुत भाग्शाली हो कि परिवार के बीच रहते हो.’
जरा सोचिए कि जिन देशों ने परिवार को पति-पत्नी और बच्चे तक समेट लिया है वहां तो बुजुर्गों की दुर्दशा समझ में आती है लेकिन भारत की संस्कृति में यह कलंक की तरह है. सबको यह सोचना चाहिए कि माता-पिता के साथ हम जैसा व्यवहार करेंगे, बच्चे वही सीखेंगे!