सेमीकंडक्टर्सः तकनीक के लिए अमेरिका-चीन की जंग

By निरंकार सिंह | Published: February 11, 2023 08:49 AM2023-02-11T08:49:58+5:302023-02-11T08:51:11+5:30

सेमीकंडक्टर्स का आविष्कार अमेरिका में हुआ था लेकिन समय के साथ-साथ पूर्वी एशिया इसके मैन्युफैक्चरिंग हब के तौर पर उभरकर सामने आया। इसकी वजह वहां की सरकारों की प्रोत्साहन राशि और सब्सिडी थी।

Semiconductors The US-China war for technology | सेमीकंडक्टर्सः तकनीक के लिए अमेरिका-चीन की जंग

सेमीकंडक्टर्सः तकनीक के लिए अमेरिका-चीन की जंग

दुनिया में जंग अब सिर्फ देश की सीमाओं पर ही नहीं लड़ी जा रही है। जंग का यह नया मैदान आर्थिक मोर्चे पर शुरू हुआ है। यह जंग उच्च तकनीक के माध्यम से बाजार की ताकतों को अपने नियंत्रण में लाने के लिए कौशल रूपी हथियार के इस्तेमाल से लड़ी जा रही है। इस जंग में कई देश शामिल हैं, पर अमेरिका और चीन तकनीकी जंग के मोर्चे पर आमने-सामने खड़े हैं। यह जंग सेमीकंडक्टर्स को लेकर है। यह एक चिप है जो वास्तव में हमारे दैनिक जीवन की एक ताकत है। सिलिकॉन का यह एक छोटा सा टुकड़ा 500 अरब डॉलर के उद्योग का केंद्र है जिसकी कीमत 2030 तक दोगुनी होने का अनुमान है। इसकी सप्लाई चेन को कौन नियंत्रित करेगा, इसको लेकर जंग जारी है। इन्हें बनाने वाली कंपनियों और देशों का एक पेचीदा नेटवर्क है। इसकी सप्लाई चेन का नियंत्रण ही वह कुंजी है जो किसी को एक बेजोड़ महाशक्ति बना सकता है। चीन इन चिप्स को बनाने की तकनीक चाहता है। पर अमेरिका, जो इस तकनीक का अधिकतर स्रोत अपने पास रखे हुए है, वह चीन को पीछे धकेल रहा है।

टफ्ट्स यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर और चिप वॉर्स के लेखक क्रिस मिलर के अनुसार चीन के खिलाफ जो घोषित चिप युद्ध है वह वैश्विक अर्थव्यवस्था को नया रूप दे रहा है। सेमीकंडक्टर्स को बनाना जटिल है। इसमें विशेषज्ञता की जरूरत है। आईफोन की चिप्स अमेरिका में डिजाइन होती हैं जो ताइवान, जापान या दक्षिण कोरिया में बनती हैं और फिर चीन में उन्हें जोड़ा जाता है। भारत इस उद्योग में बहुत निवेश कर रहा है जो आगे भविष्य में एक बड़े खिलाड़ी की भूमिका निभा सकता है। भारत की ताइवान में हुई डील चीन के लिए सिरदर्द बन गई है।

सेमीकंडक्टर्स का आविष्कार अमेरिका में हुआ था लेकिन समय के साथ-साथ पूर्वी एशिया इसके मैन्युफैक्चरिंग हब के तौर पर उभरकर सामने आया। इसकी वजह वहां की सरकारों की प्रोत्साहन राशि और सब्सिडी थी। वॉशिंगटन ने भी इस क्षेत्र में इस व्यापार को विकसित करने के लिए रणनीतिक साझेदारियां कीं क्योंकि रूस के साथ शीत युद्ध के समय से उसके इस क्षेत्र से संबंध कमजोर थे।

एशिया-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते दबदबे के बाद यह अभी भी अमेरिका के लिए महत्वपूर्ण है। अब दौड़ इन चिप्स को बड़े पैमाने पर अधिक छोटे और कुशल बनाने की है। अब चुनौती यह है कि एक छोटे से सिलिकॉन वेफर पर कितने ट्रांजिस्टर्स फिट हो पाएंगे जो कि अपने आप चालू और बंद हो सकें। सिलिकॉन वैली की बेन एंड कंपनी की साझेदार जुई वांग के अनुसार इसी वजह से सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री इसे मूर्स लॉ कहती है, खासतौर से समय के साथ ट्रांजिस्टर के घनत्व को दोगुना करना एक बहुत मुश्किल लक्ष्य है। यह हमारे फोन को अधिक तेज बनाता है, हमारे डिजिटल फोटो आर्काइव को और बड़ा करता है, स्मार्ट होम डिवाइसेस को समय के साथ अधिक स्मार्ट बनाता है और सोशल मीडिया कंटेंट का दायरा फैलाता है। यह टॉप चिप-मेकर्स के लिए भी बनाना आसान नहीं है।

यह चिप इंसानी बाल के किनारे से भी छोटी होती है जो कि 50 से एक लाख नैनोमीटर बारीक होती है। यह छोटी ‘खास धार’ वाली चिप्स बेहद शक्तिशाली होती हैं। इसका मतलब है कि ये बेहद कीमती डिवाइसेज गिनी जाती हैं जिनमें इंटरनेट से जुड़ी सुपरकम्प्यूटर्स और एआई जैसी चीजें हैं। इन चिप्स का बाजार काफी लाभप्रद भी है क्योंकि यह हमारे दैनिक जीवन में भी तेजी लाता है। इनका इस्तेमाल माइक्रोवेव्स, वॉशिंग मशीन और रेफ्रिजरेटर में होता है। लेकिन भविष्य में इसकी मांग कम होने की संभावना है। दुनिया की अधिकतर चिप्स अभी ताइवान में बनती हैं जो कि एक स्वशासित द्वीप है और इसके राष्ट्रपति इसे ‘सिलिकॉन शील्ड’ कहते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो यह चीन से उसे सुरक्षा देती है क्योंकि वह ताइवान पर दावा करता है। चीन भी राष्ट्रीय प्राथमिकता के आधार पर चिप का उत्पादन करता है और वह इन्हें तेजी से सुपरकम्प्यूटर्स और एआई में इस्तेमाल कर रहा है। वह इस मामले में वैश्विक नेता बनने की रेस में कहीं भी नहीं है लेकिन बीते दशक में उसने इस क्षेत्र में तेजी पकड़ी है, खासतौर से चिप डिजाइन करने की क्षमता के मामले में। जब भी कोई ताकतवर देश एडवांस्ड कम्प्यूटिंग तकनीक हासिल करता है तो वह उसका प्रयोग इंटेलिजेंस और मिलिट्री सिस्टम में करता है। ताइवान और दूसरे एशियाई देशों पर निर्भरता के कारण अमेरिका इसे बनाने में अब तेजी ला रहा है।

चिप बनाने की तकनीक में चीन के आगे रोड़ा अटकाने की बाइडेन प्रशासन कोशिशें कर रहा है। वॉशिंगटन ने इसे नियंत्रित करने के लिए पिछले साल अक्तूबर में कुछ नियमों की घोषणा की थी जिनमें चीन को कंपनियों को चिप्स बेचने, चिप बनाने के उपकरण और अमेरिकी सॉफ्टवेयर बेचने पर रोक थी। अमेरिका का फैसला दुनिया की सभी कंपनियों पर लागू था। इस फैसले में अमेरिकी नागरिकों और स्थायी निवासियों पर चीन की स्थायी फैक्ट्रियों में चिप का उत्पादन या विकास करने पर प्रतिबंध लगाया गया था। इसने चीन पर मजबूती से प्रहार किया क्योंकि उसका नया चिप बनाने वाला उद्योग हार्डवेयर और नई तकनीक के आयात पर निर्भर है।  
 

Web Title: Semiconductors The US-China war for technology

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