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गणपति के गुणों को हम जीवन में आत्मसात करें

By विजय दर्डा | Updated: September 17, 2018 08:29 IST

गणपति को मंगलमूर्ति भी कहा जाता है। क्या कभी आपने सोचा है कि उन्हें यह नाम क्यों मिला होगा?

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यह गणोशोत्सव का मौसम है। भगवान श्री गणोश की आराधना के पावन पर्व ने वातावरण में उत्साह, ऊर्जा और उमंग का संचार कर दिया है। गणपति बाप्पा मोरया की गूंज सुनाई दे रही है। समाज को इतना उत्साहित देखकर वाकई बहुत अच्छा लगता है। यही उत्साह तो हमारे जीवन का सबसे आवश्यक तत्व है! जिंदगी में यदि उत्सव और उत्साह न हों तो सबकुछ सूना-सूना सा हो जाएगा। इसीलिए हमारे पूर्वजों ने इन उत्सवों की रचना की होगी। 

मैं जब कोई उत्सव मना रहा होता हूं तो मेरे भीतर सोच-विचार का क्रम भी चलता रहता है। मैं यह तलाशने की कोशिश करता हूं कि इस उत्सव का वैज्ञानिक और व्यावहारिक पक्ष क्या है? क्या संदेश छिपे हैं इनमें? क्या हम उन संदेशों को अपने भीतर उतार रहे हैं? जहां तक गणोशजी का सवाल है तो हम किसी भी नए काम की शुरुआत के लिए कहते हैं ‘श्रीगणोश कीजिए’। इतना ही नहीं हम सबसे पहले गणपति की ही पूजा-अर्चना करते हैं। यानी गणपति हमें संदेश देते हैं कि कुछ न कुछ नया करने की प्रवृत्ति इंसान के भीतर होनी चाहिए। इसे थोड़ा और विस्तार दें तो यह कह सकते हैं कि गणोशजी से हमें इनोवेशन का संदेश भी मिलता है। आज के दौर में यह सबसे बड़ी जरूरत भी है। इनोवेशन ही हमारे समाज और देश को विकास के पथ पर ले जाएगा। अपने बच्चों को गणपति की आराधना का तरीका सिखाएं कि वे इनोवेटिव बनें। 

गणोशजी बुद्धि के देवता भी कहे जाते हैं। वे विघ्न विनाशक यानी समस्याओं को दूर करने वाले माने जाते हैं। इसमें कितना बड़ा संदेश छिपा है कि जब बुद्धि प्रखर होगी तो समस्याओं से निपटने का तरीका भी उतनी ही सहजता से आप ढूंढ सकते हैं। जब हम गणपति की आराधना करते हैं तो हमें यह संकल्प भी लेना चाहिए कि न केवल खुद बुद्धिमान बनने की कोशिश करेंगे बल्कि अपने बच्चों को भी प्रेरित करेंगे। यदि देश का हर बच्च पढ़ा-लिखा और बुद्धिमान हो जाए तो उस राष्ट्र के सामने आने वाली हर समस्या दूर हो जाएगी। वे भगवान शिव के गणों के अध्यक्ष हैं यानी वे हमें नेतृत्व शैली भी सिखाते हैं। 

गणपति को मंगलमूर्ति भी कहा जाता है। क्या कभी आपने सोचा है कि उन्हें यह नाम क्यों मिला होगा? उनकी आकृति पर कभी गौर करिए तो बहुत कुछ समझ में आ जाएगा।  गणोशजी का सिर काफी बड़ा है। यह माना जाता है कि जिसका सिर बड़ा हो वह अत्यंत तीक्ष्ण बुद्धि का स्वामी तो होता ही है, उसमें गजब की नेतृत्व क्षमता भी होती है। गणोशजी के बड़े सिर से हमें यह संदेश मिलता है कि हर व्यक्ति को अपनी सोच बड़ी रखनी चाहिए। उनकी आंखें छोटी हैं। छोटी आंखें चिंतन की प्रकृति की परिचायक हैं। गणोशजी की छोटी आंखों से हम यह संदेश प्राप्त कर सकते हैं कि हर चीज को अत्यंत सूक्ष्म तरीके से देखें, परखें और फिर  कोई निर्णय लें।  

गणोशजी का एक नाम गजकर्ण भी है। यह नाम उन्हें अपने कानों के कारण मिला है। उनके कान हाथी के  हैं। किसी भी और देवी-देवता के कान इस तरह के नहीं हैं। ऐसा माना जाता है कि लंबे कान वाले व्यक्ति अत्यंत भाग्यशाली होते हैं। मुझे लगता है कि लंबे कान का संदेश यह है कि आप पूरी दुनिया की सुनें। आप सुनेंगे नहीं तो जानकारियां आप तक पहुंचेंगी कैसे? सुनेंगे नहीं तो संवाद कैसे होगा? दूसरे का पक्ष आप कैसे जान पाएंगे। आप सुनेंगे नहीं तो सही निर्णय कैसे कर पाएंगे? यानी लोकतांत्रिक परंपरा के लिए तो यह संदेश सबसे ज्यादा जरूरी है। दुर्भाग्य से आज सुनने की प्रवृत्ति कम होती जा रही है। हर कोई बस अपनी सुनाना चाहता है। ऐसे दौर में गणोशजी का यह संदेश सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। इसी तरह से गणपति की सूंड से हमें सीख मिलती है। आपने देखा होगा कि हाथी अपनी सूंड कभी भी स्थिर नहीं रखता है। यह सक्रियता का प्रतीक है। जो व्यक्ति जीवनर्पयत सक्रिय रहता है वह समस्याओं को खुद से काफी दूर रखता है।

अब जरा गणोशजी के पेट पर नजर डालिए! अपने पेट के कारण उन्हें लंबोदर नाम मिला है। उनका पेट इस बात का प्रतीक है कि व्यक्ति को बहुत सी बातें अपने पेट में हजम कर लेनी चाहिए। चुगली से दूर रहना चाहिए। चुगली बड़े संघर्षो को जन्म देती है। खुशहाल रहने के लिए बहुत सी बातों को पचा लेना बहुत जरूरी है। गणपति को एकदंत भी कहा जाता है। कहते हैं कि परशुरामजी ने गणोशजी का एक दांत तोड़ दिया।  कमाल देखिए कि उन्होंने अपने टूटे हुए दांत को लेखनी बना लिया। तो ऐसे श्री गणोशजी की आराधना के उत्सव में आप सबको बधाई! बस उनके संदेशों को अपने आप में समा लीजिए व बच्चों को भी इन संदेशों के अनुरूप संस्कारित करिए।

टॅग्स :गणेश चतुर्थी
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